ये जगिजीत सब की बहुत ही उत्क्रिस्ट ग़ज़ल है , एक दिन जब हम कॉलेज में थे तो इसका एक लाइन लिख दिए थे
हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालुम है
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जायेगा ,
और उस दिन इतफाक से ब्लैक बोर्ड को मिटने का डस्टर नहीं था, और वो बहुत गुस्से में थे... तो मेरे प्रोफेसर साब ने बोला था काश यहाँ दरिया के जगह सागर होता तो वो जरुर बोर्ड मिटा देता॥
आप भी इस खुबसूरत कृति का आनंद ले...
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
इतना मत इस से वो बेवफ़ हो जाएगा
हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालुम है
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जायेगा
कितनी सच्चाई से मुझा से ज़िन्दगी ने कह दिया
तू नहीं मेरा तो कोई दूसरा हो जाएगा
मैं खुदा का नाम ले कर पि रहा हूँ दोस्तों
ज़हर भी इस में अगर होगा दवा हो जाएगा
रूठ जाना तो मोहब्बत की अलामत है मगर
क्या खबर थी मुझ से वो इतना खफा हो जायेगा
1 comment:
such kaha aapne ye gazal bahut hi pyari hai ise maine bhi suna hai. vartani me kuch galatiyan hai use sudhar le.
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