Saturday, April 28, 2007

ता रा रम पम

Welcome to Yahoo! Hindi: "ता रा रम पम"

ता रा रम पम
- समय ताम्रकर
निर्देशक : सिद्धार्थ आनंदसंगीतकार : विशाल-शेखरकलाकार : सैफ अली खान, रानी मुखर्जी, जावेद जाफरीअपनी पहली फिल्म ‘सलाम नमस्ते’ में निर्देशक सिद्धार्थ आनंद ने लिव इन रिलेशिन शिप जैसा मुद्दा उठाया था। जिसके बारे में कहा गया था कि भारत के हिसाब से यह समय के आगे का विषय है। लेकिन अपनी दूसरी फिल्म ‘ता रा रम पम’ में सिद्धार्थ समय से बेहद पीछे चले गए है। उनका कहानी का चुनाव कई सवालिया निशान खड़े करता है। फिल्म में सब अच्छा है लेकिन कहानी अविश्वसनीय है। क्या जिंदगी में सब इतनी जल्दी और आसानी से होता है? यह सवाल बार-बार मन में उठता रहता है। कहानी : आरवी (सैफ अली) रेसिंग कारों के टायर बदलने का काम करता है। उसका सपना रेसिंग ड्रायवर बनने का है। उसकी मुलाकात एक मैनेजर से होती है और उसका सपना हकीकत में तब्दील हो जाता है। वह कार रेसिंग का चैम्पियन बन जाता है। दो मुलाकातों के बाद एक सुन्दर सी लड़की राधिका (रानी मुखर्जी) उसकी पत्नी बन जाती है। उसके दो प्यारे बच्चे हैं। उसके पास दुनिया की हर खुशी है। एक दिन रेसिंग के समय उसकी दुर्घटना हो जाती है और वह कुछ समय तक रेसिंग में भाग लेने के लायक नहीं रह पाता। लगभग एक साल बाद आर वी की वापसी होती है परंतु उसमें चैम्पियन वाली बात नहीं रहती है। उसे टीम से बाहर कर दिया जाता है। आमदनी अठन्नी खर्चा रूपय्या वाली उसकी आदत रहती है इस कारण उसके ऐशो-आराम के सारे साधन छिन जाते है। वे गरीब हो जाते है। उन्हें अपना महल जैसा घर छोड़कर टैक्सी ड्रायवरों की बस्ती में रहना पड़ता है। बच्चें महंगे स्कूल में पड़ते हैं इसलिए उनकी फीस भरने के लिए आरवी टैक्सी चलाता है। राधिका होटल में पियानो बजाती है। बच्चों को रियलिटी शो के नाम पर बताया जाता है कि कुछ दिनों के लिए वे गरीब-गरीब खेल रहे हैं। बच्चे भी समझ जाते है और वे अपना लंच न खाकर पैसा जमा करते हैं। एक दिन आर वी का बेटा बीमार हो जाता है। उसे बहुत सारे पैसों की जरूरत पड़ती है। अपने दोस्त हैरी की मदद से वह कार रेसिंग में हिस्सा लेता है और फिर से चैंम्पियन बन जाता है। निर्देशन : सिद्धार्थ आनंद ने कहानी के बजाय अपने निर्देशीय कौशल को ज्यादा महत्व दिया। इसमें कोई शक नहीं है कि उनके कई दृश्य दिल को छू जाते है। लेकिन कहानी में नाटकीयता ज्यादा है। गरीबी वाले दृश्य बनावटी दिखाई देते है। उनकी गरीबी देखकर दर्शक का दिल नहीं रोता है। हमेशा अमीर पात्रों की फिल्म बनाने वाले यशराज बैनर की फिल्म में पहली बार गरीब शब्द तो सुनाई देता है। सिनेमा के नाम पर निर्देशक ने थोड़ी ज्यादा ही छूट ली है।अभिनय : सभी कलाकारों के शानदार अभिनय के कारण ही दर्शक फिल्म से जुड़ा रहता है। सैफ ने लापरवाही और बेफिक्री वाले चरित्र को बखूबी जिया है। रानी मुखर्जी ने एक बार फिर साबित किया है कि वह कितनी शानदार अभिनेत्री है। अपने चेहरे से रानी ने हर भाव को दर्शाया है। जावेद जाफरी पहली बार बनावटी नहीं लगे। दोनों बच्चे एंजेलिना इदनानी और अली हाजी ने भी बड़े ही सरल अंदाज में अभिनय किया।अन्य पक्ष : फिल्म के गाने जबरदस्त हिट तो नहीं है, लेकिन परदे पर देखते समय अच्छे लगते है। एनिमेशन वाला गाना शानदार है। बिनोद प्रधान की फोटोग्राफी ऊँचे स्तर की है। कार रेसिंग के सीन बहुत ही उम्दा तरीके से फिल्माए गए है। इन दृश्यों पर निर्माता ने खुले हाथ से पैसा खर्च किया है। तकनीकी रूप से फिल्म बेहद मजबूत है। पारिवारिक फिल्में पसंद करने वाले दर्शक जरूर इस फिल्म को पसंद कर सकते हैं।
(स्रोत - वेबदुनिया)

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