Thursday, June 7, 2007

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BBCHindi.com विज्ञान अब बिना तार बिजली....: "अब बिना तार बिजली...."

अब बिना तार बिजली....

उपकरण चालू हुआ तो दीवार के पार रखा बल्ब भी जल उठा
अमरीका में वैज्ञानिकों ने कहा है कि उन्होंने हवा में बिजली भेजने का उपाय ढूँढ़ लिया है.
इसका मतलब यह है कि उन्होंने दो उपकरणों के बीच बिना तार या केबल के बिजली भेजने में सफलता पाई है.
इस नई तकनीक से हमारे घरों में बिजली से चलने वाले तमाम उपकरणों के लिए अब प्लग लगाने की ज़रुरत नहीं रह जाएगी.
'साइंस' जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार वैज्ञानिकों ने साठ वॉट के एक बल्ब को बिना तारों से जोड़े दो मीटर दूरी से जला लिया.
वाइ-ट्राइसिटी
अब तक हम 'वाइ-फ़ाइ' सिस्टम के बारे में सुनते आए थे. इस तकनीक से कप्यूटर पर इंटरनेट चलाने के लिए इसे केबल से जोड़ने की ज़रूरत नहीं होती. इसे सिर्फ़ बिजली के केबल से जोड़ने की ज़रूरत होती है.
लेकिन अब वैज्ञानिकों ने इसकी भी ज़रुरत ख़त्म कर दी है. और इस तकनीक को नाम दिया गया है 'वाई-ट्राइसिटी'.
इस तकनीक को सफलता पूर्वक ढूँढ़ा है मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नॉलॉजी (एमआईटी) के वैज्ञानिकों ने.
उन्होंने इसे सिद्धांत रुप में वर्ष 2006 में मान लिया था लेकिन इसका व्यावहारिक प्रदर्शन अब जाकर किया गया है.
इस प्रयोग में शामिल सहायक प्रोफ़ेसर मैरीन सोल्जैसिक ने कहा, "हमे सिद्धांतों पर पूरा भरोसा था लेकिन प्रयोग से ही इसकी जाँच होती है."
इस प्रयोग को देख चुके इंपीरियल कॉलेज लंदन के सर जॉन पेंड्री ने कहा, "इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जिसका आविष्कार वो लोग दस या बीस साल पहले नहीं कर सकते थे."
लेकिन उनका कहना है कि यह समय की भी बात थी. अब सब कुछ मोबाइल हो चुका है और केबल हट गए हैं. हर उपकरण को सिर्फ़ बिजली की ज़रूरत होती है, ऐसे में बिजली का केबल ही वह केबल था जिसे हटाया जाना ज़रुरी था.
कैसे काम करता है
वैज्ञानिकों ने प्रयोग के तौर पर एक बल्ब जलाकर देखा है.
इसके लिए ताँबे के दो क़्वाइल होते हैं. एक बिजली के स्रोत के पास और दूसरा उस उपकरण के पास जिसे बिजली की ज़रुरत है.
उन्हें 'मैगनेटिक रेज़ोनेटर्स' कहा गया है.
जैसा कि नाम से ज़ाहिर है यह कंपन के सिद्धांत पर काम करता है. जब बिजली के स्रोत वाला क्वाइल चुंबकीय तरंग भेजता है तो दूसरे छोर पर रखा क्वाइल इस तंरग से कंपित होने लगता है.
जब दोनों क्वाइल के कंपन मिल जाते हैं तो दोनों के बीच बिजली का प्रवाह शुरु हो जाता है.
प्रोफ़ेसर मैरीन सोल्जैसिक कहते हैं यह ठीक वैसा ही जैसा कि कोई ओपरा सिंगर अपनी आवाज़ के कंपन से वाइन के ग्लास को चटखा दे.
1.स्रोत से बिजली दी गई. 2.एंटेना में कंपन शुरु हुआ. 3. तरंगे बहनी शुऱु हुईं. 4. तरंगों को दूसरी ओर के एंटेना ने पहचाना और कंपन करने लगा. 5. जितनी बिजली का उपयोग लैपटॉप ने नहीं किया वह वापस स्रोत में चली गई.
पहले भी हुए प्रयोग
हालांकि एमआईटी की टीम ऐसी पहली टीम नहीं है जो बिना तार की बिजली पर काम कर रही है.
इससे पहले उन्नीसवीं सदी में एक भौतिक विज्ञानी निकोला टेस्ला ने ऐसा एक प्रयोग करने की कोशिश की थी. वे 29 मीटर टॉवर से ऐसा करने की कोशिश कर रहे थे लेकिन उनका प्रयोग अधूरा ही रह गया था क्योंकि उनके पास पैसे ख़त्म हो गए थे.
इसके बाद जो भी प्रयोग हुए उनमें लेज़र के सहारे बिजली भेजने की कोशिश की गई. लेकिन इसके लिए दोनों सिरों को आमने सामने रखना ज़रूरी था, इसलिए वह सफल नहीं हुआ.
प्रोफ़ेसर मैरीन सोल्जैसिक का कहना है कि अब इसमें सुधार करने की ज़रुरत है.
वे कहते हैं कि इन क्वाइलों के आकार घटाने होंगे और इनकी क्षमता बढ़ानी होगी ताकि यह दूर तक काम कर सके.
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