Sunday, May 10, 2009

एक और याद बचपन की ...

मेरा स्कूल मेरे घर से कुछ ३-४ किलोमीटर पे था । स्कूल जाने का २ रास्ता था एक डायरेक्ट रोड दूसरा आधा कच्छा रास्ता जो की जगरनाथ मन्दिर से हो कर जाता था, जो की एक हिल पे था.हम लोग तब ५-६ में थे , जब स्कूल बस नही आती तो हम लोग पैदल ही घर आया करते थे। ३-४ दोस्त मिल कर। हमलोग महीने में ३-४ बार तो जरुर पैदल ही आया करते थे। कुछ दिनों तक ये सिलसिला जरी था , तभी हमलोगों ने सुना की जो यहाँ का राजा था वो खजाना कही छुपा का गया था हिल पे, फिर क्या था हम लोगो का गंगे रोज़ खजाना खोजना सुरु कर दिया। कभी किसी गढेमें पत्थर डालते और ऊसमे फिजिक्स लगते की आवाज़ देर से आ रही है मतलब कुछ है॥ एसे ही कुछ दिन बीत गया , खजाना के चकरमें , फिर एक दिन मेरा एक दोस्त रंजय एक गडे में कूदाखजाने के लिए, तभी ऊसने एक लंबा सा काला-सा एक कुछ चलता हुआ चीज़ देखा , हमलोगों का जान ही सुख गया,खैर जगरनाथ भगवन की किरपा से वो चला गया , और हम लोग कापते , तेज़ धरकन के साथ घर आ गए, ऊस दिन के बाद हमलोगों ने कभी खजाने की तलाश में वहा नही गए , सिर्फ़ पूजा के लिए गए।
लेकिन आज भी दिल में तमना है की ऊस खजाने को खोजे , खैर फिर कभी...

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