Monday, May 21, 2007

Welcome to Yahoo! Hindi: "फास्ट और स्लो ट्रेक के बीच लास्ट लोकल"

Welcome to Yahoo! Hindi: "फास्ट और स्लो ट्रेक के बीच लास्ट लोकल"

निर्माता : क्वार्टेट फिल्म्सनिर्देशक : संजय खंडूरी कलाकार : अभय देओल, नेहा धूपिया‘एक चालीस की लास्ट लोकल’ में एक युवक के ढाई घंटे के समय को दिखाया गया है। इस ढाई घंटे के सफर में वह 70 रुपयों से ढाई करोड़ रूपयों तक पहुँच जाता है। उसे प्यार भी हो जाता है। इन ढाई घंटों में वह अंडरवर्ल्ड और पुलिस शिकंजे में भी फँसता है और छूटता है। यह कहानी सुनने में जरूर दिलचस्प लगती है लेकिन उसका फिल्मी रूपांतरण उतना अच्छा नहीं हो पाया है। कहानी :पूरी कहानी मुंबई शहर की है। नीलेश (अभय देओल) से रात्रि की एक चालीस वाली लोकल छू‍ट जाती है। इसके बाद अगली लोकल ट्रेन ढाई घंटे बाद है। पुलिस वाले उसे स्टेशन पर नहीं बैठने देते हैं। बाहर आकर उसे पता चलता है कि ऑटो रिक्शा वालों की हड़ताल है। उसकी मुलाकात मधु (नेहा धूपिया) से होती है। मधु को भी वहीं जाना होता है जहाँ नीलेश को। ढाई घंटे कैसे पास करें यह दोनों सोचते है। सड़क पर टहलते हुए वे एक बार में पहुँच जाते है। नीलेश के पास केवल सत्तर रूपए हैं। बार में नीलेश का एक दोस्त मिलता है और वह उसके साथ जुआ खेलने जाता है। थोड़ी देर बाद उसे मधु की याद आती है तो वह मधु को ढूँढता है। वह देखता है कि एक बदमाश मधु के साथ जोर-जबरदस्ती करता रहता है। नीलेश उस बदमाश को ललकारता है। वह बदमाश नीलेश को मारने आता है लेकिन उसका पैर फिसल जाता है और वह टकराकर मर जाता है। शोर सुनकर लोग इकट्ठा होते हैं और वे नीलेश को हत्यारा समझते हैं। वह बदमाश अंडरवर्ल्ड के एक गुंडे का भाई रहता है। नीलेश को जब वह गुंडा मारने वाला होता है तब उस बार पर पुलिस का छापा पड़ जाता है। नीलेश भी पुलिस के शिकंजे में फँस जाता है। नीलेश को पता चलता है कि मधु दरअसल एक वैश्या है जो रात में ग्राहकों को फाँसती है। लेकिन दोनों के बीच प्यार हो जाता है। पुलिस और अंडरवर्ल्ड के बीच उलझते-सुलझते जब ढाई घंटे समाप्त होते हैं तब नीलेश के हाथ में ढाई करोड़ रूपए और मधु होती है।निर्देशन :संजय खंडूरी द्वारा निर्देशित यह पहली फिल्म है और इसमें उन्होंने अपने जौहर दिखाने के प्रयास किए है। कायदे से यह फिल्म दो घंटे में खत्म हो जानी थी, लेकिन खंडूरी ने इसे ढाई घंटे तक खींचा। इस कारण कई दृश्यों में दोहराव लगा। फिल्म कहीं अच्छी, कहीं बुरी है। खंडूरी पूरी फिल्म पर अपनी पकड़ नहीं दिखा पाए। मुंबई के रात के माहौल को उन्होंने जीवंत किया। खंडूरी में एक अच्छे निर्देशक बनने की संभावना है। अभिनय : अभय देओल का अभिनय सराहनीय है। एक मिडिल क्लास के सामान्य से लड़के की भूमिका को उन्होंने बखूबी निभाया है। नेहा धूपिया का चयन गलत है। लाख कोशिशों के बावजूद नेहा अभिनय नहीं सीख पाई। उसके चेहरे पर भाव ही नहीं आ पाते हैं। वीरेन्द्र सक्सेना, स्नेहल दुबे, दीपक शिरके और अशोक समर्थ के साथ सारे अभिनेताओं ने उम्दा काम किया है। अन्य पक्ष : फिल्म में गानों की गुंजाइश नहीं के बराबर थी। इसलिए निर्देशक ने गानों से परहेज रखा। केवल बार में और एक-दो जगह केवल मुखड़ों से काम चलाया। पता नहीं छह संगीतकारों को रखने की जरूरत निर्देशक को क्यों पड़ी? फोटोग्राफी भी ठीक है। रात का माहौल देने के लिए लाइट कम रखा गया है। इस कारण फिल्म में अँधेरा ज्यादा दिखाई देता है। कुल मिलाकर ‘एक चालीस की लास्ट लोकल’ फास्ट ट्रेक और स्लो ट्रेक के बीच की फिल्म है।
(स्रोत - वेबदुनिया)

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