Tuesday, September 14, 2010

यहाँ रोज़ निगाहे मिलती है और क़यामत ही क़यामत होती है...

ग़ज़ल सम्राठ जगजीत साब की एक ग़ज़ल है गुलशन की फकत ..जिस में ये निम्नलिखित पंक्तिया है...
ई वैज़ेनादान करता है तू एक क़यामत का चर्चा
यहाँ रोज़ निगाहें मिलाती हैं यहाँ रोज़ क़यामत होती है...

शायर क्या खूब और सत्य लिखा है ... आज आप जहा भी जाओ महिलाये क़यामत बरसाती रहती है...अब उनका बस्त्र भी बदल गया है ..चाल भी नया है और रूप रंग भी...

एक एक माहिला में नित्य कुछ न कुछ रहता है क़यामत के लिए... आज हरएक महिला में खुब्शुरती की होड़ लगी है और इस में कोई भी पीछे नहीं रहना चाहता है... लेकिन पर्तियोगिताभी जबरदस्त है .... अगर आपके पास कुछ नहीं भी है तो उसको प्लास्टिक सर्जरी से सेट कर वाला लेने की होड़ है...और हो क्यों नहीं एक की जिन्दगी मिली है जीने को ....जी लो जी भर कर... लेकिन इससे पुरुसो को बहुत फायदा है नित्य आछी और ये से बढकर एक सोंदार्ये मिलती है देखने के लिए.....और सिर्फ देखने के लिए ही ये सब , छुआ और कुछ बोला तो गया काम से ...इस लिए इस शायर ने बहुत खूब कहा है की क़यामत को दिल और अधिक से अधिक आँखों तक ही आने दो ....मुख या और कही पे आई तो आप गए काम से........