Monday, August 6, 2007

वास्तुपुरुष

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वास्तुपुरुष
- सुधीर पिम्पले
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श्री सुधीर पिम्पले महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय से प्रशिक्षित 'वास्तु विशेषज्ञ' हैं। उन्होंने भावातीत ध्यान के साथ वेद, ज्योतिष, वास्तुशास्त्र, फेंगशुई, भवन नियोजन एवं निर्माण, इंटीरियर डिजाइनिंग का गहन अध्ययन किया है। प्रकाशित पुस्तक- स्थापत्य वेद।'वास्तुपुरुष' ब्रह्मदेवता द्वारा दिया हुआ नाम है। निवास-स्थान के पालनकर्ता के रूप में वास्तुपुरुष की कल्पना की गई है। भूमि-पूजन करते समय, मुख्य द्वार लगाते समय, गृह प्रवेश के समय वास्तुपुरुष की शांति एवं पूजा-अर्चना की जाती है। प्राचीन ग्रंथों में वास्तुपुरुष की उत्पत्ति के संबंध में अनेक दंत कथाएँ वर्णित हैं। उनमें से कुछ इस प्रकार है -1. त्रेतायुग में अचानक एक महाभूत निर्मित हुआ, उसने सभी निवासियों को कष्ट देना प्रारंभ कर दिया। यह देखकर इंद्र सहित सभी देवी-देवता भयभीत हो गए और ब्रह्मा के पास उसे शांत करने का उपाय जानने गए। ब्रह्मा ने बताया कि उस राक्षस को धरती पर उलटा लिटा देना चाहिए। बड़े प्रयासों से देवताओं ने उस राक्षस को धरती पर गिराया और उसके प्रत्येक अंग पर प्रत्येक देवता ने अपना स्थान बना लिया। तब वह राक्षस व्याकुल होकर ब्रह्मा की शरण में आया और कहने लगा, हे प्रभु! अब मेरा आहार क्या होगा? तब ब्रह्मा ने बताया कि जो भी व्यक्ति भवन या कोई अन्य स्थापत्य खड़ा करेगा, उसके पहले तुम्हारे लिए हवन-पूजन करेगा। उसी में समर्पित सामग्री का तुम भक्षण करना। जो तुम्हें हवन समर्पित न करे, उसकी वास्तु का तुम भक्षण करना। बस तभी से वास्तुशांति प्रचलित हुई।2. प्राचीन काल में अंधवध के समय शिवजी के शरीर से जो पसीने की बूँदें पृथ्वी पर गिरीं, उनसे एक भीषण और विकराल प्राणी की उत्पत्ति हुई। वह पृथ्वी पर गिरने वाली प्रत्येक रक्त की बूँदों को पीने लगा। जब धरती पर एक भी बूँद रक्त न बचा, तो वह शिवजी की तपस्या करने लगा। शिवजी को प्रसन्न कर वर के रूप में उसने तीनों लोकों को ग्रस लेने की शक्ति प्राप्त कर ली। तब भयभीत हुए देवताओं ने उस राक्षस को स्तम्भित कर दिया और उस समय जिसने जिस अंग पर कब्जा कर रखा था, वहीं अपना निवास स्थान बना लिया। अब उस दबे हुए प्राणी ने पुनः शिवजी से प्रार्थना की कि इस प्रकार तो मैं भूखा ही मर जाऊँगा। मेरी क्षुधा शांत करने का कोई उपाय बताइए। तब शिवजी ने उसे वास्तुशांति के समय चढ़ाई जाने वाली सामग्री भक्षण करने के लिए कहा; और बताया कि जो वास्तुपूजा नहीं करेंगे, वे भी तुम्हारे आहार होंगे। यही प्राणी वास्तुदेवता या वास्तुपुरुष कहलाया और तभी से वास्तुयज्ञ प्रारंभ हुआ।
(स्रोत - वेबदुनिया)
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