Monday, September 1, 2008

Jagjit Singh - Manzil Na De - Worst Flood at Bihar

Monday, August 11, 2008

बिंद्रा ने इतिहास रच भारत को दिलाया सोना

बिंद्रा ने इतिहास रच भारत को दिलाया सोना
बीजिंग। भारत के निशानेबाज अभिनव बिंद्रा ने बीजिंग ओलंपिक खेलों की 10 मीटर एयर रायफल स्पर्धा का स्वर्ण जीतकर इतिहास रच दिया। इसके साथ ही वह भारत के ओलंपिक इतिहास में व्यक्तिगत स्वर्ण जीतने वाले पहले खिलाड़ी बन गए है।
ओलंपिक में हाकी को छोड़कर भारत कभी किसी खेल में स्वर्ण पदक नहीं जीत पाया था लेकिन बिंद्रा ने नया इतिहास रचते हुए न केवल स्वर्ण जीता बल्कि भारत को बीजिंग ओलंपिक की पदक तालिका में भी स्थान दिला दिया। 25 वर्षीय बिंद्रा ने भारत को 28 वर्षो के अंतराल के बाद ओलंपिक में स्वर्ण पदक दिलाया। भारत ने वर्ष 1980 के मास्को ओलंपिक में हाकी का स्वर्ण जीता था। भारतीय निशानेबाजों से पदक की जो उम्मीदें लगाई जा रही थीं उसे राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित हो चुके अभिनव ने पूरा कर दिखाया। वह निशानेबाज राज्यवर्धन राठौड़ से एक कदम आगे बढ़ गए जिन्होंने एथेंस ओलंपिक में रजत पदक जीता था। अभिनव ने 10 मीटर एयर रायफल स्पर्धा का स्वर्ण 700.5 के स्कोर के साथ जीता। उनके स्वर्ण जीतते ही वहां रेंज में मौजूद सभी भारतीय समर्थक खुशी से झूम उठे। मेजबान चीन के जू किनान ने 699.7 अंकों के साथ रजत पदक जीता जबकि फिनलैंड के हेनरी हक्कीनेन ने 699.4 अंक हासिल करके कांस्य पदक प्राप्त किया।
बिंद्रा की जीत से उत्साहित भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी ने कहा, 'वह दुनिया का सर्वश्रेष्ठ निशानेबाज है और मुझे लगता है कि उसके इस प्रदर्शन से पूरे दल का मनोबल बढ़ेगा।' राष्ट्रीय कोच सन्नी थॉमस ने कहा, 'हम सभी काफी खुश हैं। वह कड़ी मेहनत करने वाला एथलीट है। पूरा निशानेबाजी दल जश्न मना रहा है। हमें उस पर गर्व है और यह तो सिर्फ शुरुआत है। अभिनव काफी धैर्य और संयम रखने वाला लड़का है और वह अति उत्साहित नहीं होता।' खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित बिंद्रा ने इससे पहले 2002 राष्ट्रमंडल खेलों की युगल स्पर्धा में स्वर्ण जबकि व्यक्तिगत स्पर्धा में रजत पदक जीता था।
इससे पहले गगन नारंग इसी स्पर्धा के फाइनल में प्रवेश करने से चूक गए थे। वह 600 में से 595 अंक जुटाकर नौवें स्थान पर रहे। नारंग ने 97, 100, 100, 100, 98, 100 के राउंड खेले।


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रोते हुए मैच से हटीं सानिया मिर्ज़ा

सानिया मिर्ज़ा ने सोचा नहीं होगा कि उन्हें इस तरह बीजिंग ओलंपिक के सिंगल्स मुक़ाबले से बाहर होना पड़ेगा. लेकिन हुआ वही, जो उन्होंने सोचा नहीं था.
पहले ही दौर के मैच के दौरान कलाई की चोट के कारण सानिया को टेनिस कोर्ट छोड़ना पड़ा. सानिया के आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे.

लेकिन उन्हें सिंगल्स मुक़ाबले से बाहर होना पड़ा. सानिया के डबल्स मुक़ाबले में खेलने पर भी संदेह व्यक्त किया जा रहा है.

सानिया को जिस समय चोट के कारण कोर्ट छोड़ना पड़ा, उस समय वे एक सेट हार चुकी थीं और दूसरे सेट में पीछे थी.

मैच

बीजिंग ओलंपिक के पहले दौर के मैच में उनके सामने थीं चेक गणराज्य की इवेटा बेनेसोवा. लेकिन पहला सेट सानिया 6-1 से हार गईं. दूसरे दौर में भी वे 2-1 से पीछे थी.


सानिया ने अपनी कलाई का ऑपरेशन कराया था. लेकिन वे ओलंपिक के शुरू से ही अपनी चोट से परेशान थीं. वे कोर्ट पर दौड़ रही थी. लेकिन समय के साथ उनकी मुश्किलें बढ़ती गईं


नंदन बल, टीम कोच

लेकिन कलाई की चोट के कारण उन्होंने मैच से हटना ही बेहतर समझा. टीम कोच नंदन बल का कहना है कि ओलंपिक के शुरू से ही सानिया को कलाई की चोट परेशान कर रही थी.

उन्होंने कहा, "सानिया ने अपनी कलाई का ऑपरेशन कराया था. लेकिन वे ओलंपिक के शुरू से ही अपनी चोट से परेशान थीं. वे कोर्ट पर दौड़ रही थी. लेकिन समय के साथ उनकी मुश्किलें बढ़ती गईं."

सानिया बीजिंग ओलंपिक के डबल्स मुक़ाबले में भी हिस्सा ले रही हैं लेकिन उनके खेलने पर अब प्रश्नचिह्न लग गया है. डबल्स में उन्हें सुनीता राव के साथ कोर्ट पर उतरना है.

Sunday, August 10, 2008

अभिनव बिंद्रा को ओलंपिक में स्वर्ण

भारत के अभिनव बिंद्रा ने 10 मीटर एयर राइफ़ल शूटिंग प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतकर ओलंपिक में इतिहास रचा है.

Monday, August 4, 2008

Recipes | Khana Khazana - दही मशरूम

Recipes Khana Khazana - Jagran Yahoo! India

दही मशरूम

विधि :
एक पैन में तेल गरम करें, फिर उसमें दालचीनी, लौंग और तेजपत्ता डालकर ब्राउन होने तक फ्राई करें। अब इसमें जीरा डालकर चटकने दें बारीककटी प्याज डालकर गोल्डन ब्राउन होने तक भून लें।
अब इसमें हरी मिर्च, लहसुन और अदरक का पेस्ट डालकर अच्छी तरह भून लें। गरम मसाला, चीनी, टमाटर और हल्दी डालकर टमाटर के गलने तक पकायें। अब इसमें हरी मटर, 2 कप पानी डालकर 20 मिनट तक गलने दें। मशरूम डालकर 5 मिनट और पकाये, अब इसमें फेंटी हुई दही डाल दें और 2 मिनट बाद ही आंच से उतार लें हरे धनिये से सजाकर गर्मागम चावल या रोटी के साथ सर्व करें।

सामग्री :
250 ग्राम मशरूम, 100 ग्राम हरी मटर, 50 ग्राम प्याज, 30 ग्राम लहसुन, 4-5 हरी मिर्च, 15 ग्राम अदरक, 1 कप दही, 50 ग्राम टमाटर, 1/2 टी स्पून जीरा, 1 टी स्पून धनिया पाउडर, 4-5 लौंग, थोड़ी सी दालचीनी, तेजपत्ता, नमक स्वादानुसार, 1/4 टी स्पून चीनी, बारीक कटा हरा धनिया, 1 टे.स्पून तेल।
कितने लोगों के लिए : 4

धोनी को खेल रत्न पुरस्कार

Jagran - Yahoo! India - Sports :: Cricket News: "धोनी को खेल रत्न पुरस्कार"
नई दिल्ली। भारतीय वनडे व टी-20 टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को वर्ष 2007 के सर्वोच्च राजीव गांधी खेल रत्न के लिए चुना गया है। इससे पहले क्रिकेटरों में यह पुरस्कार सिर्फ सचिन तेंदुलकर को ही मिला है। वहीं चार कोचों को द्रोणाचार्य और 11 खिलाड़ियों को अर्जुन पुरस्कार के लिए चयनित किया गया है।
धोनी 11 साल बाद देश के सबसे प्रतिष्ठित खेल पुरस्कार पाने वाले पहले क्रिकेटर है। मिल्खा सिंह की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति की सोमवार को बैठक में धोनी ने टेबिल टेनिस खिलाड़ी अंचत शरत कमल और महिला मुक्केबाज एम मैरीकाम को पछाड़ते हुए ये मुकाम हासिल किया। राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल धोनी को राष्ट्रपति भवन में 29 अगस्त को ध्यानचंद के जन्मदिन के अवसर पर सम्मानित करेगी।
बैठक में खेल रत्न के अलावा, द्रोणाचार्य, अर्जुन व ध्यानचंद पुरस्कारों के लिए विभिन्न खेलों के खिलाड़ियों के नामों को भी अंतिम रूप दिया गया। द्रोणाचार्य के लिए अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित पहलवान जगमिंदर को कुश्ती, संजीव कुमार को तीरंदाजी, जगदीश कुमार को मुक्केबाजी व श्रीधरन को वालीबाल के लिए यह पुरस्कार दिया जाएगा।
समिति के सदस्यों को भारत के श्रेष्ठ पुरस्कार के लिए धोनी के नाम पर सहमति बनाने के लिए मात्र आधे घंटे का समय लगा। धोनी के आस्ट्रेलिया में खेली गई सीबी वनडे सीरीज व टी-20 विश्व कप विजेता जैसे रिकार्डो के सामने अन्य खिलाड़ी फीके दिखाई पड़े। गत वर्ष निशानेबाज मानवजीत सिंह संधू को यह प्रतिष्ठित पुरस्कार दिया गया था।
राजीव गांधी पुरस्कार के लिए खेल मंत्रालय ने पहली लिस्ट में धोनी का नाम शामिल नहीं किया था, क्योंकि उसका फार्म 2 जून तक खेल मंत्रालय को नहीं मिला था। मीडिया में इस खबर के आने के बाद खेल मंत्रालय ने इस बाबत छानबीन की थी, जिसके बाद पता चला था कि धोनी का फार्म 30 मई को शास्त्री भवन के डाक विभाग में पहुंच गया था। खेल मंत्रालय ने गलती मानते हुए धोनी के नाम को राजीव गांधी अवार्ड के दावेदारों की सूची में शामिल कर लिया।
बीसीसीआई के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी प्रोफेसर रत्नाकर शेट्टी ने इस फैसले की सराहना की है। शेट्टी ने कहा, 'दो अवसरों पर हमें मायूसी का सामना करना पड़ा। राहुल द्रविड़ को खेल रत्न नहीं दिया गया और युवराज सिंह को अर्जुन पुरस्कार के लिए नहीं चुना गया। द्रविड़ अच्छी फार्म में थे। हमने लगातार 16 एकदिवसीय मैच जीते और टीम का मनोबल सातवें आसमान पर था लेकिन फिर भी उन्हें पुरस्कार नहीं मिला।'
धोनी से पूर्व विभिन्न खेल विधाओं से जुड़े 15 खिलाड़ियों को इस सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है। इस बार द्रोणाचार्य के लिए चार, अर्जुन पुरस्कार के लिए 11 व ध्यानचंद पुरस्कार के लिए तीन नाम शामिल हैं। इन सभी पुरस्कारों की घोषणा आने वाले दिनों में खेल मंत्रालय द्वारा की जाएगी।
चयनित खिलाड़ियों की सूची
राजीव गांधी खेल रत्न: महेंद्र सिंह धोनी ।
द्रोणाचार्य पुरस्कार: जगमिंदर सिंह , जगदीश कुमार (मुक्केबाजी), श्रीधरन (वालीबाल) व संजीव कुमार (तीरंदाजी)।
अर्जुन पुरस्कार: प्रभजोत सिंह (हाकी), अलका तोमर (महिला कुश्ती), जे वर्गीस (मुक्केबाजी), अनूप श्रीधर (बैडमिंटन), अर्जुन अटवाल (गोल्फ), बजरंगी लाल (रोइंग), तोंबी देवी (जूडो), चित्रा के. सुमन (एथलेटिक्स), अवनीत कौर (शूटिंग), डी. हरिका (शतरंज) व फरहान वासा [विकलांग खिलाड़ी]।
ध्यानचंद पुरस्कार: हकम सिंह (एथलेटिक्स), मुखबैन सिंह (हाकी) व ज्ञान सिंह (कुश्ती)।

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Wednesday, July 30, 2008

BBCHindi.com | विश्व समाचार | दो अमीर लड़ेंगे ध�

BBCHindi.com विश्व समाचार दो अमीर लड़ेंगे ध�: "दो अमीर लड़ेंगे धूम्रपान के ख़िलाफ़"
दुनिया के सबसे अमीर व्यक्तियों में से दो ने मिलकर विकासशील देशों में धूम्रपान पर क़ाबू पाने के लिए एक अभियान की शुरुआत की है.
ये दो व्यक्ति हैं न्यूयॉर्क के मेयर माइकल ब्लूमबर्ग और माइक्रोसॉफ़्ट के संस्थापक बिल गेट्स.
इन दोनों ने चेतावनी दी है कि सदी के अंत तक धूम्रपान से जुड़ी बीमारियों से एक अरब लोगों की मौत हो सकती है.
इन दो अरबपति मानवतावादियों ने अगले पाँच साल में लोगों में धूम्रपान की आदत ख़त्म करने के प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए 50 करोड़ डॉलर (यानी कोई दो हज़ार करोड़ रुपए) की सहायता देने की घोषणा की है.
ये दोनों चाहते हैं कि लोगों के बीच तंबाकू से होने वाली बीमारियों को लेकर एक जागरुकता अभियान शुरु किया जाए.
अनुमान है कि इस समय दुनिया में एक अरब से ज़्यादा लोग धूम्रपान करते हैं.
उत्प्रेरक
एक ओर तो विकसित देशों में धूम्रपान में कटौती की कोशिशें की जा रही हैं. न्यूयॉर्क, लंदन और डबलिन में सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान पर रोक लगा दी गई है.
बिल और मैं इस समस्या की गंभीरता को उजागर करना चाहते हैं और तंबाकू की महामारी के ख़िलाफ़ सरकारों और नागरिक समाज के अभियान को बढ़ावा देने के लिए उत्प्रेरक का काम करना चाहते हैं

माइकल ब्लूमबर्ग
तो दूसरी ओर तंबाकू कंपनियाँ अपना ध्यान एशिया और अफ़्रीका में केंद्रित कर रही हैं.
ब्लूमबर्ग ने कहा, "बिल और मैं इस समस्या की गंभीरता को उजागर करना चाहते हैं और तंबाकू की महामारी के ख़िलाफ़ सरकारों और नागरिक समाज के अभियान को बढ़ावा देने के लिए उत्प्रेरक का काम करना चाहते हैं."
बिल गेट्स और माइकल ब्लूमबर्ग चाहते हैं कि सरकारों को तंबाकू के ख़िलाफ़ नीतियाँ बनाने में सहायता की जाए और उन्हें तंबाकू पर टैक्स बढ़ाने और तंबाकू के विज्ञापनों पर रोक लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए.
बीबीसी संवाददाता लौरा ट्रैवेलियन का कहना है कि बड़ा सवाल यह है कि 50 करोड़ डॉलर की सहायता से तंबाकू कंपनियों को किस हद तक रोका जा सकेगा.

उम्र के नाजुक मोड़ पर

Sakhi - Jagran Yahoo! India
ये कहां आ गए हम
किशोर उम्र के बदलावों में सबसे अहम हैं शारीरिक बदलाव। अचानक होने वाले बदलावों को मन स्वीकार नहीं कर पाता। किसी से शेयर करने में हिचक होती है, लगता है मानो सारी आजादी छिन गई हो। लडकों-लडकियों में अलग-अलग तरह के बदलाव होते हैं। यही वह उम्र भी है, जब मानसिक-भावनात्मक और बौद्धिक विकास की प्रक्रिया गति पकडती है। मन किसी एक बात पर ठहर नहीं पाता और दिमाग सवालों से भर उठता है।
उम्र का अजीब खेल
1. मन में कई सवाल पनपने लगते हैं। क्यों? कब? कहां? ऐसे प्रश्न इसी उम्र में जन्मते हैं।
2. आजादी पर थोडा भी प्रतिबंध उन्हें बाधक लगता है। वे स्कूल के नियमों और माता-पिता के आदेशों को चुनौती देने लगते हैं।
3. अपने ढंग से चीजों को सही-गलत और अच्छा-बुरा समझने की बुद्धि आ जाती है। यह सामान्य-सहज प्रक्रिया है।
4. प्री-टीन और टीनएज में अचानक एहसास होने लगता है कि हम कुछ भी कर सकते हैं और जो करेंगे, वह गलत नहीं होगा। यह एक बडा बदलाव होता है, जो माता-पिता के लिए मुश्किलें खडा करता है।
5. खुद को आकर्षक महसूस करने लगते हैं टीनएजर्स। खास तौर पर लडकियों में आईने में खुद को निहारना, सौंदर्य प्रसाधनों का प्रयोग, ड्रेसेज को लेकर सजगता जैसे तमाम गुण इसी उम्र में पनपते हैं।
6. दोस्तों के साथ घंटों समय बिताने, फोन करने और माता-पिता से कुछ छिपा लेने की मानसिकता भी इसी उम्र की देन है।
7. मूड स्विंग, भावनात्मक उथल-पुथल, अनावश्यक रुलाई जैसे लक्षण भी हार्मोनल बदलाव के कारण होते हैं।
मुश्किल है बहुत फिर भी
बच्चों का टीनएज में आना माता-पिता के लिए एक साथ कई मुश्किलें खडी करता है। इस उम्र में किशोर अपनी रचनात्मकता के शीर्ष पर होते हैं, लेकिन अगर चूक हो जाए तो विध्वंसक होने में भी देर नहीं लगती। ऐसी स्थिति में माता-पिता को किशोर मनोविज्ञान के इन तथ्यों को जरूर ध्यान में रखना चाहिए-
1. आम तौर पर किशोरों के लिए शारीरिक बदलावों को समझ पाना मुश्किल होता है। वे चिडचिडे हो जाते हैं, साथ ही साथियों के साथ अपने बदलावों की तुलना करके वे और भी चिंतित हो जाते हैं। उन्हें समझाएं कि आप भी इसी तरह बडे हुए थे और इसमें असामान्य कुछ भी नहीं। उन्हें अपने अनुभव सुनाएं।
2. उनके शारीरिक बदलावों, खास तौर पर वजन बढने-घटने को लेकर उन्हें ताने न दें।
3. अगर बढते बच्चे ज्यादा प्रतिक्रियावादी हो जाएं, हर बात पर जवाब देने लगें तो बजाय उन्हें सजा देने के, उनकी बातों को ध्यान से सुनें और उनके स्तर पर जाकर उनके तर्को को समझने की कोशिश करें।
4. छोटी-छोटी बातों को नजरअंदाज करना सीखें। उनकी ड्रेसेज, हेयर स्टाइल्स पर कमेंट करने के बजाय यह ध्यान दें कि उनका सर्किल कैसा है। दोस्त गलत दिशा में तो नहीं ले जा रहे! यानी छोटे बदलावों के बजाय जो बडे प्रश्न हैं, उन्हें सुलझाने की कोशिश करें।
5. उन्हें जिम्मेदारियां सौंपें। अपने छोटे-छोटे निर्णय खुद लेने को प्रोत्साहित करें, ताकि वे अपनी योग्यता साबित कर सकें।
6. यदि आपको लगता है कि वे नियंत्रण से बाहर हो रहे हैं, दोस्तों के साथ ज्यादा वक्त बिता रहे हैं तो उनसे दोस्तों को घर लाने को कहें। हमउम्र दोस्तों की तरह व्यवहार करें। जरूरत पडे तो मनोवैज्ञानिक की राय भी लें।
7. दूसरे अभिभावकों के अनुभवों का फायदा उठाएं। उनसे पैरेंटिंग टिप्स लें।
पारिवारिक मसला
1. 90 फीसदी अवसादग्रस्त किशोर घरेलू विवादों के चलते परेशान होते हैं। हालांकि उन्हें झगडे का कारण नहीं पता होता।
2. 46 फीसदी अवसादग्रस्त टीनएजर अच्छे से अच्छा परिणाम लाने के माता-पिता के दबाव से परेशान हैं।
3. 50 फीसदी इसलिए अवसाद में हैं, क्योंकि उनके अभिभावक उनकी जिंदगी के हर पहलू को नियंत्रित करना चाहते हैं।
स्त्रोत : बाल एवं किशोर मनोरोग चिकित्सालय, एम्स (दिल्ली)
मुझे स्कूल नहीं जाना
आज मुझे स्कूल नहीं जाना, मुझे स्कूल अच्छा नहीं लगता। मुझे बोरियत हो रही है, रोज-रोज जाना जरूरी है क्या?
प्राइमरी कक्षा में ही नहीं, सीनियर कक्षाओं में भी बच्चे कई बार ये शिकायतें करते नजर आते हैं। बोरियत कभी-कभार सभी को होती है। लेकिन जब बच्चे रोज स्कूल न जाने के बहाने बनाएं और कहें कि बोर हो रहे हैं तो उनकी शिकायतों पर ध्यान देना जरूरी है। ऐसा कई कारणों से हो सकता है।
अच्छा नहीं लगता स्कूल
1. एकाएक मौज-मस्ती की दुनिया से गंभीरता की ओर कदम बढना पहला कारण हो सकता है। उन्हें समझाना जरूरी है कि जीवन मौज-मस्ती का ही नाम नहीं। हमेशा अपनी इच्छा से कार्य करें, यह संभव नहीं। कुछ काम इच्छा के खिलाफ भी करने होते हैं, क्योंकि वे हमारे हित में होते हैं। जैसे बीमार होने पर दवा लेना।
2. विषय समझ में न आ रहा हो, टीचर्स या सहपाठियों के साथ तालमेल न बैठ रहा हो या कोई अन्य कारण हो। माता-पिता को अपने टीनएजर्स को भरोसे में लेकर उनके स्कूल न जाने की वजह पूछनी चाहिए, साथ ही शिक्षकों से भी मिलना चाहिए।
कुछ खास हूं मैं
कई बार विशेष स्वभाव वाले टीनएजर्स स्कूल में बोरियत की शिकायत करते हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि कुछ छात्र स्कूल के बने-बनाए ढर्रे के अनुसार काम नहीं कर पाते। हालांकि इसका अर्थ यह नहीं है कि वे पढाई में अच्छे नहीं हैं। हो सकता है कि वे होमवर्क न कर पाते हों, गलतियां करते हों, लेकिन क्लास टेस्ट में बेहतर कर सकते हैं। कोर्स से थोडा अलग सवालों के जवाब भी वे दे सकते हैं। इस प्रवृत्ति के टीनएजर कुछ ऐसा करते हैं-
1. कम पढने के बावजूद औसत या अच्छे ग्रेड से उत्तीर्ण होते हैं।
2. उनका काम व्यवस्थित नहीं होता। मसलन उनकी हैंडराइटिंग खराब हो सकती है, जिसे सुधारने के प्रति उनकी इच्छा भी नहीं दिखती।
3. ऐसे विषयों में अचानक रुचि लेना बंद कर देते हैं, जिनमें पहले उनकी रुचि रही हो।
4. प्रोजेक्ट और एसाइनमेंट्स के जरिये उन्हें विषय ज्यादा समझ में आता है।
5. रीडिंग के लिए कहने पर इतनी तेजी से पढते हैं कि दूसरे छात्रों की समझ में न आए। डर लगता है प्रोजेक्ट से
कई छात्रों को विषय ही समझ में नहीं आता। हालांकि वे होमवर्क नियमित करते हैं, सीधे सवालों के जवाब भी देते हैं, लेकिन प्रोजेक्ट्स या परीक्षा में गडबड कर सकते हैं। विषय से अलग या घुमाकर सवाल देने पर इन्हें परेशानी होती है। शिक्षक से मिलकर जानने की कोशिश करें कि क्या वे शुरू से ऐसे हैं या कुछ समय से उनमें बदलाव आ रहा है, क्योंकि तभी आप समस्या को समझ सकेंगे। सामान्यत: शिक्षक ही इसका निदान कर सकते हैं, लेकिन कई बार मनोवैज्ञानिक सलाह की जरूरत पड सकती है।
चाहिए शिक्षक का ध्यान
कई टीनएजर्स को हर कदम पर प्रोत्साहन की जरूरत पडती है। शिक्षक यदि व्यक्तिगत तौर पर इन पर ध्यान दें तो वे अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं। इसके विपरीत ऐसा न होने पर इन्हें बैक बेंचर होने में देर नहीं लगती। ऐसे छात्र प्राथमिक कक्षाओं में बेहतर होते हैं, लेकिन बडी कक्षाओं में जाकर पिछडने लगते हैं। क्योंकि यहां उनके दोस्त, सहपाठी और शिक्षक अलग हो जाते हैं।
मुश्किल में हैं किशोर
स्कूल जाने वाले 10-12 फीसदी बच्चों को स्वास्थ्य और व्यवहार संबंधी कई गंभीर समस्याएं हैं। उन्हें इलाज की जरूरत है।
आईसीएमआर (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) और डब्लूएचओ (व‌र्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन)
1. 90 फीसदी किशोर स्कूल से भागते हैं
2. 70 प्रतिशत में तनाव, मूड स्विंग, व्यर्थता बोध जैसे लक्षण पनप रहे हैं।
3. 40 से 50 फीसदी को सिर दर्द, वजन संबंधी समस्याएं पैदा हो रही हैं।
4. 43 प्रतिशत को परीक्षा भय सताता है।
5. 40 फीसदी किशोर सिब्लिंग राइवलरी से त्रस्त हैं।
6. 36 फीसदी छात्र स्कूल से परेशान हैं।
7. 20 प्रतिशत सजा से घबराते हैं।
8. 17 फीसदी माता-पिता की टोकने की आदत से परेशान हैं।
स्त्रोत : बाल एवं किशोर मनोरोग चिकित्सालय, एम्स (दिल्ली)
दोस्तों का दबाव
पियर प्रेशर का अर्थ है हमउम्र सहपाठी, साथी या समूह द्वारा व्यवहार, नजरिए और मूल्यों को बदलने का दबाव। यह हर उम्र के लोगों पर होता है, लेकिन टीनएज में यह दबाव सर्वाधिक होता है। यह उम्र है, जब युवा होते सपनों को पंख फैलाने की इच्छा जागने लगती है। कई बार वे दोस्तों की नकल करने लगते हैं। उनकी तरह कपडे पहनने, एक्सेसरीज खरीदने से लेकर उनके बोलने तक की स्टाइल को कॉपी करना उनका फितूर बनने लगता है। इसमें कुछ अस्वाभाविक भी नहीं है। यह उम्र का सहज बदलाव है। बस माता-पिता को ध्यान रखना पडता है कि उनके बडे हो रहे बच्चे कहीं अपनी मौलिकता को पूरी तरह खत्म न कर दें।
कई बार टीनएजर्स खुद को दोस्तों की जमात में फिट नहीं पाते और अकेलेपन से ग्रस्त होने लगते हैं। उन्हें लगता है, वे कुछ अलग हैं। कभी हीनता तो कभी श्रेष्ठता-भावना के चलते वे दोस्तों के साथ मिक्स-अप नहीं हो पाते। ब्रूस ए. एप्सटीन पियर प्रेशर पर लिखी गई अपनी पुस्तक में लिखते हैं, हमउम्र साथियों के साथ जुडाव बच्चों के स्वस्थ विकास के लिए जरूरी है। खास तौर पर टीनएजर्स के लिए, जबकि उनमें माता-पिता से अलग एक स्वतंत्र चेतना आकार लेने लगती है।
रोल मॉडल होते हैं दोस्त
पियर प्रेशर का प्रभाव टीनएज में बहुत पडता है। इसके सकारात्मक प्रभाव में उन्हें अपनी जिम्मेदारियों का एहसास होता है। वे पढाई के साथ-साथ रचनात्मक गतिविधियों में भागीदारी करने लगते हैं, उनकी रुचियां परिष्कृत होने लगती हैं, क्योंकि साथी उनके रोल मॉडल होते हैं। नकारात्मक प्रभाव उन्हें गलत कार्यो की ओर प्रेरित करता है। इसमें क्लास छोडना, ड्रग्स या सिगरेट की लत पडना, ईव टीजिंग, ग्रुप बनाकर टीचर्स या अन्य सहपाठियों को डराना-धमकाना जैसी तमाम बुरी आदतें उन्हें घेरने लगती हैं। जाहिर है, ऐसा वे बडे यानी सीनियर साथियों से प्रभावित होकर करते हैं।
दोस्तों से सर्वाधिक प्रभावित होते हैं 12 से 15 वर्ष की आयु वाले टीनएजर। शोध बताते हैं कि ऐसे बच्चे भी दोस्तों के प्रभाव में जल्दी आते हैं, जिन्हें घर में कम सपोर्ट मिलता है। घर में प्यार न मिलने पर बच्चे उसे बाहर तलाशने लगते हैं। उनकी भावनात्मक असुरक्षा का फायदा चालाक छात्र उठा लेते हैं।
क्या करें अभिभावक
1. अभिभावक होने के नाते अपने किशोरों का मार्गदर्शन करना आपका दायित्व है। याद रखें, वे कभी उन मूल्यों को नहीं छोडेंगे, जो बचपन से उन्हें दिए गए हैं। फिर भी जरूरी है कि आप पियर प्रेशर के बारे में उन्हें समझाएं।
2. आमंत्रित करें। यदि वे नकारात्मक प्रवृत्ति वाले नजर आते हैं तो अपने बच्चों को इस बारे में सचेत करें।
3. बच्चों को न कहना सिखाएं। यदि उनका कोई दोस्त जबरन ऐसा कार्य करवाना चाहता है, जिसे वे नहीं करना चाहते तो अच्छा होगा कि वे उदारतापूर्वक न कह दें। यदि सीधे बोलने में उन्हें हिचक हो तो नहीं, धन्यवाद, मुझे जाना चाहिए.. जैसे वाक्य बोल सकते हैं। बच्चों को सिखाएं कि साथियों या सीनियर लडकों के गलत दबाव से कैसे बचें।
4. किशोरों के व्यवहार में किसी अप्रत्याशित बदलाव को नजरअंदाज न करें। उनके दोस्तों के बारे में अवश्य जानकारी हासिल करें और टीचर्स से मिलें। हो सकता है, वे किसी गलत समूह के दबाव में आ रहे हों।
5. उनसे मित्रवत व्यवहार करें। उनके साथ सहज और खुला व्यवहार रखें, ताकि वे आपसे हर बात शेयर कर सकें। उनसे कभी ऐसी उम्मीदें न रखें, जिन्हें वे पूरा न कर सकें।
6. उनकी रचनात्मक गतिविधियों को बढावा दें। पुस्तकें पढने, संगीत सुनने, कलात्मकगतिविधियों में हिस्सा लेने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करें।
7. उनसे कोई गलती हो जाए तो सजा देने के बजाय उन्हें समझाएं और बताएं कि किस तरह के साथियों से वे दूर रहें। उन्हें सिर्फ यह न बताएं कि यह कार्य गलत है, बल्कि वह कार्य क्यों गलत है, यह भी जरूर बताएं। तभी वह सकारात्मक ढंग से सोच सकेंगे।
पेरेंटिंग टिप्स
1. बातें गंभीरता से सुनें। घर में ऐसा माहौल बनाएं कि वे खुलकर अपनी बात कह सकें। उनके दोस्तों-सहपाठियों की जानकारी अवश्य रखें।
2. क्रिकेट, फुटबाल, बैडमिंटन, हॉकी जैसे खेलों में उनकी भागीदारी बढाएं। इसके अलावा नृत्य, संगीत, पेंटिंग जैसी कलाओं में उनकी रुचि जगाएं, अच्छी पुस्तकें पढने को दें।
3. उनके दृष्टिकोण को भी महत्व दें। अपने अहं के चलते बच्चों को हथियार के बतौर न इस्तेमाल करें।
4. बच्चों के पहले रोल मॉडल माता-पिता ही होते हैं। उनके सामने कभी न झगडें।
5. बात-बात पर बढते बच्चों को न टोकें। उन्हें कठोर सजा देने से भी बचें।
डॉ.ज्योति (काउंसलर, सालवान स्कूल, दिल्ली)
कलम वाले हाथों में हथियार!
कुछ समय पूर्व गुडगांव (हरियाणा) के एक नामी स्कूल में दो छात्रों के बीच झगडा इतना बढा कि एक ने दूसरे की गोली मारकर हत्या कर दी। एक अन्य स्कूल के दो लडकों के बीच हुई लडाई में एक ने दूसरे के पैर में चाकू से इतने वार किए कि वह मर गया। सवाल यह है कि आखिर पेन-पेंसिल और बॉल पकडने वाले हाथों में पिस्तौल, चाकू और हथियार क्यों? किशोर उम्र में बढती हिंसा और आक्रामकता के कुछ कारण इस तरह हैं-
घरेलू माहौल
संयुक्त परिवारों के कम होने और एकल परिवारों के बढने का सबसे बुरा प्रभाव किशोरों पर ही पडा है। अधिकतर माता-पिता कामकाजी हैं। सुख-सुविधाएं बढी हैं, लेकिन समय की कमी है। दादा-दादी के पास बैठकर शिक्षाप्रद कहानियां सुनने की बातें खुद ही किस्सा बन गई हैं। मोबाइल-टीवी के शोर में संवाद की गुंजाइश और कम होती जा रही है। बच्चे खुल कर माता-पिता या बडे, बहन-भाइयों को अपनी समस्याएं नहीं बता पाते, अकेले ही उससे जूझते रहते हैं। समाधान न मिलने पर अपनी खीज और गुस्से को दूसरों से मारधाड या तोड-फोड के रूप में प्रकट करते हैं। आजकल माता-पिता अपने बच्चों की हर उचित-अनुचित मांगें पूरी करने लगते हैं, जो गलत है। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि सभी सुख-सुविधाएं आसानी से मिल जाने के कारण भी उनकी सहनशक्ति और संघर्ष क्षमता कम होती जा रही है। इसलिए किशोरों की मांगें पूरी जरूर करें, लेकिन उन्हें यह एहसास भी बीच-बीच में कराएं कि अनुचित मांगों को नहीं पूरा किया जाएगा।
दबाव झेलते किशोर
माता-पिता की अपेक्षाएं बच्चों से बहुत बढ गई हैं। कई बार उन्हें पूरा न कर पाने का दबाव, मित्रों से प्रतिस्पर्धा, ईष्र्या, दोस्तों से झगडा या उनसे न मिल पाने जैसे कई दबाव उन्हें झेलने पडते हैं। किशोरों पर सबसे बडा दबाव है आधुनिक और पाश्चात्य जीवनशैली के साथ परंपरागत पारिवारिक मूल्यों का तालमेल बैठाना। अजीब से संक्रमण काल से गुजर रहे हैं टीनएजर्स। उनकी समस्याएं सुलझाना तो दूर, आजकल माता-पिता के पास धैर्यपूर्वक उन्हें सुनने तक की फुर्सत नहीं है।
स्कूलों में बढता व्यवसायीकरण
कभी गुरु-शिष्य का संबंध मिसाल हुआ करता था। समय के साथ स्थितियां उलट गई। स्कूल व्यावसायिक केंद्रों में तब्दील हो गए हैं। बच्चों में नैतिक मूल्यों की शिक्षा देने का कर्तव्य अब शिक्षकों का नहीं रहा। अध्यापकों का रूखा व्यवहार और छोटी-छोटी गलतियों पर कडी सजा देना किशोर छात्रों को क्रोधी बना देता है। इन हिंसक प्रवृत्तियों को सुधारने की दिशा में कोई सार्थक प्रयास भी नहीं हो रहा।
सविता स्याल (पूर्व प्रधानाचार्या वसंत बैली पब्लिक स्कूल, गुडगांव, हरियाणा)
मीडिया भी बना रहा है हिंसक
पिछले दो दशकों में किशोर उम्र के लडके-लडकियों पर हुए अध्ययन बताते हैं कि टीवी पर आने वाले हिंसक कार्यक्रमों का उन पर घातक असर पडता है। हिंसक छवियों का टीनएजर्स पर इस तरह प्रभाव पडता है:
1. ऐसे कार्यक्रमों में स्त्री को हमेशा निरीह भुक्तभोगी के बतौर दिखाया जाता है। लडकियों के मन में भय पैदा होता है। उन्हें लगता है कि उनके इर्द-गिर्द का समाज बहुत दूषित है। उनके मन में समाज की नकारात्मक छवि रच-बस जाती है।
2. कार्टूस भी किशोरों को हिंसक बना रहे हैं। एक ओर जहां उनकी भाषा-शैली गलत प्रभाव डाल रही है, वहीं दूसरी ओर स्टंट दिखाने वाले कई धारावाहिक और उनके करामाती चरित्र बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं। उन्हें लगता है कि वे भी इतने ही बलशाली और ताकतवर हो सकते हैं।
3. अध्ययन बताते हैं कि ज्यादा टीवी देखने वाले बच्चों के स्कूल प्रदर्शन और उनकी याददाश्त क्षमता पर भी नकारात्मक प्रभाव पडता है। वे चिडचिडे हो रहे हैं। स्कूल के बाद बचे समय में पुस्तकों, शारीरिक गतिविधियों, संगीत, प्रकृति के सान्निध्य में या अन्य रचनात्मक कार्यो में खर्च होने वाला समय टीवी ले रहा है।
4. टेलीविजन एडिक्शन शीर्षक से एक मैगजीन में प्रकाशित लेख के अनुसार, टीवी दर्शकों को अपना आदी बना लेता है। रिमोट में स्विच ऑफ के विकल्प के बावजूद लोगों पर अनावश्यक चैनल्स बदलने की खब्त सवार रहती है।
5. शोध बताते हैं कि 15 मिनट खेलने केबाद आपको अपने भीतर ऊर्जा महसूस होती है, लेकिन टीवी महज आंखों में जलन और थकान का अनुभव कराता है। अमूमन किशोर दिन के दो से तीन घंटे टीवी के आगे बिताते हैं, जिससे न सिर्फ उनकी मानसिक स्थिति पर कुप्रभाव पडता है, बल्कि उनका स्वास्थ्य भी बहुत प्रभावित होता है।
6. अध्ययनों के अनुसार, मीडिया में जिस तरह रक्तरंजित और सनसनीखेज खबरों का दौर चल निकला है, उसका टीनएजर्स पर नकारात्मक प्रभाव पड रहा है। वे समय से पूर्व परिपक्व हो रहे हैं। उन्हें बडी से बडी घटना भी महज एक खबर लगती है। टीवी उनकी संवेदनशीलता खत्म कर रहा है।
7. अकेले टीवी देखना ज्यादा हानिकारक है। बडे होते बच्चे अपनी सहज बुद्धि के अनुसार दृश्यों का अर्थ निकालते हैं। माता-पिता साथ बैठकर टीवी देखें, उन्हें चीजों का मर्म समझाएं तो किशोरों के मन में सही संदेश जा सकता है।
डॉ. जितेंद्र नागपाल (वरिष्ठ सलाहकार, बाल मनोविज्ञान, दिल्ली)
हमें भी चाहिए अपना कोना
किशोर उम्र तक पहुंचते-पहुंचते अचानक बच्चों की दुनिया बडी होने लगती है। उनके भीतर स्व की भावना आने लगती है। वे माता-पिता के सामने खुलकर कुछ बोलने में हिचकने लगते हैं, इसके विपरीत दोस्तों के साथ समय बिताने की उनकी इच्छा बढने लगती है। व्यक्तित्व विकास के लिए उन्हें इतनी आजादी देनी जरूरी भी है।
तलाश अपने वजूद की
यह वह दौर है, जहां एक ओर बचपन छूटने का अफसोस होता है, वहीं युवावस्था में पहुंचने की उत्सुकता रहती है। तेजी से हो रहे शारीरिक-मानसिक विकास के साथ ही हार्मोन संबंधी बदलाव भी आ रहे होते हैं। वे खुद को भी नए सिरे से पहचानने की कोशिश कर रहे होते हैं। अपनी पसंद और रुचि से जुडे कार्य अपने ही ढंग से करना चाहते हैं। मेरा सामान, मेरे दोस्त, मेरे खिलौने जैसे एहसास उनके मन में एक खास अधिकार भावना जगा रहे होते हैं। वे छोटी-छोटी चीजों को प्यार से संभाल कर रखना सीख जाते हैं और जब कोई दूसरा व्यक्ति उनकी चीजों को छूता है तो वे नाराज हो जाते हैं। उनमें शीघ्र ही बडों की तरह दिखने और व्यवहार करने की तीव्र आकांक्षा भी जाग उठती है।
जरूरी है थोडा अकेलापन
यह सहज बदलाव है कि इस उम्र में बच्चे माता-पिता और परिवार से थोडा कटा हुआ महसूस करते हैं और उन्हें कुछ वक्त अकेले अपने साथ बिताना अच्छा लगने लगता है। किशोरों के व्यक्तित्व विकास में निजता की भावना (पर्सनल स्पेस) का महत्वपूर्ण योगदान होता है। यही वह समय है, जब उन्हें अपने वजूद का एहसास होता है। उन्हें अपने बारे में सोचना अच्छा लगता है, उनकी कल्पनाओं के पंख फैलने लगते हैं। रचनात्मक अभिरुचि वाले बच्चे इसी उम्र में अकेले बैठकर पेंटिंग करने और कविताएं-कहानियां लिखने की कोशिश करते हैं। इसलिए बौद्धिक विकास के लिए थोडा पर्सनल स्पेस बच्चे के लिए फायदेमंद साबित होता है।
दरअसल यह विकास की स्वाभाविक प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से उनके स्वतंत्र व्यक्तित्व का निर्माण हो रहा होता है। इसलिए किशोर उम्र में यह जरूरी है कि अपने बच्चों को थोडा पर्सनल स्पेस दें।
विनीता
मनोवैज्ञानिक सलाह
पर्सनल स्पेस बच्चों के विकास के लिए बहुत जरूरी है। एक उम्र के बाद उनकी निजता और एकाकीपन का सम्मान भी किया जाना चाहिए, लेकिन इसके साथ अभिभावकों को इन बातों का ध्यान रखना चाहिए :
1. पर्सनल स्पेस का इस्तेमाल वे कैसे कर रहे हैं। अगर कभी उनकी गतिविधियां संदिग्ध नजर आएं तो सावधान हो जाएं और निगरानी रखें।
2. टीनएजर बच्चे के दोस्तों के बारे में जानकारी रखें। उन्हें घर पर बुलाएं, ताकि पता चल सके कि आपके बच्चे किससे और क्यों मिल रहे हैं। उनके करीबी दोस्तों के बारे में पूरी जानकारी रखें।
3. मोबाइल आज सबकी जरूरत बन चुका है। इसका सर्वाधिक उपयोग तो टीनएजर ही कर रहे हैं। मोबाइल उन्हें जरूर दें, लेकिन ध्यान रखें कि वे लंबी बात न करें। बेहतर हो कि उन्हें प्रीपेड रिचार्ज कूपन दिलाएं। रात में उनका सेट अपने पास रख लें।
4. कभी-कभी उनका मोबाइल अपने पास रखें या उनके कॉल्स खुद अटेंड करें, ताकि उनके दोस्तों और गतिविधियों के बारे में सही जानकारी मिल सके।
5. उनके बेडरूम में टीवी या कंप्यूटर न रखें। अगर कंप्यूटर हो तो रात में इंटरनेट कनेक्शन हटा दें, क्योंकि उत्सुकतावश बच्चे इंटरनेट का गलत इस्तेमाल कर सकते हैं।
6.बेडरूम की सफाई खुद करें। उनके वार्डरोब, बुकशेल्फ पर अवश्य नजर डालें। यदि उनके कमरे में कोई आपत्तिजनक वस्तु मसलन, सिगरेट, शराब जैसी चीजें मिलती हैं तो उन्हें डांटने के बजाय अपना व्यवहार संयत रखें और प्यार से उन्हें इन तमाम चीजों के खतरों और साइड-इफेक्ट के बारे में समझाएं।
7. आजकल माता-पिता किशोर होते बच्चों से दोस्ताना व्यवहार करते हैं। यह उचित भी है। लेकिन यह भी ध्यान रखें कि कभी-कभी उनके मन में अभिभावकों का भय या दबाव भी बनाए रखना जरूरी है। यह भय इतना हो कि वह कुछ भी गलत करने से पूर्व एक बार अवश्य सोच लें।
8. अंत में एक जरूरी सलाह कि टीनएजर्स की गतिविधियों पर नजर जरूर रखें, लेकिन इस तरह कि उन्हें यह महसूस न हो कि आप उनकी जासूसी कर रहे हैं। बात-बात पर उन्हें रोकना-टोकना भी ठीक नहीं।
डॉ.जयंती दत्ता (वरिष्ठ मनोविश्लेषक, दिल्ली)
गैजेट्स की दुनिया में टीनएजर
कोई नया गैजेट बाजार में आया नहीं कि वह आपके किशोरों के पास होता है, या उनकी मांग शुरू हो जाती है। कई बार तो बच्चे ही आपको उसकी जानकारी देते हैं। ऐसा सिर्फ आपके ही साथ नहीं, दूसरे पेरेंट्स के साथ भी होता है। सिर्फ उन्हें छोडकर जो व्यावसायिक या किसी अन्य वजह से गैजेट्स के बाजार से जुडे हैं। बाकी लोग नई इलेक्ट्रॉनिक चीजों के बारे में थोडी ही जानकारी रखते हैं।
थोडा पीछे मुडकर देखें तो उन दिनों भी ऐसा ही होता था जब आप किशोर थे। कई ऐसी चीजें होती थीं, जिनके बारे में आपके माता-पिता बाद में जानते थे और आप पहले। फर्क सिर्फयह है कि तब इसकी गति थोडी कम थी। क्योंकि उन दिनों विज्ञान और तकनीक का बाजार इतनी तेजी से तरक्की नहीं कर रहा था। हर महीने नई चीजें बाजार में नहीं आ जाती थीं। उन दिनों इतनी आजादी और सुविधा भी नहीं थी कि आप जब जो चाहें हासिल कर लें।
नया जानने की जिज्ञासा
नया जानने और हासिल करने की चाह ही आपको आगे बढने और कुछ कर गुजरने के लिए प्रेरित करती है। लेकिन चाह की दिशा कैसी हो, यह तय करना जरूरी है।
यह सही है कि आज बाजार में एक हजार से लेकर लाखों रुपये मूल्य तक के मोबाइल उपलब्ध हैं। ऊंचे दाम वाले आईफोन, आईपॉड और तमाम तरह के सॉफ्टवेयर्स एवं सुविधाओं से युक्त कंप्यूटर हैं। थ्री जी यानी तीसरी पीढी के मोबाइल फोन पुराने हो चुके हैं। नई पीढी की दिलचस्पी फोर जी यानी चौथी पीढी के मोबाइल फोन में है। कैमरा, वॉयस रिकॉर्डर, एफएम, मीडिया प्लेयर, एमएमएस ..! एक छोटे से मोबाइल में इतनी सुविधाएं! यह आपके लिए चौंकाने वाली बात हो सकती थी, मगर नई पीढी तो अब टच स्क्रीन फोन गैजेट्स चाहती है। कंप्यूटर के नाम पर वह 40 एमबी हार्ड डिस्क और 128 एमबी रैम वाला डेस्कटॉप पाकर बाग-बाग नहीं हो जाएगी। सीआरटी मॉनिटर वह देखना ही नहीं चाहती। उसे टीएफटी चाहिए, जो सुविधाजनक और फैशनेबल हो, जिसमें ब्रॉडबैंड के साथ ही वीएलसी या साइबर लिंक मीडिया प्लेयर, वेबकैम जैसी सुविधाएं हों। इतने पर भी अब उन्हें लैपटॉप चाहिए।
हासिल करना हुआ आसान
किशोरों के लिए नए-नए गैजेट्स के बारे में जिज्ञासा वैसे ही है, जैसे आसपास की दुनिया के बारे में जानने की उनकी चाह। उसे हासिल करने की चाह भी वैसे ही है जैसे एक बच्चे का चांद-सितारे तोड लाने की जिद। फर्क सिर्फ यह है किबच्चा यह नहीं जानता कि चांद-सितारे पाए जाने लायक चीजें नहीं हैं, इसलिए वह उन्हें पाने की जिद करता है। जबकि किशोर जानता है कि चांद-सितारे पाए नहीं जा सकते, वह यह भी जानता है कि उन्हें पा लेना किसी काम का भी नहीं है। उनके सोचने-समझने की क्षमता बच्चों की तुलना में बहुत अधिक होती है। क्योंकि किशोरावस्था तक आते-आते उनके व्यक्तित्व के निर्माण की भावभूमि लगभग बन चुकी होती है। वे उन चीजों को पाना चाहते हैं, जो उनकी पहुंच में हैं और उनके काम की हैं। वे ज्यादातर चीजें पा भी रहे हैं। भारत में 15 से 24 की आयु वर्ग के लोगों का जेबखर्च 900 करोड रुपये प्रतिदिन आंका गया है। इसका सालाना आंकडा निकालें तो भारत के रक्षा बजट का तीन गुना आता है। इसका सबसे बडा हिस्सा गैजेट्स पर खर्च हो रहा है। सक्षम माता-पिता के किशोरों के पास नए गैजेट्स देखे जा सकते हैं।
किस सीमा तक जरूरी हैं गैजेट्स
सवाल यह है कि महंगे गैजेट्स की जरूरत उन्हें क्यों है? जरूरत मोबाइल फोन हो सकता है, उसमें कैमरा नहीं। यह सिर्फ स्टेटस सिंबल का मामला होता है, जिसका विस्फोटक नतीजा एमएमएस कांड के रूप में सामने आ चुका है। उनकी जरूरत कंप्यूटर हो सकता है, पर उसमें वेबकैम या वीएलसी की मौजूदगी जरूरत से इतर मामला है। ऐसी स्थिति में माता-पिता की जिम्मेदारियां बढ जाती हैं। उन्हें सिर्फ इसलिए कोई चीज न दें कि वे चाहते हैं, यह खयाल भी रखें कि कोई चीज न पाने के कारण उनके मन में कोई ग्रंथि न बनने पाए। इसके लिए आपको कोई बीच का रास्ता निकालना होगा।
इष्ट देव सांकृत्यायन
विशेष सहयोग : डॉ.जितेंद्र नागपाल (वरिष्ठ सलाहकार, मनोरोग और बाल मनोविज्ञान, मूलचंद मेडिसिटी, दिल्ली)

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निन्टेंडो खेल-खेल में स्टडी

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क्या आप लेफ्टिनेंट, जिम्नेजियम आदि जैसे शब्दों को लिखने में कठिनाई महसूस करते हैं या मैथ्स के प्रॉब्लम्स सॉल्व नहीं कर पाते? तो फिर आपके लिए यह खुशखबरी है कि अब इस प्रॉब्लम के कारण आपको ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है। यदि आप चाहें, तो खेल-खेल में अपनी प्रॉब्लम्स सॉल्व कर सकते हैं! दरअसल, आज तक आप जिस निन्टेंडो पर केवल वीडियो गेम का मजा लिया करते थे, अब वही गेम अंग्रेजी के डिफिकल्ट व‌र्ड्स को याद करने तथा मैथ्स के कठिन सवाल हल करने में भी आपकी मदद करेगा।
क्या है निन्टेंडो?
निन्टेंडो एक जापानी शब्द है, जिसका अर्थ है- अपने भाग्य को ऊपर वाले के भरोसे छोड दो! दरअसल, सन् 1890 में एक जापानी नागरिक फूसाजिरो यामुची निन्टेंडो नाम से प्लेइंग का‌र्ड्स यानी ताश के पत्तों का व्यवसाय किया करता था। इसके करीब नब्बे साल बाद यानी वर्ष 1980 में यामुची के पुत्रों ने निन्टेंडो नाम से ही अमेरिका में एक एंटरटेनमेंट कंपनी की स्थापना की। इस कंपनी ने कई पॉपुलर वीडियो गेम सिस्टम, जैसे-निन्टेंडो 64, निन्टेंडो गेम-क्यूब, गेम ब्वॉय एडवांस, गेम ब्वॉय, निन्टेंडो डीएस गेम कंसोल आदि को लॉन्च किया। हम यहां इन्हीं में से एक वीडियो गेम सिस्टम निन्टेंडो डीएस कंसोल के बारे में बात करेंगे।
क्या है निन्टेंडो डीएस?
निन्टेंडो डीएस हाथों में रखकर खेला जाने वाला एक गेम कंसोल (कम्प्यूटर गेम सिस्टम) है। इसकी संरचना गेम ब्वॉय एडवांस की तरह ही है। इसमें दो एलसीडी स्क्रीन लगे होते हैं, जिस में नीचे वाली स्क्रीन टच-स्क्रीन कहलाती है। निन्टेंडो डीएस में वायरलेस (वाइ-फाइ) माइक्रोफोन भी लगा होता है, जिसके सहारे 10-30 मीटर की रेंज में बैठे निन्टेंडो प्लेयर्स आपस में कनेक्ट हो सकते हैं।
इसके अलावा, निन्टेंडो प्लेयर्स ऑनलाइन भी कनेक्ट हो सकते हैं। इस गेम की सबसे बडी खासियत यही है कि सिर्फ एक गेम कार्ड से मल्टीप्लेयर्स गेम्स, जैसे कि मारियो पार्टी डीएस, मारियो कार्ट डीएस आदि खेल सकते हैं, बशर्ते कि खिलाडी 100 फीट की रेंज में बैठे हों।
कब आया निन्टेंडो डीएस कंसोल?
निन्टेंडो डीएस कंसोल सबसे पहले जापान में वर्ष 2004 में आया। इसके बाद यहां से यह कनाडा, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, फ्रांस आदि होता हुआ वर्ष 2006 में भारत पहुंचा। शुरू में इसकी पहुंच केवल दिल्ली तथा मुंबई जैसे महानगरों में ही थी, लेकिन अब देश भर के बच्चे इससे परिचित हो चुके हैं।
क्या पढाई में है मददगार?
दरअसल, जापान में कम्प्यूटर प्रोग्राम डीएस इंग्लिश प्रोग्राम तथा डीएस मैथ्स प्रोग्राम तैयार किया गया है, जिसे निन्टेंडो डीएस कंसोल में फीड किया जाता है। इसमें एकेडेमिक स्किल को इम्प्रूव करने के लिए कई पजल्स गेम, ब्रेनटीजर्स आदि ज्ञान बढाने वाले चैप्टर्स भी उपलब्ध हैं। ये सभी पढाई में आपके मददगार हो सकते हैं।
यदि आपको अंग्रेजी के कठिन शब्दों को सही-सही लिखना है, तो यह कंसोल आपकी मदद कर सकता है। उदाहरण के लिए, यदि आप मैसेज वर्ड लिखना चाहते हैं, तो आप प्लास्टिक पेन से नीचे वाली स्क्रीन पर उस शब्द को लिखिए। आप पाएंगे कि यदि आपने गलत टाइप किया है, तो उसके स्थान पर सही वर्ड खुद-ब-खुद स्क्रीन पर आ जाएगा। साथ ही, आप मशीन से वर्ड की सही स्पेलिंग की आवाज भी सुन सकते हैं। इसी तरह, स्क्रीन पर मैथ्स के प्रॉब्लम्स लिखने के बाद
आप उसका सही हल भी पा सकते हैं।
क्या है पिक्टो चैट?
यदि तीन-चार यूजर्स 30 फीट के लोकल वायरलेस रेंज में निन्टेंडो डीएस की सहायता से पढाई कर रहे हैं, तो वे आपस में इंटर-कनेक्ट भी हो सकते हैं। यूजर्स टचस्क्रीन अथवा की-बोर्ड की सहायता से टेक्स्ट या पिक्चर ड्रा कर सकते हैं। इसमें चार चैटरूम ऑप्शन बने होते हैं, जिससे कि लगभग 16 निन्टेंडो यूजर्स कनेक्ट हो सकते हैं।
पॉवर कट का प्रभाव
याद रहे, निन्टेंडो डीएस में डीएस डाउनलोड सिस्टम की सुविधा भी उपलब्ध होती है। दरअसल, इस सिस्टम की मदद से बाजार में लॉन्च हुए नए डीएस गेम को डाउनलोड किया जाता है। लेकिन इसमें समस्या यह आती है कि पॉवर कट होने के बाद डाउनलोड किया गया गेम इरेज हो जाता है।
(जागरण इंस्टीटयूट ऑफ मैनेजमेंट ऐंड
मास कम्युनिकेशन के डायरेक्टर
जे. आर. शरण
से बातचीत पर आधारित)
स्मिता
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मैंगो विद आइसक्रीम

Recipes Khana Khazana - Jagran Yahoo! India

विधि :
आम धोकर छिलका उतार लें। फिर छोटे टुकड़ों में काटकर मिक्सी में ब्लेंड करें। अब इसमें स्वादानुसार चीनी और 1 गिलास दूध डालकर अच्छी तरह ब्लेंड करें।
ठंडा करने के लिए फ्रिज में रखें। ठंडा होने पर आम मिश्रण को ग्लास में डालें। आइसक्रीम को फेंटकर झाग बनाते हुए ग्लास में डालें। ऊपर से मेवे डालकर ठंडा-ठंडा सर्व करें।

सामग्री :
2 आम, 5 स्कूप वनीला आइसक्रीम, 1 गिलास दूध, स्वादानुसार चीनी, 1/4 टी स्पून पिसी इलायची, 2 टी स्पून बादाम, पिस्ता और काजू के टुकड़े।
कितने लोगों के लिए : 4

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दाल और लौकी का चीला

Channels Recipes - Jagran Yahoo! India


विधि :
दालों को साफ करके पानी से अच्छी तरह धोकर 5-6 घंटे के लिए पानी में भिगो दीजिए। जब दाल भीग जाये तो उसे छन्नी में डालकर उसका सारा पानी निकाल लें और मिक्सी में डालकर बारीक पीस लें।
लौकी को छीलकर धो लीजिए और कद्दूकस कर लीजिए। दाल के पेस्ट में कद्दूकस कि हुई लौकी, अदरक, हरी मिर्च, प्याज, हींग, नमक और लाल मिर्च डाल दें, थोड़ा सा बेकिंग पाउडर डालकर अच्छी तरह फेंट लें।
नानस्टिक फ्राइंग पैन गैस पर रख कर गरम कीजिए कड़ाही में एक टे.स्पून तेल डालकर उसमें थोड़ा सा जीरा डाल दें जब जीरा चटकने लगे तो दाल का पेस्ट डालकर 1/2 इंच मोटी सतह में फैला लीजिए और और ढक्कन से ढककर 3-4 मिनट तक पकने दें।
ढक्कन खोलिए और चीले को पलट कर दूसरी तरफ से भी पकने दें जब दाल का चीला दोनों तरफ से करारा हो जाये तो प्लेट में निकालकर धनिये की चटनी के साथ सर्व करें।

सामग्री :
100 ग्राम मूंग की दाल, 100 ग्राम चने की दाल, 50 ग्राम उड़द की दाल, 250 ग्राम लौकी, 2 टी स्पून जीरा, 1-2 चुटकी हींग, 3-4 हरी मिर्च(बारीक कटी), 1 प्याज (बारीक कटी), 2 इंच का टुकड़ा अदरक (बारीक कटी), 1/4 टी स्पून लाल मिर्च पाउडर, 3/4 टी स्पून नमक, 3/4 टी स्पून बेकिंग पाउडर, तलने के लिए रिफाइंड ऑयल।
कितने लोगों के लिए : 5


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तुम मुझे यूं भुला न पाओगे..रफी

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नई दिल्ली। सचमुच हम रफी को आज तक नहीं भूला पाएं हैं, क्योंकि उनके द्वारा गाए हुए यह गीत आज भी लोगों के जुबां पर बरबस आ ही जाता है, तुम मुझे यूं भुला न पाओगे..। वह सन 1980 की 31 जुलाई का दिन था जब मोहम्मद रफी ने लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के साथ फिल्म आस-पास के लिए एक गीत की रिकार्डिग की और उनसे जल्दी घर जाने की इजाजत मांगी। जाहिर है वहां मौजूद लोगों को इस बात से थोड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि रफी उन लोगों में से थे जो रिकार्डिग खत्म होने पर सबसे अंत में घर जाते थे, लेकिन रफी ने एक बार फिर कहा, 'मैं अब जाऊंगा'। रफी उस रात सचमुच चले गए एक लंबी अंतहीन यात्रा पर कभी वापस ना आने के लिए।
अमृतसर के निकट कोटला सुल्तानपुर कस्बे में 24 दिसंबर 1924 को हाजी अली मोहम्मद के घर छठे बेटे का जन्म हुआ। मां बाप ने प्यार से नाम रखा फीकू। वही फीकू जो आगे चलकर हिंदी सिनेमा जगत के देदीप्यमान नक्षत्र मोहम्मद रफी के रूप में उदित हुआ। रफी बचपन में ही अपने गांव के एक फकीर के सान्निध्य में आ गए, और वही उनके पहले गुरु बने। परिवार वालों ने रफी की संगीत के प्रति लगन को पहचाना और उन्हें उस्ताद बड़े गुलाम अली खान, उस्ताद अब्दुल वहीद खान और पंडित जीवन लाल मट्टू जैसे शास्त्रीय संगीत के विशारदों से संगीत की शिक्षा दिलवाई।
उन्होंने रफी की प्रतिभा को पहली बार पहचाना संगीतकार श्यामसुंदर ने और सन 1942 में उन्हे पंजाबी फिल्म 'गुल बलोच' में जीनत बेगम के साथ युगल गीत गाने का अवसर दिया। गीत के बोल थे-'सोनिये नी, हीरिये नी'। सन 1944 में रफी मुंबई चले आए। रफी की दिली तमन्ना थी कि वे एक बार केएल सहगल के साथ गाते। मुंबई आने के बाद वे नौशाद साहब से मिले और उनकी बड़ी मिन्नतें कीं कि उन्हे फिल्म शाहजहां में सहगल के साथ गाने का मौका दिया जाए लेकिन अफसोस उस समय तक शाहजहां के सभी गीतों की रिकार्डिग पूरी हो चुकी थी। अंतत: नौशाद ने उन्हे फिल्म के एक कोरस 'रूही रूही रूही मेरे सपनों की रानी' गाने का मौका दिया। खुद नौशाद ने लिखा है कि उस कोरस में अपनी आवाज देने के बाद रफी ऐसे खुश हुए मानो उनकी बहुत बड़ी मुराद पूरी हो गई हो।
दरअसल हिंदी सिनेमा का यह वह दौर था जब कमोबेश सभी पाश्‌र्र्वगायक कहीं न कहीं सहगल के मैनेरिज्म से
प्रभावित थे, रफी भी इसके अपवाद न थे। एक बात जो उन्हे अपने समय के चुनिंदा गायकों से बिल्कुल अलग करती थी वह थी उनकी आवाज की विविधता और रेज। केएल सहगल, पंकज मलिक, केसी डे समेत जैसे गायकों के पास शास्त्रीय गायन की विरासत थी, संगीत की समझ थी लेकिन नहीं थी तो आवाज की वह विविधता जो एक पाश्‌र्र्वगायक को परिपूर्ण बनाती है। इस कमी को रफी ने पूरा किया।
उल्लेखनीय है कि सन 1952 में आई फिल्म 'बैजू बावरा' से उन्होंने अपनी स्वतंत्र पहचान स्थापित की। इस फिल्म के बाद रफी नौशाद के पसंदीदा गायक बन गए। उन्होंने नौशाद के लिए कुल 149 गीत गाए जिनमें से 81 एकल थे। इसके बाद रफी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और हिंदी फिल्म जगत के प्राय: सभी धुरंधर संगीतकारों ने उनकी जादुई आवाज को अपनी धुनों में ढाला। इनमें श्याम सुंदर, हुसनलाल भगतराम, फिरोज निजामी, रोशन लाल नागर, सी. रामचंद, रवि, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, ओपी नैय्यर, शंकर जयकिशन, सचिन देव बर्मन, कल्याण जी आनंद जी आदि शामिल थे।
यूं तो रफी के गाए शानदार गीतों की लंबी फेहरिस्त है लेकिन यहां बदला वफा का बेवफाई के सिवा क्या है, इस दिल के टुकड़े हजार हुए, सुहानी रात ढल चुकी, ओ दुनिया के रखवाले, मन तड़पत हरि दरसन को आज, ये दुनिया अगर मिल भी जाए, बिछड़े सभी बारी बारी आदि उनके कुछ सार्वकालिक महान गीतों में शुमार किए जाते है।
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Monday, June 16, 2008

टीवी पर शरारत करने वाले को चेतावनी

BBCHindi.com विश्व समाचार टीवी पर शरारत करन�: "टीवी पर शरारत करने वाले को चेतावनी"

इटली की एक अदालत ने टेलीविज़न के कार्यक्रमों के दौरान शरारत करने वाले, कंडोम के प्रचारक को चेतावनी दी है अगर वो नहीं सुधरे तो जेल जाना पड़ेगा.
गैब्रियल पाओलिनी ने टेलीविज़न के सीधे प्रसारणों के दौरान शरारत करने को ही अपना पेशा बना लिया है.
वे किसी भी सीधे प्रसारण के दौरान टीवी रिपोर्टर के पीछे आकर खड़े हो जाते हैं और फिर वहाँ से कंडोम का प्रचार करते हें.
गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स का कहना है कि गैब्रियल पाओलिनी दुनिया के सबसे सफल 'टेलीविज़न-हाईजैकर' हैं और उन्होंने 20 हज़ार टेलीविज़न प्रसारणों के बीच बाधा डाली है.
लेकिन अब इटली के सुप्रीम कोर्ट ने जून 2001 में सरकारी टेलीविज़न के एक कार्यक्रम में बाधा पहुँचाने के लिए उनको दी गई तीन महीने की 'लंबित सज़ा' को बरकरार रखा है. यह ऐसी सज़ा है जो कभी भी दी जा सकती है.
अदालत ने यह भी कहा है कि यदि कोई भी व्यक्ति जानबूझ कर सीधे प्रसारण के दौरान टीवी कैमरे के सामने आता है तो इसे अपराध माना जाएगा. यदि वह व्यक्ति ख़ामोश खड़ा हो और हिलडुल न रहा हो तो भी.
मिलान में बीबीसी के संवाददाता मार्क डफ़ का कहना है कि हालांकि गैब्रियल पाओलिनी ने टेलीविज़न कार्यक्रमों के दौरान बाधा पहुँचा-पहुँचाकर नाम बना लिया है लेकिन वह ऐसा व्यक्ति नहीं है जो सिर्फ़ ध्यान आकर्षित करने के लिए ऐसा कर रहा हो, इसके पीछे कुछ गंभीर बात भी है.
पाओलिनी अपने आपको रोगनिरोधी पैगंबर बताते हैं, सिर्फ़ इसलिए नहीं कि वे हमेशा कंडोम का प्रचार करते दिखते हैं बल्कि इसलिए क्योंकि वे एड्स के ख़तरे के प्रति लोगों को जागरुक बना रहे हैं.
एक मित्र की एड्स से मौत हो जाने के बाद गैब्रियल पाओलिनी ने टेलीविज़न कार्यक्रमों के दौरान बाधा डालकर कंडोम के प्रचार को अपना पेशा ही बना लिया.
अदालत के फ़ैसले से पहले भी पाओलिनी का रास्ता कोई आसान नहीं रहा है.
बीबीसी संवाददाता का कहना है कि कई बार रिपोर्टरों से उनकी झड़पें हो चुकी हैं और कई बार तो कैमरे के सामने भी ऐसा हुआ है.

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Monday, April 28, 2008

भूतनाथ - Film Preview - Entertainment - Hindi - MSN India

भूतनाथ - Film Preview - Entertainment - Hindi - MSN India: "भूतनाथ"

ऐसा माना जाता है कि बच्चों का भगवान से सीधा संबंध होता है। उनमें यह योग्यता होती है कि वे प्रत्येक व्यक्ति और चीजों में भगवान को महसूस कर लेते हैं।

‘भूतनाथ’ कहानी है सात वर्षीय नटखट, मासूम लड़के की जो अनजाने में एक दुश्मन को अपना दोस्त बना लेता है। कहानी है बंकू और उसके दोस्त भूतनाथ की। उनके संबंध में मासूमियत, ईमानदारी और पवित्रता है।

विश्वास किया जाता है कि माँ का प्यार नि:स्वार्थ होता है, लेकिन एक बच्चे का प्यार भी ‍कम नहीं है। बच्चे के प्यार में अपेक्षा या सीमाएँ नहीं होती है। उनके प्यार में इतनी ताकत होती है कि आप चमत्कार में विश्वास करने लगते हैं।

भूतनाथ से संबंधित वीडियो देखने के लिए क्लिक करें

‘भूतनाथ’ फिल्म की कहानी में थोड़ी मासूमियत है, थोड़ी शरारत है और ढेर सारी हृदयस्पर्शी भावनाएँ हैं। इस कहानी के जरिए वयस्कों को दुनिया बच्चों की आँखों के जरिए दिखाने की कोशिश की गई है।

बी.आर फिल्म्स तले निर्मित इस फिल्म का निर्देशन विवेक शर्मा ने किया है। फिल्म में अमिताभ बच्चन, जूही चावला, अमन सिद्दकी, प्रियांशु चटर्जी, राजपाल यादव और सतीश शाह ने प्रमुख भूमिकाएँ निभाई है। शाहरुख खान भी विशेष भूमिका में नजर आएँगे। जावेद अख्तर द्वारा लिखित गीतों को विशाल-शेखर और सलीम-सुलैमान ने संगीतबद्ध किया है।

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Jagran - Yahoo! India - International :: General News

Jagran - Yahoo! India - International :: General News: "जीन थेरेपी से भी लौटेगी आंखों की रोशनी"

लंदन [जेरेमी लारेंस, द इंडिपेंडेंस]। आंख की रोशनी गंवा चुके लोगों के लिए उम्मीद की एक नई किरण है। वैज्ञानिकों ने पहली बार अंधेपन की जन्मजात बीमारी के शिकार एक किशोर की रोशनी सुरक्षित लौटाने के लिए जीन थेरेपी का इस्तेमाल किया है। परीक्षण सफल रहा है।
ब्रिटिश वैज्ञानिकों द्वारा किए गए आपरेशन से स्टीवन हावर्थ देखने में तो पूरी तरह सक्षम नहीं हो पाया है, लेकिन उसकी दृष्टि में अप्रत्याशित सुधार दर्ज किया गया है। हावर्थ की सबसे ज्यादा खराब आंख में इंजेक्शन के जरिए जींस प्रत्यारोपित किए गए। जींस का डोज काफी कम रखा गया था।
इस परीक्षण को अंजाम दिया है यूनिवर्सिटी कालेज आफ लंदन के इंस्टीट्यूट आफ आफ्थामोलाजी और मूरफील्ड आई हास्पिटल के वैज्ञानिकों की टीम ने। इस टीम का नेतृत्व करने वाले प्रो. राबिन अली का कहना था कि हावर्थ की आंख में सुधार इस परीक्षण का सबसे आकर्षक पहलू है। यह कामयाबी उम्मीद से ज्यादा है।
छात्र हावर्थ एक तरह के जेनेटिक म्युटेशन का शिकार था, जिसे लेबर्स कांजेनिटल अमारोसिस कहते हैं। जेनेटिक म्युटेशन उस अवस्था को कहते हैं जिसमें आनुवांशिक तत्वों में मौजूद न्यूक्लियोटाइड में तब्दीली आ जाती है। लेबर्स कांजेनिटल अमारोसिस की शुरुआत शैशव अवस्था में ही हो जाती है। आंखों की रोशनी धीरे-धीरे घटती जाती है। मरीज 20 से 30 वर्ष की अवस्था तक पहुंचते-पहुंचते पूरी तरह अंधा हो जाता है। फिलहाल इस मर्ज की कोई दवा नहीं है।
स्टीवन हावर्थ पैदाइशी तौर पर दूर की चीज देखने में अक्षम था। रात में तो उसे कुछ भी नहीं दिखाई देता था। लेकिन दो घंटे तक चले आपरेशन के बाद उसने अपनी आंख की क्षमता में आश्चर्यजनक सुधार महसूस किया है। हावर्थ का कहना है कि अंधेरे में देखने में नि:संदेह सुधार हुआ है। यह हालांकि एक छोटा परिवर्तन है, लेकिन बड़ा अंतर ला सकता है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि दो साल के अंदर इस थेरेपी के जरिए रेटिना की आनुवांशिक बीमारियों के शिकार लोगों का इलाज संभव होने की उम्मीद है।

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अंतरिक्ष उद्योग की महाशक्ति बनने को भारत

चेन्नई। अमेरिका के फ्युट्रान कार्पोरेशन द्वारा अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष प्रतिस्पद्र्धा के क्षेत्र में किए गए एक अध्ययन के आंकड़ों के अनुसार भारत अंतरिक्ष उद्योग के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय महाशक्ति बनने की राह पर अग्रसर है। इस अध्ययन को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने पुख्ता करते हुए सोमवार को एक साथ दस उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित कर दिया।
अध्ययन के अनुसार अमेरिका और रूस के बीच अंतरिक्ष में अपनी क्षमता साबित करने की दौड़ से शुरू हुई प्रतिस्पद्र्धा अब एक बड़े व्यापार का रूप ग्रहण कर चुकी है। वर्तमान में इस बाजार का मूल्य 100 अरब डालर के आस पास आंका गया है। अध्ययन के अनुसार इसमें उपग्रह निर्माण और प्रक्षेपण सेवा सहित कई तरह के काम शामिल है।
अध्ययन के अनुसार अंतरिक्ष कार्यक्रमों को सरकार द्वारा प्रदान किए गए मूलभूत ढांचे, कोष और मानव श्रम तथा अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के विकास तथा उत्पादन के समग्र सूचकांक में अमेरिका पहले स्थान पर बना हुआ है। रूस, यूरोप,चीन और भारत इस मामले में उससे पीछे हैं। सूची के अनुसार सरकारी सहायता और कोष तथा अंतरिक्ष संबंधी सेवाओं तथा वस्तुओं के उत्पादन में भारत चौथे स्थान पर है। वह चीन से आगे लेकिन अमेरिका, यूरोप और रूस से पीछे है।
रिपोर्ट के अनुसार 1998 से 2007 के बीच उपग्रह निर्माण और उन्हे कक्षा में स्थापित करने के क्षेत्र में भारत की विश्व बाजार में दो फीसदी की हिस्सेदारी रही है। इस दौरान भारत ने 22 उपग्रहों का निर्माण किया और 11 उपग्रहों को उनकी कक्षा में स्थापित किया।

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Wednesday, April 16, 2008

करेले की कचौड़ी

Channels Recipes - Jagran Yahoo! India: "करेले की कचौड़ी"

विधि :
करेलों को छीलकर उसमें नमक डालकर रख दें। आलू उबालकर छीलकर रखें, 2 घंटे बाद करेलों को निचोड़कर, अच्छी तरह धोकर बारीक पीस लें और कड़ाही में तेल डालकर भूनें, फिर उसमें आलू मसलकर मिला दें।
नमक, मिर्च, गरम मसाला, अमचूर, हल्दी, हरा धनिया व किशमिश डालकर अच्छी तरह हिलाएं, भून जाने पर उतार लें। मैदे में थोड़ा-सा नमक व तेल का मोयन देकर गूथ लें। मैदे की छोटी-छोटी लोई बनाकर उसमें भुने करेलों का भरावन भरकर बेल लें और धीमी आंच पर सेक लें। यह स्वादिष्ट व पौष्टिक कचौरियां इमली की चटनी, दही या टमाटर की चटनी के साथ सर्व करें।

सामग्री :
500 ग्राम करेले, 250 ग्राम आलू, 500 ग्राम मैदा, 1 टी स्पून हल्दी, 1 टी स्पून गरम मसाला, 1 टी स्पून लाल मिर्च पाउडर, 3 टी स्पून अमचूर पाउडर या अनारदाना, आधा कप हरा धनिया, 50 ग्राम किशमिश, स्वादानुसार नमक।
कितने लोगों के लिए : 6

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पालक की कढ़ी

Recipes Khana Khazana - Jagran Yahoo! India: "पालक की कढ़ी"


विधि :
1. पालक को साफ कर पानी से अच्छी तरह धो लें और चाकू से बारीक काट लें।
2. दही को मथकर उसमें छना हुआ बेसन डालकर अच्छी तरह घोल लें, इसमें पानी मिलाकर पतला कर लें।
3. कड़ाही में तेल डालकर गरम करें। अब इसमें हींग और जीरा डाल दें। जब जीरा चटकने लगे तो उसमें सूखे मसाले डालकर भून लें।
4.अब इसमें पालक डालकर थोड़ा सा पानी डालकर ढक दें और धीमी आंच पर पकने दें।
5. जब पालक गल जाये तो इसमें दही और बेसन का घोल डाल दें बीच-बीच में चलाते रहे, जब बेसन पक जाये तो गरमागरम कढ़ी चावल, या रोटी के साथ सर्व करें।

सामग्री :
300 ग्राम पालक, 100 ग्राम बेसन, 100 ग्राम दही, 1 टे.स्पून तेल, 2 चुटकी हींग, 1/4 टी स्पून जीरा, 1/4 टी स्पून हल्दी पाउडर, 3-4 हरी मिर्च, 1/4 टी स्पून लाल मिर्च पाउडर, नमक स्वादानुसार।
कितने लोगों के लिए : 5


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