Google News India (Hindi): "पहली बार हिंदी फिल्म में माइक टायसन"
मुंबई। विवादों में घिरे रहे विश्व विख्यात मुक्केबाज माइक टायसन पहली बार किसी हिंदी फिल्म में नजर आएंगे। आगामी शुक्रवार को रिलीज होने जा रही निर्माता फिरोज नडियाडवाला की मल्टी स्टारर फिल्म फुल एंड फाइनल में माइक टायसन की फाइट हिंदी फिल्मों के दर्शकों को देखने को मिलेगी। इस फिल्म के लिए माइक टायसन के साथ एक विशेष वीडियो की शूटिंग पिछले दिनों अमेरिका के लास वेगास शहर में की गई, जिसमें टायसन के अलावा बड़ी संख्या में स् ...
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Thursday, May 31, 2007
Wednesday, May 30, 2007
Google News India (Hindi) अमिताभ पर यूपी सरकार से जानकारी लेंगे देशमुख
Google News India (Hindi): "अमिताभ पर यूपी सरकार से जानकारी लेंगे देशमुख"
महाराष्ट्र सरकार जानेमाने फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन के ‘किसान’ होने संबंधी जानकारी उत्तर प्रदेश सरकार मांगेगी। राज्य के मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख ने यहां कांग्रेस मुख्यालय में अनौपचारिक बातचीत में कहा कि शी बच्चन ने पुणे के निकट जो भूमि ली है उसे खरीदते समय उन्होंने दस्तावेज में खुद को उत्तर प्रदेश का किसान घोषित किया था। जब उनका ध्यान इस ओर आकृष्ट किया गया कि उत्तर प्रदेश में उनके किसान होने के दस्तावेज को लेकर ...
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महाराष्ट्र सरकार जानेमाने फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन के ‘किसान’ होने संबंधी जानकारी उत्तर प्रदेश सरकार मांगेगी। राज्य के मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख ने यहां कांग्रेस मुख्यालय में अनौपचारिक बातचीत में कहा कि शी बच्चन ने पुणे के निकट जो भूमि ली है उसे खरीदते समय उन्होंने दस्तावेज में खुद को उत्तर प्रदेश का किसान घोषित किया था। जब उनका ध्यान इस ओर आकृष्ट किया गया कि उत्तर प्रदेश में उनके किसान होने के दस्तावेज को लेकर ...
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साउथ एशिया में सबसे ज्यादा एफडीआई भारत ने खींचा
Indiatimes - Navbharat Times
साउथ एशिया में सबसे ज्यादा एफडीआई भारत ने खींचा
वॉशिंगटन (भाषा) : भारत ने 2006 के दौरान साउथ एशिया में आने वाली 40 अरब डॉलर की पूंजी का अधिकांश हिस्सा अपनी ओर खींचा। हालांकि प्रतिबंधात्मक नीतियों के कारण निवेश की वृद्धि कम हो सकती है और आर्थिक विस्तार गतिविधियां भी मंद पड़ सकती हैं। वर्ल्ड बैंक ने 2007 की अपनी अंतरराष्ट्रीय विकास वित्त रिपोर्ट में कहा है कि भारत में अधिकांश एफडीआई प्रवाह सेवा, दूरसंचार जैसे क्षेत्रों पर केंद्रित है। यह उदारीकरण की नीति का नतीजा है। हालांकि रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में प्रतिबंधात्मक नीतिगत स्थितियों से निवेश की वृद्धि दर कम हो सकती है और 2008 में उसकी विकास दर 7.8 प्रतिशत, जबकि 2009 में 7.5 प्रतिशत होगी। भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर 2006-07 के दौरान 9.2 प्रतिशत थी। पिछले वित्त वर्ष के दौरान कुल एफडीआई प्रवाह 15.7 अरब डॉलर था। बैंक ने कहा कि साउथ एशिया में कैलंडर वर्ष 2006 के दौरान शुद्ध पूंजी प्रवाह बढ़कर 40 अरब डॉलर हो गया। यह 2005 के मुकाबले 28.3 अरब डॉलर अधिक है।
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साउथ एशिया में सबसे ज्यादा एफडीआई भारत ने खींचा
वॉशिंगटन (भाषा) : भारत ने 2006 के दौरान साउथ एशिया में आने वाली 40 अरब डॉलर की पूंजी का अधिकांश हिस्सा अपनी ओर खींचा। हालांकि प्रतिबंधात्मक नीतियों के कारण निवेश की वृद्धि कम हो सकती है और आर्थिक विस्तार गतिविधियां भी मंद पड़ सकती हैं। वर्ल्ड बैंक ने 2007 की अपनी अंतरराष्ट्रीय विकास वित्त रिपोर्ट में कहा है कि भारत में अधिकांश एफडीआई प्रवाह सेवा, दूरसंचार जैसे क्षेत्रों पर केंद्रित है। यह उदारीकरण की नीति का नतीजा है। हालांकि रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में प्रतिबंधात्मक नीतिगत स्थितियों से निवेश की वृद्धि दर कम हो सकती है और 2008 में उसकी विकास दर 7.8 प्रतिशत, जबकि 2009 में 7.5 प्रतिशत होगी। भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर 2006-07 के दौरान 9.2 प्रतिशत थी। पिछले वित्त वर्ष के दौरान कुल एफडीआई प्रवाह 15.7 अरब डॉलर था। बैंक ने कहा कि साउथ एशिया में कैलंडर वर्ष 2006 के दौरान शुद्ध पूंजी प्रवाह बढ़कर 40 अरब डॉलर हो गया। यह 2005 के मुकाबले 28.3 अरब डॉलर अधिक है।
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BBCHindi.com | पत्रिका | अपनों के साथ आ रहे हैं ध
BBCHindi.com पत्रिका अपनों के साथ आ रहे हैं ध
अनिल शर्मा की जल्द रिलीज़ होने जा रही फ़िल्म 'अपने' में मशहूर अभिनेता धर्मेंद्र अपने दोनों बेटों सन्नी और बॉबी देओल के साथ दिखेंगे.
ऐसा पहली बार है कि धर्मेंद्र किसी फ़िल्म में अपने दोनों बेटों के साथ रुपहले पर्दे पर नज़र आएंगे.
उनका कहना है कि उन्हें काफ़ी लंबे समय से एक ऐसी कहानी की तलाश थी जिसमें वो सन्नी और बॉबी के साथ काम कर सकें और 'अपने' के साथ उनका ये सपना पूरा होने जा रहा है.
हाल ही में मुंबई के एक पांच सितारा होटल में इस नई फ़िल्म अपने का म्यूजिक लांच किया गया.
इस मौक़े पर फ़िल्मी दुनिया की पुराने और नए जमाने की हस्तियों ने शिरकत की जिनमें दिलीप कुमार, देवानंद से लेकर सलमान खान और गोविंदा तक शामिल थे.
मुझे काफ़ी पहले से ऐसी स्क्रिप्ट की तलाश थी जिसमें मैं, सन्नी और बॉबी एक साथ काम कर सकें. बाद में जब अनिल ने ये कहानी सामने रखी तो मुझे अच्छा लगा
धर्मेंद्र
इस मौक़े पर धर्मेंद्र और सन्नी दोनों से बीबीसी ने बातचीत की.
जब धर्मेंद्र से ये पूछा गया कि कैसा लग रहा है अपने दोनों बेटों के साथ काम करके तो वो अपनी चिरपरिचित मुस्कान के साथ बोले,'' बहुत अच्छा लगा.''
उनका कहना था,'' मुझे काफ़ी पहले से ऐसी स्क्रिप्ट की तलाश थी जिसमें मैं, सन्नी और बॉबी एक साथ काम कर सकें. बाद में जब अनिल ने ये कहानी सामने रखी तो मुझे अच्छा लगा.''
शर्मीले बेटे
दोनों बेटों के बारे में पूछने पर धर्मेंद्र के चेहरे पर रौनक आ गई.
वो हंसते हुए बोले,'' मेरा एक बेटा है सन्नी जो कि बेहद शर्मीला है, कम बोलता है लेकिन अपने पापा और फेमिली से बहुत प्यार करता है. दूसरा बेटा है बॉबी जो थोड़ा मस्त अंदाज़ वाला है, लेकिन अच्छा लड़का है.''
जब सन्नी से ये पूछा गया कि उन्हें अपने पापा के बारे में सबसे अच्छा क्या लगता है, तो उनका कहना था,'' मेरे पापा एक रॉक स्टार हैं और मेरे लिए वो भगवान हैं.''
धर्मेंद्र को बेटों के साथ काम करके अच्छा लगा
''उनके जैसा मुझे कोई दूसरा नहीं दिखता. इस उम्र में भी वो दूसरों से कहीं ज्यादा हैंडसम हैं.''
धर्मेंद्र फ़िल्म इंडस्ट्री के ऐसे कलाकार हैं जिन्होंने पिछले चार दशकों से अलग अलग भूमिकाओं में दर्शकों का मनोरंजन किया है.
वो कहते हैं,'' फ़िल्में मेरी महबूबा है. मैं पूरी तरह से इनमें ही रचा बसा हूं और दर्शक मेरे भगवान हैं. मुझे हमेशा उनका प्यार मिला है.''
धर्मेंद्र को सन्नी की नब्बे की दशक में आई फ़िल्म घायल बेहद पसंद है.
उन्होंने बताया कि उस फ़िल्म में जिस तरह से सन्नी ने दमदार रोल किया था उससे उन्हें काफ़ी खुशी हुई थी.
धर्मेंद्र-हेमामालिनी की जोड़ी
सत्तर और अस्सी के दशक में धर्मेंद्र की जोड़ी हेमामालिनी के साथ रुपहले पर्दे पर बहुत सराही गई थी.
अब भी हेमामालिनी का जिक्र छेड़ते ही वो भावुक हो जाते हैं.
मेरा एक बेटा है सन्नी जो कि बेहद शर्मीला है,कम बोलता है लेकिन अपने पापा और फेमिली से बहुत प्यार करता है. दूसरा बेटा है बॉबी जो थोड़ा मस्त अंदाज़ वाला है, लेकिन अच्छा लड़का है.
धर्मेंद्र
उनका कहना था कि वो और हेमा 25 सिल्वर जुबली और कई गोल्डेन जुबली फ़िल्में दे चुके हैं और अगर कोई अच्छी कहानी उन्हें मिलेगी तो फिर से एक साथ दिखेंगे.
लेकिन इतने लंबे समय तक हिंदी सिनेमा में काम करनेवाले धर्मेंद्र को बहुत कम पुरस्कर मिले हैं.
लेकिन वो इससे निराश नहीं दिखते. उनका कहना था कि मेरा असली पुरस्कार दर्शकों से मिला प्यार है. आज भी कहीं जाता हूं तो लोग इतने प्यार से मिलते हैं.
धर्मेंद्र का कहना है,'' मैं पंजाब की माटी में पैदा हुआ हूँ और आज भी ख़ुद को वहीं का पाता हूं.''
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अनिल शर्मा की जल्द रिलीज़ होने जा रही फ़िल्म 'अपने' में मशहूर अभिनेता धर्मेंद्र अपने दोनों बेटों सन्नी और बॉबी देओल के साथ दिखेंगे.
ऐसा पहली बार है कि धर्मेंद्र किसी फ़िल्म में अपने दोनों बेटों के साथ रुपहले पर्दे पर नज़र आएंगे.
उनका कहना है कि उन्हें काफ़ी लंबे समय से एक ऐसी कहानी की तलाश थी जिसमें वो सन्नी और बॉबी के साथ काम कर सकें और 'अपने' के साथ उनका ये सपना पूरा होने जा रहा है.
हाल ही में मुंबई के एक पांच सितारा होटल में इस नई फ़िल्म अपने का म्यूजिक लांच किया गया.
इस मौक़े पर फ़िल्मी दुनिया की पुराने और नए जमाने की हस्तियों ने शिरकत की जिनमें दिलीप कुमार, देवानंद से लेकर सलमान खान और गोविंदा तक शामिल थे.
मुझे काफ़ी पहले से ऐसी स्क्रिप्ट की तलाश थी जिसमें मैं, सन्नी और बॉबी एक साथ काम कर सकें. बाद में जब अनिल ने ये कहानी सामने रखी तो मुझे अच्छा लगा
धर्मेंद्र
इस मौक़े पर धर्मेंद्र और सन्नी दोनों से बीबीसी ने बातचीत की.
जब धर्मेंद्र से ये पूछा गया कि कैसा लग रहा है अपने दोनों बेटों के साथ काम करके तो वो अपनी चिरपरिचित मुस्कान के साथ बोले,'' बहुत अच्छा लगा.''
उनका कहना था,'' मुझे काफ़ी पहले से ऐसी स्क्रिप्ट की तलाश थी जिसमें मैं, सन्नी और बॉबी एक साथ काम कर सकें. बाद में जब अनिल ने ये कहानी सामने रखी तो मुझे अच्छा लगा.''
शर्मीले बेटे
दोनों बेटों के बारे में पूछने पर धर्मेंद्र के चेहरे पर रौनक आ गई.
वो हंसते हुए बोले,'' मेरा एक बेटा है सन्नी जो कि बेहद शर्मीला है, कम बोलता है लेकिन अपने पापा और फेमिली से बहुत प्यार करता है. दूसरा बेटा है बॉबी जो थोड़ा मस्त अंदाज़ वाला है, लेकिन अच्छा लड़का है.''
जब सन्नी से ये पूछा गया कि उन्हें अपने पापा के बारे में सबसे अच्छा क्या लगता है, तो उनका कहना था,'' मेरे पापा एक रॉक स्टार हैं और मेरे लिए वो भगवान हैं.''
धर्मेंद्र को बेटों के साथ काम करके अच्छा लगा
''उनके जैसा मुझे कोई दूसरा नहीं दिखता. इस उम्र में भी वो दूसरों से कहीं ज्यादा हैंडसम हैं.''
धर्मेंद्र फ़िल्म इंडस्ट्री के ऐसे कलाकार हैं जिन्होंने पिछले चार दशकों से अलग अलग भूमिकाओं में दर्शकों का मनोरंजन किया है.
वो कहते हैं,'' फ़िल्में मेरी महबूबा है. मैं पूरी तरह से इनमें ही रचा बसा हूं और दर्शक मेरे भगवान हैं. मुझे हमेशा उनका प्यार मिला है.''
धर्मेंद्र को सन्नी की नब्बे की दशक में आई फ़िल्म घायल बेहद पसंद है.
उन्होंने बताया कि उस फ़िल्म में जिस तरह से सन्नी ने दमदार रोल किया था उससे उन्हें काफ़ी खुशी हुई थी.
धर्मेंद्र-हेमामालिनी की जोड़ी
सत्तर और अस्सी के दशक में धर्मेंद्र की जोड़ी हेमामालिनी के साथ रुपहले पर्दे पर बहुत सराही गई थी.
अब भी हेमामालिनी का जिक्र छेड़ते ही वो भावुक हो जाते हैं.
मेरा एक बेटा है सन्नी जो कि बेहद शर्मीला है,कम बोलता है लेकिन अपने पापा और फेमिली से बहुत प्यार करता है. दूसरा बेटा है बॉबी जो थोड़ा मस्त अंदाज़ वाला है, लेकिन अच्छा लड़का है.
धर्मेंद्र
उनका कहना था कि वो और हेमा 25 सिल्वर जुबली और कई गोल्डेन जुबली फ़िल्में दे चुके हैं और अगर कोई अच्छी कहानी उन्हें मिलेगी तो फिर से एक साथ दिखेंगे.
लेकिन इतने लंबे समय तक हिंदी सिनेमा में काम करनेवाले धर्मेंद्र को बहुत कम पुरस्कर मिले हैं.
लेकिन वो इससे निराश नहीं दिखते. उनका कहना था कि मेरा असली पुरस्कार दर्शकों से मिला प्यार है. आज भी कहीं जाता हूं तो लोग इतने प्यार से मिलते हैं.
धर्मेंद्र का कहना है,'' मैं पंजाब की माटी में पैदा हुआ हूँ और आज भी ख़ुद को वहीं का पाता हूं.''
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Tuesday, May 29, 2007
Monday, May 28, 2007
BBCHindi.com | भारत और पड़ोस | विकास को लग सकता ह
BBCHindi.com भारत और पड़ोस विकास को लग सकता ह: "विकास को लग सकता है झटका: मनमोहन"
भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश में बिजली की कमी पर चिंता जताते हुए कहा कि इससे विकास की रफ़्तार को झटका लग सकता है.
उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था में नौ से दस प्रतिशत की वृद्धि दर सुनिश्चित करने के लिए बिजली आपूर्ति में तेज़ी से सुधार करना ही होगा.
सोमवार को मनमोहन सिंह राजधानी दिल्ली में बिजली क्षेत्र पर आयोजित मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे.
व्यस्त सत्र में 13 फ़ीसदी तक की बिजली कटौती का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि बिजली क्षेत्र में बहुत सुधार नहीं दिखाई दे रहा है और अगर इस कमी को वर्ष 2012 से पहले पूरा करना है तो ‘त्वरित कार्यक्रम’ शुरू करने होंगे.
चिंता
प्रधानमंत्री ने कहा, “अगर हम हर साल 9 से 10 फ़ीसदी तक की विकास दर की उम्मीद करते हैं तो इसी अनुपात में बिजली उत्पादन भी बढ़ाना ज़रूरी है.”
अगर हम हर साल 9 से 10 फ़ीसदी की विकास दर की उम्मीद करते हैं तो इसी अनुपात में बिजली उत्पादन भी बढ़ना ज़रूरी है
मनमोहन सिंह, प्रधानमंत्री
उन्होंने कहा, “हम बिजली उत्पादन में बढ़ोत्तरी और इसकी आर्थिक सेहत में सुधार सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी कदम नहीं उठा सके हैं.”
प्रधानमंत्री ने कहा कि विद्युत प्रेषण और वितरण के बीच बढ़ता फासला चिंता की बात है.
उन्होंने कहा, “कई राज्यों में प्रेषण और वितरण के बीच नुकसान का स्तर 30 से 40 फ़ीसदी के बीच है. इस नुक़सान से बिजली क्षेत्र की आर्थिक सेहत दिन पर दिन बिगड़ती जा रही है.”
चुनौती
भारत की वर्ष 2012 से पहले बिजली उत्पादन क्षमता को बढ़ाकर 78 हज़ार 577 मेगावाट करने की योजना है.
यह उत्पादन मुख्य रूप से ताप बिजलीघरों के ज़रिए करने की योजना है ताकि बिजली आपूर्ति के संकट का सही ढंग से मुक़ाबला किया जा सके.
राष्ट्रीय बिजली नीति के तहत वर्ष 2012 से पहले देश की एक अरब से अधिक आबादी की मौजूदा आपूर्ति में लगभग 50 फ़ीसदी का इजाफ़ा करने का लक्ष्य रखा गया है.
इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए एक लाख़ मेगावाट बिजली की ज़रूरत होगी.
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भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश में बिजली की कमी पर चिंता जताते हुए कहा कि इससे विकास की रफ़्तार को झटका लग सकता है.
उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था में नौ से दस प्रतिशत की वृद्धि दर सुनिश्चित करने के लिए बिजली आपूर्ति में तेज़ी से सुधार करना ही होगा.
सोमवार को मनमोहन सिंह राजधानी दिल्ली में बिजली क्षेत्र पर आयोजित मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे.
व्यस्त सत्र में 13 फ़ीसदी तक की बिजली कटौती का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि बिजली क्षेत्र में बहुत सुधार नहीं दिखाई दे रहा है और अगर इस कमी को वर्ष 2012 से पहले पूरा करना है तो ‘त्वरित कार्यक्रम’ शुरू करने होंगे.
चिंता
प्रधानमंत्री ने कहा, “अगर हम हर साल 9 से 10 फ़ीसदी तक की विकास दर की उम्मीद करते हैं तो इसी अनुपात में बिजली उत्पादन भी बढ़ाना ज़रूरी है.”
अगर हम हर साल 9 से 10 फ़ीसदी की विकास दर की उम्मीद करते हैं तो इसी अनुपात में बिजली उत्पादन भी बढ़ना ज़रूरी है
मनमोहन सिंह, प्रधानमंत्री
उन्होंने कहा, “हम बिजली उत्पादन में बढ़ोत्तरी और इसकी आर्थिक सेहत में सुधार सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी कदम नहीं उठा सके हैं.”
प्रधानमंत्री ने कहा कि विद्युत प्रेषण और वितरण के बीच बढ़ता फासला चिंता की बात है.
उन्होंने कहा, “कई राज्यों में प्रेषण और वितरण के बीच नुकसान का स्तर 30 से 40 फ़ीसदी के बीच है. इस नुक़सान से बिजली क्षेत्र की आर्थिक सेहत दिन पर दिन बिगड़ती जा रही है.”
चुनौती
भारत की वर्ष 2012 से पहले बिजली उत्पादन क्षमता को बढ़ाकर 78 हज़ार 577 मेगावाट करने की योजना है.
यह उत्पादन मुख्य रूप से ताप बिजलीघरों के ज़रिए करने की योजना है ताकि बिजली आपूर्ति के संकट का सही ढंग से मुक़ाबला किया जा सके.
राष्ट्रीय बिजली नीति के तहत वर्ष 2012 से पहले देश की एक अरब से अधिक आबादी की मौजूदा आपूर्ति में लगभग 50 फ़ीसदी का इजाफ़ा करने का लक्ष्य रखा गया है.
इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए एक लाख़ मेगावाट बिजली की ज़रूरत होगी.
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Welcome to Yahoo! Hindi: "बैंकों में हिंदी सॉफ्टवेयर लगें-कोर्ट"
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जयपुर, सोमवार, 28 मई 2007
हिंदी भाषी ग्राहकों को ध्यान में रखते हुए राजस्थान उच्च न्यायालय ने बैंकों और वित्तीय संस्थानों में हिंदी सॉफ्टवेयर लागू करने के निर्देश दिए हैं। अंग्रेजी और हिंदी भाषाओं वाले द्विभाषी सॉफ्टवेयर का आदेश उच्च न्यायालय ने २००५ में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को पहले भी दिया था, जिसके पूरी तरह से कार्यान्वित न होने के कारण उच्च न्यायालय को पुनः इस मामले पर गौर करना पड़ा। जयपुर के अजय पांडेय ने इन वित्तीय संस्थानों के खिलाफ इस संबंध में याचिका दायर की थी। जब यह मामला न्यायाधीश शिवकुमार शर्मा और गुमानसिंह की बेंच के अधीन आया, तब एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस याचिका पर आरबीआई और केंद्र के सभी सार्वजनिक बैंक और संस्थाओं में इसे छह महीनों के भीतर कार्यान्वित करने के आदेश दिए। इस याचिका के अनुसार आरबीआई नीति-निर्देशक तत्वों और राजभाषा कानून के अनुसार हिंदी को बैंकों और वित्तीय संस्थानों की सरकारी भाषा के रूप में स्थान देने की बात कही गई है।
(स्रोत - वेबदुनिया)
और भी...
•
ग्राम प्रधान की हत्या
•
गोलीबारी में रिक्शा चालक मरा
•
माओवादियों का बस पर निशाना
•
कार-जीप भिड़ंत में छह मरे
•
दो घुसपैठियों को मार गिराया
•
मणिपुर में 'उग्रवादी' ढेर
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जयपुर, सोमवार, 28 मई 2007
हिंदी भाषी ग्राहकों को ध्यान में रखते हुए राजस्थान उच्च न्यायालय ने बैंकों और वित्तीय संस्थानों में हिंदी सॉफ्टवेयर लागू करने के निर्देश दिए हैं। अंग्रेजी और हिंदी भाषाओं वाले द्विभाषी सॉफ्टवेयर का आदेश उच्च न्यायालय ने २००५ में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को पहले भी दिया था, जिसके पूरी तरह से कार्यान्वित न होने के कारण उच्च न्यायालय को पुनः इस मामले पर गौर करना पड़ा। जयपुर के अजय पांडेय ने इन वित्तीय संस्थानों के खिलाफ इस संबंध में याचिका दायर की थी। जब यह मामला न्यायाधीश शिवकुमार शर्मा और गुमानसिंह की बेंच के अधीन आया, तब एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस याचिका पर आरबीआई और केंद्र के सभी सार्वजनिक बैंक और संस्थाओं में इसे छह महीनों के भीतर कार्यान्वित करने के आदेश दिए। इस याचिका के अनुसार आरबीआई नीति-निर्देशक तत्वों और राजभाषा कानून के अनुसार हिंदी को बैंकों और वित्तीय संस्थानों की सरकारी भाषा के रूप में स्थान देने की बात कही गई है।
(स्रोत - वेबदुनिया)
और भी...
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ग्राम प्रधान की हत्या
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माओवादियों का बस पर निशाना
•
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•
दो घुसपैठियों को मार गिराया
•
मणिपुर में 'उग्रवादी' ढेर
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MSN INDIA - झूम बराबर झूम
MSN INDIA - झूम बराबर झूम: "झूम बराबर झूम "
लंदन का स्टेशन। रिक्की ठुकराल (अभिषेक बच्चन) और अलवीरा खान (प्रीति जिंटा) बर्मिंघम से आने वाली ट्रेन का इंतजार कर रहे हैं। इस ट्रेन में उनके मंगेतर आ रहे हैं, लेकिन यह ट्रेन दो घंटे लेट है। दोनों एक-दूसरे से अजनबी हैं। समय काटने के लिए दोनों एक कैफे जाते हैं और संयोग से एक ही टेबल पर बैठते हैं। बातचीत शुरू होती है और दोनों एक-दूसरे को अपनी प्रेम कहानी सुनाते हैं।अलवीरा खान पाकिस्तानी लड़की है। वह अपने आपको किसी राजकुमारी से कम नहीं समझती है। अलवीरा की प्रेम कहानी शुरू हुई थी मैडम तुसाद के संग्रहालय से। जब वह वहाँ पर घूम रही थी तब उसके ऊपर सुपरमैन के मोम का पुतला गिर रहा था। इसके पहले की वह पुतला अलवीरा पर गिर पाता वहाँ पर मौजूद स्टीव सिंह (बॉबी देओल) ने उसकी जान बचा ली।स्टीव के इस कारनामे ने अलवीरा का दिल जीत लिया। दोनों को एक-दूसरे से प्यार हो गया। अब रिक्की अपनी कहानी शुरू करता है। रिक्की और अनाइडा (लारा दत्ता) की मुलाकात उसी रात को हुई थी, जिस रात प्रिंसेस डायना की मौत हुई थी। इसीलिए तो रिक्की कहता है कि दो प्यार करने वालों की मौत हुई और दो प्यार करने वाले पैदा हुए।रिक्की और अलवीरा अब अजनबी नहीं रह गए थे। दोनों को एक-दूसरे की कंपनी पसंद आने लगी थी। दोनों के स्वभाव में बहुत अंतर था। अलवीरा शांत, धैर्यवान और शाही व्वयहार करने वाली पाकिस्तानी लड़की थी, वहीं रिक्की धूर्त, लम्पट, चालाक किस्म का भारतीय लड़का था। दोनों एक-दूसरे की ओर खींचे चले जा रहे थे। उनके बस में कुछ नहीं था। आगे क्या होगा? इसका पता चलेगा ‘झूम बराबर झूम’ देखकर।
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लंदन का स्टेशन। रिक्की ठुकराल (अभिषेक बच्चन) और अलवीरा खान (प्रीति जिंटा) बर्मिंघम से आने वाली ट्रेन का इंतजार कर रहे हैं। इस ट्रेन में उनके मंगेतर आ रहे हैं, लेकिन यह ट्रेन दो घंटे लेट है। दोनों एक-दूसरे से अजनबी हैं। समय काटने के लिए दोनों एक कैफे जाते हैं और संयोग से एक ही टेबल पर बैठते हैं। बातचीत शुरू होती है और दोनों एक-दूसरे को अपनी प्रेम कहानी सुनाते हैं।अलवीरा खान पाकिस्तानी लड़की है। वह अपने आपको किसी राजकुमारी से कम नहीं समझती है। अलवीरा की प्रेम कहानी शुरू हुई थी मैडम तुसाद के संग्रहालय से। जब वह वहाँ पर घूम रही थी तब उसके ऊपर सुपरमैन के मोम का पुतला गिर रहा था। इसके पहले की वह पुतला अलवीरा पर गिर पाता वहाँ पर मौजूद स्टीव सिंह (बॉबी देओल) ने उसकी जान बचा ली।स्टीव के इस कारनामे ने अलवीरा का दिल जीत लिया। दोनों को एक-दूसरे से प्यार हो गया। अब रिक्की अपनी कहानी शुरू करता है। रिक्की और अनाइडा (लारा दत्ता) की मुलाकात उसी रात को हुई थी, जिस रात प्रिंसेस डायना की मौत हुई थी। इसीलिए तो रिक्की कहता है कि दो प्यार करने वालों की मौत हुई और दो प्यार करने वाले पैदा हुए।रिक्की और अलवीरा अब अजनबी नहीं रह गए थे। दोनों को एक-दूसरे की कंपनी पसंद आने लगी थी। दोनों के स्वभाव में बहुत अंतर था। अलवीरा शांत, धैर्यवान और शाही व्वयहार करने वाली पाकिस्तानी लड़की थी, वहीं रिक्की धूर्त, लम्पट, चालाक किस्म का भारतीय लड़का था। दोनों एक-दूसरे की ओर खींचे चले जा रहे थे। उनके बस में कुछ नहीं था। आगे क्या होगा? इसका पता चलेगा ‘झूम बराबर झूम’ देखकर।
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BBCHindi.com | कारोबार | भारत का पहला खरबपति
BBCHindi.com कारोबार भारत का पहला खरबपति: "भारत का पहला खरबपति "
रिलायंस इंडस्ट्रीज़ के शेयरों की क़ीमत में ज़बर्दस्त बढ़ोतरी के साथ ही समूह के चेयरमैन मुकेश अंबानी भारत के पहले खरबपति बन गए हैं.
उधर उनके भाई अनिल अंबानी भी बहुत पीछे नहीं है. विभिन्न कंपनियों के शेयरों को मिलाकर उनकी संपत्ति क़रीब 900 अरब आंकी गई है.
मुकेश अंबानी की चार प्रमुख कंपनियां आरआईएल, रिलायंस पेट्रोलियम, आईपीसीएल और रिलायंस इंडस्ट्रीज़ इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड की कुल लागत मिलाकर 2.5 खरब आकी गई है जिसमें से अन्य निवेशकों का हिस्सा क़रीब 1.3 खरब है यानि अकेले मुकेश के पास एक खरब से अधिक की संपत्ति है.
इन आकड़ों के साथ ही मुकेश अंबानी भारत के पहले खरबपति व्यवसायी बन गए हैं. हालांकि अभी उन्हें दुनिया के सबसे धनी भारतीय का खिताब नहीं मिल सकेगा क्योंकि लक्ष्मी निवास मित्तल उनसे काफी आगे हैं.
भारत में यूं तो धनी लोगों की कमी नहीं है और अरबपतियों में कई नाम हैं लेकिन अभी खरबपति में सिर्फ और सिर्फ मुकेश अंबानी का ही नाम आया है.
भारत के अन्य धनी अरबपतियों में नाम है विप्रो समूह के अजीम प्रेमजी, भारती समूह के सुनील मित्तल, डीएलएफ ग्रुप के के पी सिंह, कुमार मंगलम बिड़ला आदि.
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रिलायंस इंडस्ट्रीज़ के शेयरों की क़ीमत में ज़बर्दस्त बढ़ोतरी के साथ ही समूह के चेयरमैन मुकेश अंबानी भारत के पहले खरबपति बन गए हैं.
उधर उनके भाई अनिल अंबानी भी बहुत पीछे नहीं है. विभिन्न कंपनियों के शेयरों को मिलाकर उनकी संपत्ति क़रीब 900 अरब आंकी गई है.
मुकेश अंबानी की चार प्रमुख कंपनियां आरआईएल, रिलायंस पेट्रोलियम, आईपीसीएल और रिलायंस इंडस्ट्रीज़ इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड की कुल लागत मिलाकर 2.5 खरब आकी गई है जिसमें से अन्य निवेशकों का हिस्सा क़रीब 1.3 खरब है यानि अकेले मुकेश के पास एक खरब से अधिक की संपत्ति है.
इन आकड़ों के साथ ही मुकेश अंबानी भारत के पहले खरबपति व्यवसायी बन गए हैं. हालांकि अभी उन्हें दुनिया के सबसे धनी भारतीय का खिताब नहीं मिल सकेगा क्योंकि लक्ष्मी निवास मित्तल उनसे काफी आगे हैं.
भारत में यूं तो धनी लोगों की कमी नहीं है और अरबपतियों में कई नाम हैं लेकिन अभी खरबपति में सिर्फ और सिर्फ मुकेश अंबानी का ही नाम आया है.
भारत के अन्य धनी अरबपतियों में नाम है विप्रो समूह के अजीम प्रेमजी, भारती समूह के सुनील मित्तल, डीएलएफ ग्रुप के के पी सिंह, कुमार मंगलम बिड़ला आदि.
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Sunday, May 27, 2007
Welcome to Yahoo! Hindi: "पालक मटन"
Welcome to Yahoo! Hindi: "पालक मटन"
पालक मटन
- संदीप सिसौदिया
सामग्री : 250 ग्राम साफ किया हुआ (छोटे टुकड़ों में कटा हुआ) मटन, 100 ग्राम पालक, एक चम्मच अदरक-लहसुन, एक चम्मच हरी मिर्च पेस्ट, आधा चम्मच लाल मिर्च पाउडर, चुटकी भर गरम मसाला, एक चम्मच धनिया पाउडर, चुटकी भर हल्दी पाउडर, दो चम्मच सिरका, 100 ग्राम तेल, 50 ग्राम कटे टमाटर, बघार के लिए जीरा-राई तथा नमक स्वादानुसार।विधि : आलू, लहसुन, हरी तथा लाल मिर्च, गरम मसाला, धनिया तथा हल्दी पाउडर, थोड़ा-सा तेल तथा सिरका मिलाएँ तथा मटन के टुकड़े कुछ देर के लिए इसमें अच्छी तरह मिलाकर रख दें। पालक धोकर बारीक काट लें। कढाही में तेल गर्म करें और इसमें राई-जीरे को चटकाएँ। अब इसमें कटा हुआ पालक डालकर चलाएँ। जब पालक गल जाए तक मटन के टुकड़े मिश्रण सहित डालें और अच्छी तरह से पकाएँ। जब मटन पक जाए तब कटे हुए टमाटर डालें और पाँच मिनट तक फिर से पकाएँ और गर्मागर्म जायका लें। श्री संदीप सिंह सिसौदिया व्यंजन बनाने और खिलाने के बेहद शौकीन हैं। मांसाहारी व्यंजनों में उनकी खास रूचि है।
(स्रोत - वेबदुनिया)
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दही मटन
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तीखे कबाब
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अंडा पकौड़ा
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चिकन रोल ग्रेवी
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पालक मटन
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अंडा पकौड़ा
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पालक मटन
- संदीप सिसौदिया
सामग्री : 250 ग्राम साफ किया हुआ (छोटे टुकड़ों में कटा हुआ) मटन, 100 ग्राम पालक, एक चम्मच अदरक-लहसुन, एक चम्मच हरी मिर्च पेस्ट, आधा चम्मच लाल मिर्च पाउडर, चुटकी भर गरम मसाला, एक चम्मच धनिया पाउडर, चुटकी भर हल्दी पाउडर, दो चम्मच सिरका, 100 ग्राम तेल, 50 ग्राम कटे टमाटर, बघार के लिए जीरा-राई तथा नमक स्वादानुसार।विधि : आलू, लहसुन, हरी तथा लाल मिर्च, गरम मसाला, धनिया तथा हल्दी पाउडर, थोड़ा-सा तेल तथा सिरका मिलाएँ तथा मटन के टुकड़े कुछ देर के लिए इसमें अच्छी तरह मिलाकर रख दें। पालक धोकर बारीक काट लें। कढाही में तेल गर्म करें और इसमें राई-जीरे को चटकाएँ। अब इसमें कटा हुआ पालक डालकर चलाएँ। जब पालक गल जाए तक मटन के टुकड़े मिश्रण सहित डालें और अच्छी तरह से पकाएँ। जब मटन पक जाए तब कटे हुए टमाटर डालें और पाँच मिनट तक फिर से पकाएँ और गर्मागर्म जायका लें। श्री संदीप सिंह सिसौदिया व्यंजन बनाने और खिलाने के बेहद शौकीन हैं। मांसाहारी व्यंजनों में उनकी खास रूचि है।
(स्रोत - वेबदुनिया)
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Welcome to Yahoo! Hindi
Welcome to Yahoo! Hindi: "अभिनेत्री लिंडसे लोहान गिरफ्तार"
बेवेरली हिल्स (भाषा), रविवार, 27 मई 2007
मीन गर्ल्स, बार्बी और प्रिटी होम कम्पेनियन जैसी फिल्मों में काम करने वाली अभिनेत्री लिंडसे लोहान को नशे की हालत में गाड़ी चलाने के संदेह में गिरफ्तार किया गया है। जाँचकर्ताओं ने उनकी कार से कुछ सामग्री बरामद की है जिसके बारे में उनका संदेह है कि वह कोकीन है। लोहान की नई फिल्म जार्जिया रूल अभी सिनेमाघरों में है।सर्जेंट माइक फाक्सेन ने कहा कि बीस वर्षीय लोहान और दो अन्य लोग अभिनेत्री की 2005 मर्सिडीज एसएल 65 में थे जब वह सनसेट बोलवार्ड से शनिवार की सुबह करीब साढ़े पाँच बजे टकराई। लेफ्टिनेंट मिच मैकन ने दोपहर बाद संवाददाता सम्मेलन में कहा कि ऐसा लगता है कि लोहान गाड़ी की गति तेज कर रही थीं।मैकन ने कहा कि मौके पर अधिकारियों को एक नशीले पदार्थ की इस्तेमाल करने भर मात्रा मिली जिसकी पहचान अस्थायी तौर पर कोकीन के रूप में की गई है। उन्होंने यह कहने से इनकार कर दिया कि बरामद नशीला पदार्थ लोहान का नहीं है।लोहान ने इस साल के शुरू में ज्यादातर समय पुनर्वास केंद्र में गुजारा है। मैकन ने कहा कि उन्हें दूसरी कार में इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया क्योंकि उन्हें हल्की फुल्की चोट आई है। कार में सवार दो अन्य लोग घायल नहीं हुए हैं।मैकन ने कहा कि अधिकारियों को दुर्घटना के बारे में आपात सूचना मिली और उन्होंने लोहान को शराब या नशीले पदार्थों का सेवन कर गाड़ी चलाने की जाँच के लिए अस्पताल से गिरफ्तार किया। पुलिस ने कहा कि उसे हिरासत से छोड़ दिया गया क्योंकि वह अस्पताल में भर्ती थी। (एपी)
(स्रोत - वेबदुनिया)
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रूस से युद्धक टैंक खरीदेगा भारत
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पारलौकिक जीव विज्ञान के जनक मिलर
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अब भी प्रधानमंत्री हूँ : शरीफ
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बगदाद में विस्फोट, छह की मौत
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ईरानी-यूरोपीय अधिकारियों की बैठक
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इराक : अमेरिकी सैनिकों की मौत
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बेवेरली हिल्स (भाषा), रविवार, 27 मई 2007
मीन गर्ल्स, बार्बी और प्रिटी होम कम्पेनियन जैसी फिल्मों में काम करने वाली अभिनेत्री लिंडसे लोहान को नशे की हालत में गाड़ी चलाने के संदेह में गिरफ्तार किया गया है। जाँचकर्ताओं ने उनकी कार से कुछ सामग्री बरामद की है जिसके बारे में उनका संदेह है कि वह कोकीन है। लोहान की नई फिल्म जार्जिया रूल अभी सिनेमाघरों में है।सर्जेंट माइक फाक्सेन ने कहा कि बीस वर्षीय लोहान और दो अन्य लोग अभिनेत्री की 2005 मर्सिडीज एसएल 65 में थे जब वह सनसेट बोलवार्ड से शनिवार की सुबह करीब साढ़े पाँच बजे टकराई। लेफ्टिनेंट मिच मैकन ने दोपहर बाद संवाददाता सम्मेलन में कहा कि ऐसा लगता है कि लोहान गाड़ी की गति तेज कर रही थीं।मैकन ने कहा कि मौके पर अधिकारियों को एक नशीले पदार्थ की इस्तेमाल करने भर मात्रा मिली जिसकी पहचान अस्थायी तौर पर कोकीन के रूप में की गई है। उन्होंने यह कहने से इनकार कर दिया कि बरामद नशीला पदार्थ लोहान का नहीं है।लोहान ने इस साल के शुरू में ज्यादातर समय पुनर्वास केंद्र में गुजारा है। मैकन ने कहा कि उन्हें दूसरी कार में इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया क्योंकि उन्हें हल्की फुल्की चोट आई है। कार में सवार दो अन्य लोग घायल नहीं हुए हैं।मैकन ने कहा कि अधिकारियों को दुर्घटना के बारे में आपात सूचना मिली और उन्होंने लोहान को शराब या नशीले पदार्थों का सेवन कर गाड़ी चलाने की जाँच के लिए अस्पताल से गिरफ्तार किया। पुलिस ने कहा कि उसे हिरासत से छोड़ दिया गया क्योंकि वह अस्पताल में भर्ती थी। (एपी)
(स्रोत - वेबदुनिया)
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Monday, May 21, 2007
BBCHindi.com: "नेपाल में प्रभु के 'पसीने' से घबराए भक्त"
BBCHindi.com: "नेपाल में प्रभु के 'पसीने' से घबराए भक्त"
नेपाल में हज़ारों हिंदू श्रद्धालु भीमेश्वर के दर्शन करने पहुँच रहे हैं जिनके बारे में कहा जा रहा है कि उन्हें 'पसीना' आ रहा है.
भक्तों का कहना है कि देवी को पसीना आना किसी अनिष्ट या प्राकृतिक आपदा का सूचक है.
नेपाल में भीमेश्वर को व्यापार और कारोबार को देवता माना जाता है, भक्तों का कहना है कि उनकी मूर्ति को शनिवार से पसीना आ रहा है.
भगवान भीमेश्वर का मंदिर नेपाल के दोलखा ज़िले में है जो राजधानी काठमांडू से 70 किलोमीटर दूर है.
मंदिर के मुख्य पुजारी शांत कृ़ष्ण श्रेष्ठ का कहना है कि भीमेश्वर को जब-जब पसीना आता है तब कोई आपदा आती है या राजपरिवार पर संकट आता है.
मैंने देखा मूर्ति से बहुत पसीना निकल रहा था, हमें अनिष्ट शांति के लिए विशेष पूजा का आयोजन करना चाहिए
मुख्य पुजारी
श्रेष्ठ कहते हैं, "2001 में भी राजपरिवार की सामूहिक हत्या से पहले भी इस मूर्ति से बहुत पसीना निकला था."
2001 में महाराज वीरेंद्र और महारानी ऐश्वर्या सहित राजपरिवार के नौ लोगों की हत्या राजकुमार दीपेंद्र ने कर दी थी.
मुख्य पुजारी कहते हैं, "मैंने देखा मूर्ति से बहुत पसीना निकल रहा था, हमें अनिष्ट शांति के लिए विशेष पूजा का आयोजन करना चाहिए."
स्थानीय लोगों का यह भी कहना है कि 1934 में आए भीषण भूकंप के पहले भी भीमेश्वर की मूर्ति को पसीना आया था.
उनका ये भी कहना है कि पिछले वर्ष भी मूर्ति को पसीना आया था जिसके बाद नेपाल में बड़े पैमाने पर राजशाही के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हुए थे और राजा के अधिकार छीन लिए गए.
मूर्ति को पसीना आने की बात ऐसे समय पर उठी है जबकि नेपाल राजनीतिक दोराहे पर खड़ा है, माओवादी विद्रोही राजशाही को पूरी तरह समाप्त करने की माँग कर रहे हैं.
लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि मंदिर के बाहर सर्दी और अंदर गर्मी होने के कारण वाष्प की बूंदे मूर्ति पर जमा हो जाती हैं जिसे लोग मूर्ति का पसीना समझते हैं.
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नेपाल में हज़ारों हिंदू श्रद्धालु भीमेश्वर के दर्शन करने पहुँच रहे हैं जिनके बारे में कहा जा रहा है कि उन्हें 'पसीना' आ रहा है.
भक्तों का कहना है कि देवी को पसीना आना किसी अनिष्ट या प्राकृतिक आपदा का सूचक है.
नेपाल में भीमेश्वर को व्यापार और कारोबार को देवता माना जाता है, भक्तों का कहना है कि उनकी मूर्ति को शनिवार से पसीना आ रहा है.
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2001 में महाराज वीरेंद्र और महारानी ऐश्वर्या सहित राजपरिवार के नौ लोगों की हत्या राजकुमार दीपेंद्र ने कर दी थी.
मुख्य पुजारी कहते हैं, "मैंने देखा मूर्ति से बहुत पसीना निकल रहा था, हमें अनिष्ट शांति के लिए विशेष पूजा का आयोजन करना चाहिए."
स्थानीय लोगों का यह भी कहना है कि 1934 में आए भीषण भूकंप के पहले भी भीमेश्वर की मूर्ति को पसीना आया था.
उनका ये भी कहना है कि पिछले वर्ष भी मूर्ति को पसीना आया था जिसके बाद नेपाल में बड़े पैमाने पर राजशाही के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हुए थे और राजा के अधिकार छीन लिए गए.
मूर्ति को पसीना आने की बात ऐसे समय पर उठी है जबकि नेपाल राजनीतिक दोराहे पर खड़ा है, माओवादी विद्रोही राजशाही को पूरी तरह समाप्त करने की माँग कर रहे हैं.
लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि मंदिर के बाहर सर्दी और अंदर गर्मी होने के कारण वाष्प की बूंदे मूर्ति पर जमा हो जाती हैं जिसे लोग मूर्ति का पसीना समझते हैं.
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Welcome to Yahoo! Hindi: "फास्ट और स्लो ट्रेक के बीच लास्ट लोकल"
Welcome to Yahoo! Hindi: "फास्ट और स्लो ट्रेक के बीच लास्ट लोकल"
निर्माता : क्वार्टेट फिल्म्सनिर्देशक : संजय खंडूरी कलाकार : अभय देओल, नेहा धूपिया‘एक चालीस की लास्ट लोकल’ में एक युवक के ढाई घंटे के समय को दिखाया गया है। इस ढाई घंटे के सफर में वह 70 रुपयों से ढाई करोड़ रूपयों तक पहुँच जाता है। उसे प्यार भी हो जाता है। इन ढाई घंटों में वह अंडरवर्ल्ड और पुलिस शिकंजे में भी फँसता है और छूटता है। यह कहानी सुनने में जरूर दिलचस्प लगती है लेकिन उसका फिल्मी रूपांतरण उतना अच्छा नहीं हो पाया है। कहानी :पूरी कहानी मुंबई शहर की है। नीलेश (अभय देओल) से रात्रि की एक चालीस वाली लोकल छूट जाती है। इसके बाद अगली लोकल ट्रेन ढाई घंटे बाद है। पुलिस वाले उसे स्टेशन पर नहीं बैठने देते हैं। बाहर आकर उसे पता चलता है कि ऑटो रिक्शा वालों की हड़ताल है। उसकी मुलाकात मधु (नेहा धूपिया) से होती है। मधु को भी वहीं जाना होता है जहाँ नीलेश को। ढाई घंटे कैसे पास करें यह दोनों सोचते है। सड़क पर टहलते हुए वे एक बार में पहुँच जाते है। नीलेश के पास केवल सत्तर रूपए हैं। बार में नीलेश का एक दोस्त मिलता है और वह उसके साथ जुआ खेलने जाता है। थोड़ी देर बाद उसे मधु की याद आती है तो वह मधु को ढूँढता है। वह देखता है कि एक बदमाश मधु के साथ जोर-जबरदस्ती करता रहता है। नीलेश उस बदमाश को ललकारता है। वह बदमाश नीलेश को मारने आता है लेकिन उसका पैर फिसल जाता है और वह टकराकर मर जाता है। शोर सुनकर लोग इकट्ठा होते हैं और वे नीलेश को हत्यारा समझते हैं। वह बदमाश अंडरवर्ल्ड के एक गुंडे का भाई रहता है। नीलेश को जब वह गुंडा मारने वाला होता है तब उस बार पर पुलिस का छापा पड़ जाता है। नीलेश भी पुलिस के शिकंजे में फँस जाता है। नीलेश को पता चलता है कि मधु दरअसल एक वैश्या है जो रात में ग्राहकों को फाँसती है। लेकिन दोनों के बीच प्यार हो जाता है। पुलिस और अंडरवर्ल्ड के बीच उलझते-सुलझते जब ढाई घंटे समाप्त होते हैं तब नीलेश के हाथ में ढाई करोड़ रूपए और मधु होती है।निर्देशन :संजय खंडूरी द्वारा निर्देशित यह पहली फिल्म है और इसमें उन्होंने अपने जौहर दिखाने के प्रयास किए है। कायदे से यह फिल्म दो घंटे में खत्म हो जानी थी, लेकिन खंडूरी ने इसे ढाई घंटे तक खींचा। इस कारण कई दृश्यों में दोहराव लगा। फिल्म कहीं अच्छी, कहीं बुरी है। खंडूरी पूरी फिल्म पर अपनी पकड़ नहीं दिखा पाए। मुंबई के रात के माहौल को उन्होंने जीवंत किया। खंडूरी में एक अच्छे निर्देशक बनने की संभावना है। अभिनय : अभय देओल का अभिनय सराहनीय है। एक मिडिल क्लास के सामान्य से लड़के की भूमिका को उन्होंने बखूबी निभाया है। नेहा धूपिया का चयन गलत है। लाख कोशिशों के बावजूद नेहा अभिनय नहीं सीख पाई। उसके चेहरे पर भाव ही नहीं आ पाते हैं। वीरेन्द्र सक्सेना, स्नेहल दुबे, दीपक शिरके और अशोक समर्थ के साथ सारे अभिनेताओं ने उम्दा काम किया है। अन्य पक्ष : फिल्म में गानों की गुंजाइश नहीं के बराबर थी। इसलिए निर्देशक ने गानों से परहेज रखा। केवल बार में और एक-दो जगह केवल मुखड़ों से काम चलाया। पता नहीं छह संगीतकारों को रखने की जरूरत निर्देशक को क्यों पड़ी? फोटोग्राफी भी ठीक है। रात का माहौल देने के लिए लाइट कम रखा गया है। इस कारण फिल्म में अँधेरा ज्यादा दिखाई देता है। कुल मिलाकर ‘एक चालीस की लास्ट लोकल’ फास्ट ट्रेक और स्लो ट्रेक के बीच की फिल्म है।
(स्रोत - वेबदुनिया)
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निर्माता : क्वार्टेट फिल्म्सनिर्देशक : संजय खंडूरी कलाकार : अभय देओल, नेहा धूपिया‘एक चालीस की लास्ट लोकल’ में एक युवक के ढाई घंटे के समय को दिखाया गया है। इस ढाई घंटे के सफर में वह 70 रुपयों से ढाई करोड़ रूपयों तक पहुँच जाता है। उसे प्यार भी हो जाता है। इन ढाई घंटों में वह अंडरवर्ल्ड और पुलिस शिकंजे में भी फँसता है और छूटता है। यह कहानी सुनने में जरूर दिलचस्प लगती है लेकिन उसका फिल्मी रूपांतरण उतना अच्छा नहीं हो पाया है। कहानी :पूरी कहानी मुंबई शहर की है। नीलेश (अभय देओल) से रात्रि की एक चालीस वाली लोकल छूट जाती है। इसके बाद अगली लोकल ट्रेन ढाई घंटे बाद है। पुलिस वाले उसे स्टेशन पर नहीं बैठने देते हैं। बाहर आकर उसे पता चलता है कि ऑटो रिक्शा वालों की हड़ताल है। उसकी मुलाकात मधु (नेहा धूपिया) से होती है। मधु को भी वहीं जाना होता है जहाँ नीलेश को। ढाई घंटे कैसे पास करें यह दोनों सोचते है। सड़क पर टहलते हुए वे एक बार में पहुँच जाते है। नीलेश के पास केवल सत्तर रूपए हैं। बार में नीलेश का एक दोस्त मिलता है और वह उसके साथ जुआ खेलने जाता है। थोड़ी देर बाद उसे मधु की याद आती है तो वह मधु को ढूँढता है। वह देखता है कि एक बदमाश मधु के साथ जोर-जबरदस्ती करता रहता है। नीलेश उस बदमाश को ललकारता है। वह बदमाश नीलेश को मारने आता है लेकिन उसका पैर फिसल जाता है और वह टकराकर मर जाता है। शोर सुनकर लोग इकट्ठा होते हैं और वे नीलेश को हत्यारा समझते हैं। वह बदमाश अंडरवर्ल्ड के एक गुंडे का भाई रहता है। नीलेश को जब वह गुंडा मारने वाला होता है तब उस बार पर पुलिस का छापा पड़ जाता है। नीलेश भी पुलिस के शिकंजे में फँस जाता है। नीलेश को पता चलता है कि मधु दरअसल एक वैश्या है जो रात में ग्राहकों को फाँसती है। लेकिन दोनों के बीच प्यार हो जाता है। पुलिस और अंडरवर्ल्ड के बीच उलझते-सुलझते जब ढाई घंटे समाप्त होते हैं तब नीलेश के हाथ में ढाई करोड़ रूपए और मधु होती है।निर्देशन :संजय खंडूरी द्वारा निर्देशित यह पहली फिल्म है और इसमें उन्होंने अपने जौहर दिखाने के प्रयास किए है। कायदे से यह फिल्म दो घंटे में खत्म हो जानी थी, लेकिन खंडूरी ने इसे ढाई घंटे तक खींचा। इस कारण कई दृश्यों में दोहराव लगा। फिल्म कहीं अच्छी, कहीं बुरी है। खंडूरी पूरी फिल्म पर अपनी पकड़ नहीं दिखा पाए। मुंबई के रात के माहौल को उन्होंने जीवंत किया। खंडूरी में एक अच्छे निर्देशक बनने की संभावना है। अभिनय : अभय देओल का अभिनय सराहनीय है। एक मिडिल क्लास के सामान्य से लड़के की भूमिका को उन्होंने बखूबी निभाया है। नेहा धूपिया का चयन गलत है। लाख कोशिशों के बावजूद नेहा अभिनय नहीं सीख पाई। उसके चेहरे पर भाव ही नहीं आ पाते हैं। वीरेन्द्र सक्सेना, स्नेहल दुबे, दीपक शिरके और अशोक समर्थ के साथ सारे अभिनेताओं ने उम्दा काम किया है। अन्य पक्ष : फिल्म में गानों की गुंजाइश नहीं के बराबर थी। इसलिए निर्देशक ने गानों से परहेज रखा। केवल बार में और एक-दो जगह केवल मुखड़ों से काम चलाया। पता नहीं छह संगीतकारों को रखने की जरूरत निर्देशक को क्यों पड़ी? फोटोग्राफी भी ठीक है। रात का माहौल देने के लिए लाइट कम रखा गया है। इस कारण फिल्म में अँधेरा ज्यादा दिखाई देता है। कुल मिलाकर ‘एक चालीस की लास्ट लोकल’ फास्ट ट्रेक और स्लो ट्रेक के बीच की फिल्म है।
(स्रोत - वेबदुनिया)
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सानिया एकल में फिसली, युगल में लगाई छलाँग
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सानिया एकल में फिसली, युगल में लगाई छलाँग
भारतीय टेनिस स्टार सानिया मिर्जा ने मोरक्को ओपन का युगल खिताब जीतने के बाद डब्ल्यूटीए युगल रैकिंग में चार स्थान की छलाँग लगाई है लेकिन एकल में खराब प्रदर्शन के कारण वह एक स्थान नीचे खिसक गई।चोट के कारण तीन महीने तक कोर्ट से बाहर रहने वाली सानिया ने पिछले सप्ताह शानदार वापसी करते हुए वानिया किंग के साथ मिलकर मोरक्को ओपन का युगल खिताब जीता था। इस जीत से डब्ल्यूटीए की ताजा रैंकिंग में वह चार स्थान के सुधार के साथ 41वें नंबर पर पहुँच गई हैं। सानिया के युगल में 1027 अंक हैं। सानिया मोरक्को ओपन के एकल में पहले दौर में ही अर्जेन्टीना की एक क्वालीफायर से हार गई थी। इसका नुकसान उन्हें रैंकिंग में उठाना और वह 503 रेटिंग अंक के साथ एक स्थान नीचे 52वें नंबर पर खिसक गई। महिलाओं के वर्ग में जस्टिन हेनिन मारिया शारपोवा और जेलेना जांकोविच शीर्ष तीन पर काबिज हैं।भारत की अन्य खिलाड़ियों को भी एकल में निचली पायदान पर खिसकना पड़ा। डब्ल्यूटीए सर्किल में खेलने वाली एक अन्य भारतीय शिखा ओबेरॉय पाँच स्थान नीचे 251, सुनीता राव तीन स्थान नीचे 256 और रश्मि चक्रवर्ती दस स्थान नीचे 398वें स्थान पर फिसल गई।लिएंडर पेस एटीपी की युगल रैकिंग में छठे स्थान पर बने हुए हैं जबकि महेश भूपति दो स्थान ऊपर 23वें नंबर पर पहुँच गए हैं। पेस के 3940 और भूपति के 1670 अंक हैं। एकल में रोहन बोपन्ना भारत के चोटी के खिलाड़ी बने हुए हैं। बोपन्ना 262वें नंबर पर बरकरार हैं। उनके बाद हर्ष मांकड़ का नंबर आता है जो दो पायदान ऊपर 376वें स्थान पर पहुँच गए हैं। करण रस्तोगी को नौ स्थान नीचे 398वें नंबर पर खिसक गए हैं।हैम्बर्ग मास्टर्स ओपन में राफेल नडाल के क्ले कोर्ट विजय अभियान पर रोक लगाने वाले रोजर फेडरर की रैकिंग में भी बादशाहत बरकरार है। नडाल अब भी दूसरे नंबर पर बने हुए हैं जबकि एंडी रोडिक ने निकोलई देवीदेंको को तीसरे स्थान से हटाकर फिर से चोटी के तीन खिलाड़ियों में जगह बना ली है।
(स्रोत - वेबदुनिया)
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सानिया एकल में फिसली, युगल में लगाई छलाँग
भारतीय टेनिस स्टार सानिया मिर्जा ने मोरक्को ओपन का युगल खिताब जीतने के बाद डब्ल्यूटीए युगल रैकिंग में चार स्थान की छलाँग लगाई है लेकिन एकल में खराब प्रदर्शन के कारण वह एक स्थान नीचे खिसक गई।चोट के कारण तीन महीने तक कोर्ट से बाहर रहने वाली सानिया ने पिछले सप्ताह शानदार वापसी करते हुए वानिया किंग के साथ मिलकर मोरक्को ओपन का युगल खिताब जीता था। इस जीत से डब्ल्यूटीए की ताजा रैंकिंग में वह चार स्थान के सुधार के साथ 41वें नंबर पर पहुँच गई हैं। सानिया के युगल में 1027 अंक हैं। सानिया मोरक्को ओपन के एकल में पहले दौर में ही अर्जेन्टीना की एक क्वालीफायर से हार गई थी। इसका नुकसान उन्हें रैंकिंग में उठाना और वह 503 रेटिंग अंक के साथ एक स्थान नीचे 52वें नंबर पर खिसक गई। महिलाओं के वर्ग में जस्टिन हेनिन मारिया शारपोवा और जेलेना जांकोविच शीर्ष तीन पर काबिज हैं।भारत की अन्य खिलाड़ियों को भी एकल में निचली पायदान पर खिसकना पड़ा। डब्ल्यूटीए सर्किल में खेलने वाली एक अन्य भारतीय शिखा ओबेरॉय पाँच स्थान नीचे 251, सुनीता राव तीन स्थान नीचे 256 और रश्मि चक्रवर्ती दस स्थान नीचे 398वें स्थान पर फिसल गई।लिएंडर पेस एटीपी की युगल रैकिंग में छठे स्थान पर बने हुए हैं जबकि महेश भूपति दो स्थान ऊपर 23वें नंबर पर पहुँच गए हैं। पेस के 3940 और भूपति के 1670 अंक हैं। एकल में रोहन बोपन्ना भारत के चोटी के खिलाड़ी बने हुए हैं। बोपन्ना 262वें नंबर पर बरकरार हैं। उनके बाद हर्ष मांकड़ का नंबर आता है जो दो पायदान ऊपर 376वें स्थान पर पहुँच गए हैं। करण रस्तोगी को नौ स्थान नीचे 398वें नंबर पर खिसक गए हैं।हैम्बर्ग मास्टर्स ओपन में राफेल नडाल के क्ले कोर्ट विजय अभियान पर रोक लगाने वाले रोजर फेडरर की रैकिंग में भी बादशाहत बरकरार है। नडाल अब भी दूसरे नंबर पर बने हुए हैं जबकि एंडी रोडिक ने निकोलई देवीदेंको को तीसरे स्थान से हटाकर फिर से चोटी के तीन खिलाड़ियों में जगह बना ली है।
(स्रोत - वेबदुनिया)
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Thursday, May 17, 2007
BBCHindi.com: "ज़ोर लगाके हइया, रेल चला ले भइया"
BBCHindi.com: "ज़ोर लगाके हइया, रेल चला ले भइया"
हाथ के धक्के से रिक्शे और ठेले खींचने की ख़बरें तो आप बराबर पढ़ते-सुनते होंगे. पर आपको यह बताया जाए कि रेल भी हाथ के धक्के से चलाई जाती है तो आपको कैसा लगेगा?
यह चमत्कार रेल मंत्री लालू प्रसाद के गृह राज्य बिहार में पटना-बक्सर लाइन पर हुआ है.
मज़े की बात है कि यह चमत्कार रेलवे ड्राइवर ने नहीं बल्कि ड्राइवर को भरोसे में लेकर यात्रियों ने किया है.
राजधानी पटना से बक्सर को जाने वाली 565 अप सवारी गाड़ी जब बिनाही स्टेशन के क़रीब पहुँची तो एक यात्री ने रोज़मर्रा की आदत के मुताबिक़ स्टेशन से अपने घर की लंबी दूरी तय करने के बजाए घर के सामने ही चेन खींचकर गाड़ी रोक दी.
संयोग से यह गाड़ी न्यूट्रल ज़ोन यानी बिजली प्रवाहित नहीं होने वाले क्षेत्र में पहुँच कर रुक गई.
बस क्या था बिजली चालित इंजन न सिर्फ़ रुक गया बल्कि बंद भी हो गया. बाद में यात्रियों ने ड्राइवर को इस बात पर राज़ी कर लिया कि वह घबराएँ नहीं, अगर किसी यात्री ने गाड़ी रोकी है तो फिर यात्री ही इसे फिर चलाएँगें.
कुछ युवा और उत्साही यात्रियों ने महिला और बच्चों समेत सभी यात्रियों को ट्रेन से उतार दिया.
जय बजरबंग बली के नारों के साथ उत्साही यात्री दस बोगी की ट्रेन को डेढ़ मीटर तक धकेलने में कामयाब रहे.
ज़िंदा तारों के संपर्क में आते ही इंजन ने गति पकड़ ली.
ऐतिहासिक घटना
पटना स्थित दानापुर मंडल के रेलवे जनसंपर्क अधिकारी रंजीत सिंह कहते हैं “वाक़ई यह एक ऐतिहासिक घटना है.”
राजेंद्र नगर स्टेशन जहाँ से ट्रेन चली थी
लेकिन वह इस बात से इनकार करते हैं कि इस मामले पर किसी के ख़िलाफ़ कोई क़ानूनी कार्रवाई होगी. वे कहते हैं, “ग़ैर-ज़रूरी कारणों से चेन पुलिंग का मामला बिहार में एक गंभीर समस्या है लेकिन इस मामले में हज़ारों यात्रियों में से किसी एक को पहचान कर कार्रवाई करना आसान नहीं है."
रंजीत सिंह कहते हैं कि बिजली वाली लाइनों में हर 25 किलोमीटर के फ़ासले पर एक 41 मीटर लंबी न्यूट्रल ज़ोन वाला तार होता है जिसमें बिजली का प्रवाह नहीं होता.
इस मंडल की लाइनों पर प्रति दिन बिना ज़रूरत चेन पुलिंग की औसतन बीस घटनाएँ होती हैं.
दिलचस्प बात यह है कि रेल मंत्री लालू प्रसाद भारतीय रेल परिचालन को बेहतर बनाकर यूरोप से टक्कर लेने की बात करते हैं. रेल मंत्री बिहार में ट्रेन परिचालन में विलंब के कारण पिछले एक हफ़्ते से रेल अधिकारियों को धमकाते रहे हैं.
पर अब भी ग़ैर-ज़रूरी चेन पुलिंग पर क़ाबू नहीं पाया जा सका है. ख़राब परिचालन के बावजूद पटना स्थित दानापुर मंडल पूर्वी भारत में कोलकाता के बाद सबसे ज़्यादा कमाई करने वाला मंडल है.
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हाथ के धक्के से रिक्शे और ठेले खींचने की ख़बरें तो आप बराबर पढ़ते-सुनते होंगे. पर आपको यह बताया जाए कि रेल भी हाथ के धक्के से चलाई जाती है तो आपको कैसा लगेगा?
यह चमत्कार रेल मंत्री लालू प्रसाद के गृह राज्य बिहार में पटना-बक्सर लाइन पर हुआ है.
मज़े की बात है कि यह चमत्कार रेलवे ड्राइवर ने नहीं बल्कि ड्राइवर को भरोसे में लेकर यात्रियों ने किया है.
राजधानी पटना से बक्सर को जाने वाली 565 अप सवारी गाड़ी जब बिनाही स्टेशन के क़रीब पहुँची तो एक यात्री ने रोज़मर्रा की आदत के मुताबिक़ स्टेशन से अपने घर की लंबी दूरी तय करने के बजाए घर के सामने ही चेन खींचकर गाड़ी रोक दी.
संयोग से यह गाड़ी न्यूट्रल ज़ोन यानी बिजली प्रवाहित नहीं होने वाले क्षेत्र में पहुँच कर रुक गई.
बस क्या था बिजली चालित इंजन न सिर्फ़ रुक गया बल्कि बंद भी हो गया. बाद में यात्रियों ने ड्राइवर को इस बात पर राज़ी कर लिया कि वह घबराएँ नहीं, अगर किसी यात्री ने गाड़ी रोकी है तो फिर यात्री ही इसे फिर चलाएँगें.
कुछ युवा और उत्साही यात्रियों ने महिला और बच्चों समेत सभी यात्रियों को ट्रेन से उतार दिया.
जय बजरबंग बली के नारों के साथ उत्साही यात्री दस बोगी की ट्रेन को डेढ़ मीटर तक धकेलने में कामयाब रहे.
ज़िंदा तारों के संपर्क में आते ही इंजन ने गति पकड़ ली.
ऐतिहासिक घटना
पटना स्थित दानापुर मंडल के रेलवे जनसंपर्क अधिकारी रंजीत सिंह कहते हैं “वाक़ई यह एक ऐतिहासिक घटना है.”
राजेंद्र नगर स्टेशन जहाँ से ट्रेन चली थी
लेकिन वह इस बात से इनकार करते हैं कि इस मामले पर किसी के ख़िलाफ़ कोई क़ानूनी कार्रवाई होगी. वे कहते हैं, “ग़ैर-ज़रूरी कारणों से चेन पुलिंग का मामला बिहार में एक गंभीर समस्या है लेकिन इस मामले में हज़ारों यात्रियों में से किसी एक को पहचान कर कार्रवाई करना आसान नहीं है."
रंजीत सिंह कहते हैं कि बिजली वाली लाइनों में हर 25 किलोमीटर के फ़ासले पर एक 41 मीटर लंबी न्यूट्रल ज़ोन वाला तार होता है जिसमें बिजली का प्रवाह नहीं होता.
इस मंडल की लाइनों पर प्रति दिन बिना ज़रूरत चेन पुलिंग की औसतन बीस घटनाएँ होती हैं.
दिलचस्प बात यह है कि रेल मंत्री लालू प्रसाद भारतीय रेल परिचालन को बेहतर बनाकर यूरोप से टक्कर लेने की बात करते हैं. रेल मंत्री बिहार में ट्रेन परिचालन में विलंब के कारण पिछले एक हफ़्ते से रेल अधिकारियों को धमकाते रहे हैं.
पर अब भी ग़ैर-ज़रूरी चेन पुलिंग पर क़ाबू नहीं पाया जा सका है. ख़राब परिचालन के बावजूद पटना स्थित दानापुर मंडल पूर्वी भारत में कोलकाता के बाद सबसे ज़्यादा कमाई करने वाला मंडल है.
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Tuesday, May 15, 2007
BBCHindi.com: "'न किसी की आँख का नूर हूँ...'"
http://www.bbc.co.uk/hindi/regionalnews/story/2007/05/070510_spl_1857_zafar.shtml
BBCHindi.com: "'न किसी की आँख का नूर हूँ...'"
बहादुर शाह ज़फ़र की शायरी में बुद्धिजीवी होने का जो ग़म मिलता है वह 1857 के विद्रोह और उसके बाद उन्हें निर्वासित करके रंगून भेजने के बाद और भी स्पष्ट तौर पर उनकी शायरी में नज़र आता है.
मुग़ल सल्तनत के आख़िरी ताजदार बहादुर शाह ज़फ़र ने अपनी एक ग़ज़ल में कहा था:
या मुझे अफ़सरे-शाहाना बनाया होताया मेरा ताज गदायाना बनाया होताअपना दीवाना बनाया मुझे होता तूनेक्यों ख़िरदमंद बनाया न बनाया होता
यानी मुझे बहुत बड़ा हाकिम बनाया होता या फिर मुझे सूफ़ी बनाया होता, अपना दीवाना बनाया होता लेकिन बुद्धिजीवी न बनाया होता.
भारत के पहले स्वतंत्रता आंदोलन के 150 साल पूरे होने पर जहाँ बग़ावत के नारे और शहीदों के लहू की बात होती है वहीं दिल्ली के उजड़ने और एक तहज़ीब के ख़त्म होने की आहट भी सुनाई देती है.
ऐसे में एक शायराना मिज़ाज रखने वाले शायर के दिल पर क्या गुज़री होगी जिस का सब कुछ ख़त्म हो गया हो. बहादुर शाह ज़फ़र ने अपने मरने को जीते जी देखा और किसी ने उन्हीं की शैली में उनके लिए यह शेर लिखा:
न दबाया ज़ेरे-ज़मीं उन्हें, न दिया किसी ने कफ़न उन्हेंन हुआ नसीब वतन उन्हें, न कहीं निशाने-मज़ार है
अपनी बर्बादी के साथ-साथ बहादुर शाह ज़फ़र ने दिल्ली के उजड़ने को भी बयान किया है. पहले उनकी एक ग़ज़ल देखें जिसमें उन्होंने उर्दू शायरी के मिज़ाज में ढली हुई अपनी बर्बादी की दास्तान लिखी है:
न किसी की आँख का नूर हूँ, न किसी के दिल का क़रार हूँजो किसी के काम न आ सके, मैं वो एक मुश्ते ग़ुबार हूंमेरा रंग-रूप बिगड़ गया, मेरा यार मुझसे बिछड़ गयाजो चमन ख़िज़ां से उजड़ गया, मैं उसी की फ़स्ले-बहार हूंपए फ़ातिहा कोई आए क्यों, कोई चार फूल चढ़ाए क्योंकोई आके शमा जलाए क्यों, मैं वो बेकसी का मज़ार हूंमैं नहीं हूं नग़्म-ए-जांफ़ज़ा, मुझे सुन के कोई करेगा क्यामैं बड़े बिरोग की हूं सदा, मैं बड़े दुखी की पुकार हूं,
बहादुर शाह ज़फ़र ने अपनी एक और ग़ज़ल में अपने हालात को इस तरह पेश किया है:
पसे-मरग मेरे मज़ार पर जो दिया किसी ने जला दियाउसे आह दामने-बाद ने सरे-शाम ही से बुझा दियामुझे दफ़्न करना तू जिस घड़ी, तो ये उससे कहना कि ऐ परीवो जो तेरा आशिक़े-ज़ार था, तहे-ख़ाक उसके दबा दियादमे-ग़ुस्ल से मेरे पेशतर, उसे हमदमों ने ये सोच करकहीं जावे उसका न दिल दहल, मेरी लाश पर से हटा दियामैंने दिला दिया मैंने जान दी, मगर आह तूने न क़द्र कीकिसी बात को जो कभी कहा, उसे चुटकियों से उड़ा दिया
दिल्ली के हालात को दर्शाते हुए उनके कुछ शेर इस प्रकार हैं:
नहीं हाले-दिल्ली सुनाने के क़ाबिलये क़िस्सा है रोने रुलाने के क़ाबिलउजाड़े लुटेरों ने वो क़स्र उसकेजो थे देखने और दिखाने के क़ाबिलन घर है न दर है, रहा इक ज़फ़र हैफ़क़त हाले-देहली सुनाने के क़ाबिल
एक और ग़ज़ल में लिखते हैं:
न था शहर देहली, ये था चमन, कहो किस तरह का था यां अमनजो ख़िताब था वो मिटा दिया, फ़क़त अब तो उजड़ा दयार है
एक और ग़ज़ल में लिखते हैं:
क्या ख़िज़ां आई चमन में हर शजर जाता रहाचैन और मेरे जिगर का भी सबर जाता रहाक्या खुशी हर इक को थी, कर रहे थे सब दुआजब घुसी फ़ौजे नसारा हर असर जाता रहाक्यों न तड़पे वो हुमा अब दाम में सय्याद केबैठना दो दो पहर अब तख़्त पर जाता रहारहते थे इस शहर में शम्सो-क़मर हूरो-परीलूट कर उनको कोई लेकर किधर जाता रहाआगूं था ये शहर दिल्ली अब हुआ उजड़ा दयारक्यों ज़फ़र ये क्या हुआ यौवन किधर जाता रहा
सुफ़ियाना और देसी रंग में डूबी हुई उनकी मनोस्थिति और हालात को दिखलाती हुई एक ग़ज़ल है:
कौन नगर में आए हम कौन नगर में बासे हैंजाएंगे अब कौन नगर को मन में अब हरासे हैंदेस नया है भेस नया है, रंग नया है ढ़ंग नया हैकौन आनंद करे है वां और रहते कौन उदासे हैंक्या क्या पहलू देखे हमने गुलशन की फुलवारी मेंअब जो फूले उसमें फूल, कुछ और ही उसमें बासे हैंदुनिया है ये रैन बिसारा, बहुत गई रह गई थोड़ी सीउनसे कह दो सो नहीं जावें नींद में जो नंदासे हैं
दिल्ली से अपने विदा होने को बहादुर शाह ज़फ़र ने इन शब्दों में बांधा है:
जलाया यार ने ऐसा कि हम वतन से चलेबतौर शमा के रोते इस अंजुमन से चलेन बाग़बां ने इजाज़त दी सैर करने कीखुशी से आए थे रोते हुए चमन से चले
निर्वासन के दौरान बहादुर शाह ज़फ़र के हालात को दर्शाती उनकी इस मशहूर ग़ज़ल के बिना कोई बात पूरी नहीं होगी:
लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार मेंकिसकी बनी है आलमे-ना-पायदार मेंबुलबुल को बाग़बां से न सय्याद से गिलाक़िस्मत में क़ैद थी लिखी फ़स्ले-बहार मेंकहदो इन हसरतों से कहीं और जा बसेंइतनी जगह कहां है दिले दाग़दार मेंएक शाख़े-गुल पे बैठ के बुलबुल है शादमांकांटे बिछा दिए हैं दिले-लालज़ार मेंउम्रे-दराज़ मांग के लाए थे चार दिनदो आरज़ू में कट गए दो इंतिज़ार मेंदिन ज़िंदगी के ख़त्म हुए शाम हो गईफैला के पांव सोएंगे कुंजे मज़ार मेंकितना है बदनसीब ज़फ़र दफ़्न के लिएदो गज़ ज़मीं भी मिल न सकी कूए-यार में
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BBCHindi.com: "'न किसी की आँख का नूर हूँ...'"
बहादुर शाह ज़फ़र की शायरी में बुद्धिजीवी होने का जो ग़म मिलता है वह 1857 के विद्रोह और उसके बाद उन्हें निर्वासित करके रंगून भेजने के बाद और भी स्पष्ट तौर पर उनकी शायरी में नज़र आता है.
मुग़ल सल्तनत के आख़िरी ताजदार बहादुर शाह ज़फ़र ने अपनी एक ग़ज़ल में कहा था:
या मुझे अफ़सरे-शाहाना बनाया होताया मेरा ताज गदायाना बनाया होताअपना दीवाना बनाया मुझे होता तूनेक्यों ख़िरदमंद बनाया न बनाया होता
यानी मुझे बहुत बड़ा हाकिम बनाया होता या फिर मुझे सूफ़ी बनाया होता, अपना दीवाना बनाया होता लेकिन बुद्धिजीवी न बनाया होता.
भारत के पहले स्वतंत्रता आंदोलन के 150 साल पूरे होने पर जहाँ बग़ावत के नारे और शहीदों के लहू की बात होती है वहीं दिल्ली के उजड़ने और एक तहज़ीब के ख़त्म होने की आहट भी सुनाई देती है.
ऐसे में एक शायराना मिज़ाज रखने वाले शायर के दिल पर क्या गुज़री होगी जिस का सब कुछ ख़त्म हो गया हो. बहादुर शाह ज़फ़र ने अपने मरने को जीते जी देखा और किसी ने उन्हीं की शैली में उनके लिए यह शेर लिखा:
न दबाया ज़ेरे-ज़मीं उन्हें, न दिया किसी ने कफ़न उन्हेंन हुआ नसीब वतन उन्हें, न कहीं निशाने-मज़ार है
अपनी बर्बादी के साथ-साथ बहादुर शाह ज़फ़र ने दिल्ली के उजड़ने को भी बयान किया है. पहले उनकी एक ग़ज़ल देखें जिसमें उन्होंने उर्दू शायरी के मिज़ाज में ढली हुई अपनी बर्बादी की दास्तान लिखी है:
न किसी की आँख का नूर हूँ, न किसी के दिल का क़रार हूँजो किसी के काम न आ सके, मैं वो एक मुश्ते ग़ुबार हूंमेरा रंग-रूप बिगड़ गया, मेरा यार मुझसे बिछड़ गयाजो चमन ख़िज़ां से उजड़ गया, मैं उसी की फ़स्ले-बहार हूंपए फ़ातिहा कोई आए क्यों, कोई चार फूल चढ़ाए क्योंकोई आके शमा जलाए क्यों, मैं वो बेकसी का मज़ार हूंमैं नहीं हूं नग़्म-ए-जांफ़ज़ा, मुझे सुन के कोई करेगा क्यामैं बड़े बिरोग की हूं सदा, मैं बड़े दुखी की पुकार हूं,
बहादुर शाह ज़फ़र ने अपनी एक और ग़ज़ल में अपने हालात को इस तरह पेश किया है:
पसे-मरग मेरे मज़ार पर जो दिया किसी ने जला दियाउसे आह दामने-बाद ने सरे-शाम ही से बुझा दियामुझे दफ़्न करना तू जिस घड़ी, तो ये उससे कहना कि ऐ परीवो जो तेरा आशिक़े-ज़ार था, तहे-ख़ाक उसके दबा दियादमे-ग़ुस्ल से मेरे पेशतर, उसे हमदमों ने ये सोच करकहीं जावे उसका न दिल दहल, मेरी लाश पर से हटा दियामैंने दिला दिया मैंने जान दी, मगर आह तूने न क़द्र कीकिसी बात को जो कभी कहा, उसे चुटकियों से उड़ा दिया
दिल्ली के हालात को दर्शाते हुए उनके कुछ शेर इस प्रकार हैं:
नहीं हाले-दिल्ली सुनाने के क़ाबिलये क़िस्सा है रोने रुलाने के क़ाबिलउजाड़े लुटेरों ने वो क़स्र उसकेजो थे देखने और दिखाने के क़ाबिलन घर है न दर है, रहा इक ज़फ़र हैफ़क़त हाले-देहली सुनाने के क़ाबिल
एक और ग़ज़ल में लिखते हैं:
न था शहर देहली, ये था चमन, कहो किस तरह का था यां अमनजो ख़िताब था वो मिटा दिया, फ़क़त अब तो उजड़ा दयार है
एक और ग़ज़ल में लिखते हैं:
क्या ख़िज़ां आई चमन में हर शजर जाता रहाचैन और मेरे जिगर का भी सबर जाता रहाक्या खुशी हर इक को थी, कर रहे थे सब दुआजब घुसी फ़ौजे नसारा हर असर जाता रहाक्यों न तड़पे वो हुमा अब दाम में सय्याद केबैठना दो दो पहर अब तख़्त पर जाता रहारहते थे इस शहर में शम्सो-क़मर हूरो-परीलूट कर उनको कोई लेकर किधर जाता रहाआगूं था ये शहर दिल्ली अब हुआ उजड़ा दयारक्यों ज़फ़र ये क्या हुआ यौवन किधर जाता रहा
सुफ़ियाना और देसी रंग में डूबी हुई उनकी मनोस्थिति और हालात को दिखलाती हुई एक ग़ज़ल है:
कौन नगर में आए हम कौन नगर में बासे हैंजाएंगे अब कौन नगर को मन में अब हरासे हैंदेस नया है भेस नया है, रंग नया है ढ़ंग नया हैकौन आनंद करे है वां और रहते कौन उदासे हैंक्या क्या पहलू देखे हमने गुलशन की फुलवारी मेंअब जो फूले उसमें फूल, कुछ और ही उसमें बासे हैंदुनिया है ये रैन बिसारा, बहुत गई रह गई थोड़ी सीउनसे कह दो सो नहीं जावें नींद में जो नंदासे हैं
दिल्ली से अपने विदा होने को बहादुर शाह ज़फ़र ने इन शब्दों में बांधा है:
जलाया यार ने ऐसा कि हम वतन से चलेबतौर शमा के रोते इस अंजुमन से चलेन बाग़बां ने इजाज़त दी सैर करने कीखुशी से आए थे रोते हुए चमन से चले
निर्वासन के दौरान बहादुर शाह ज़फ़र के हालात को दर्शाती उनकी इस मशहूर ग़ज़ल के बिना कोई बात पूरी नहीं होगी:
लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार मेंकिसकी बनी है आलमे-ना-पायदार मेंबुलबुल को बाग़बां से न सय्याद से गिलाक़िस्मत में क़ैद थी लिखी फ़स्ले-बहार मेंकहदो इन हसरतों से कहीं और जा बसेंइतनी जगह कहां है दिले दाग़दार मेंएक शाख़े-गुल पे बैठ के बुलबुल है शादमांकांटे बिछा दिए हैं दिले-लालज़ार मेंउम्रे-दराज़ मांग के लाए थे चार दिनदो आरज़ू में कट गए दो इंतिज़ार मेंदिन ज़िंदगी के ख़त्म हुए शाम हो गईफैला के पांव सोएंगे कुंजे मज़ार मेंकितना है बदनसीब ज़फ़र दफ़्न के लिएदो गज़ ज़मीं भी मिल न सकी कूए-यार में
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Monday, May 14, 2007
BBCHindi.com: "एक मुलाक़ात: लालू प्रसाद के साथ"
BBCHindi.com: "एक मुलाक़ात: लालू प्रसाद के साथ"
एक मुलाक़ात: लालू प्रसाद के साथ
संजीव श्रीवास्तवभारत संपादक, बीबीसी हिंदी सेवा
लालू कहते हैं कि गाँव से जैसे संस्कार मिले वे उसी तरह बात करते हैं
बीबीसी हिंदी सेवा के विशेष कार्यक्रम 'एक मुलाक़ात' में हम भारत के जाने-माने लोगों की ज़िंदगी के अनछुए पहलुओं से आपको अवगत कराते हैं.
इसी श्रृंखला में हम इस बार आपकी मुलाक़ात करवा रहे हैं बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव से. लालू प्रसाद देश के एक ऐसे करिश्माई नेता हैं जिनके बारे में शायद सबसे ज़्यादा लिखा और सुना जाता है. जो बॉलीवुड में भी उतने ही लोकप्रिय हैं जितने कि पाकिस्तान में.
पेश हैं इस मुलाक़ात के कुछ ख़ास अंश..
सबसे पहले ये बताएं इतनी ज़बर्दस्त लोकप्रियता और अलग-अलग वर्गों में अलग-अलग किस्म की छवि. ये महारत आपने कैसे हासिल की?
देखिए छवि बनाने से नहीं बनती है. देश ही नहीं परदेस में भी लोग मुझे अलग-अलग तरह से देखते हैं. कोई मुझे मजाकिया बोलता है, कोई जोकर बोलता है, कोई ग़रीबों का मसीहा कहता है. लोगों का अपना-अपना नज़रिया है. हाँ मैं खुद को आम लोगों से दूर नहीं रखता. पेट के अंदर जो बात है, जो सच्चाई है, उन बातों को लोगों को बता देता हूँ. इसमें किसी तरह की कोई योजना या बनावटीपन नहीं है.
लेकिन क्या ऐसा नहीं है कि जैसा कि आप सीधे-सादे और बहुत मज़ाकिया दिखते हैं, असल में वैसे हैं नहीं, बल्कि बहुत पारंगत, तेज़ दिमाग, बेहद होशियार और सब समझने वाले हैं. तो इन दोनो में से असली लालू कौन है?
भारत गाँवों का देश है. मेरा जन्म भी गाँव में हुआ और परवरिश भी वहीं हुई. वहाँ से जो संस्कार मिले. उसी के अनुरूप बात करता हूँ.
ख़ासकर जो लोग अनपढ़ हैं उनकी पीड़ा और दर्द अलग होती है. उनका बोलने का, हँसने का अलग तौर तरीक़ा होता है क्योंकि मैं भी उनके बीच से ही आया हूँ इसलिए मैं नकली नहीं बल्कि दोटूक बात करता हूँ. लोगों से बतियाने का ये अंदाज़ मुझे विरासत में मिला है.
लेकिन उदाहरण तो आपने ऐसे दिए थे कि मैं बिहार की सड़कों को हेमामालिनी के गालों जैसा चिकना बना दूँगा?
लखनऊ में चुनाव के दौरान अटलजी ने आनंद लेने के लिए कहा था कि लालू ऐसा बोलता है. किसी को अग़र कोई हल्की बात कहनी है और मजाक उड़ानी है तो लोग वो बात हमारे मुँह में डाल देते हैं.
लालू यादव
ना-ना-ना...देखिए ये बात मेरे मुँह में डाल कर मेरी छवि को नुकसान पहुँचाने के लिए छापी गई थी. लखनऊ में चुनाव के दौरान अटलजी ने आनंद लेने के लिए कहा था कि लालू ऐसा बोलता है. किसी को अग़र कोई हल्की बात कहनी है और मजाक उड़ानी है तो लोग वो बात हमारे मुँह में डाल देते हैं.
जब चश्मा लगाना पड़ा..
आपके ख़िलाफ़ घोटाले के इतने आरोप लगे. आप जेल भी गए, इतने साल ये किस्सा कहानी चला. ये सारा समय कैसे बीता?
देखिए पूरा शरीर जलता रहा. आँख में चश्मा लगाना पड़ा, बहुत पीड़ा हुई. हमारे ग्रह-नक्षत्र या किस्मत में विवाद ही विवाद हैं. हमेशा किसी न किसी विवाद में हमें घसीटा जाता है. कभी मुक़दमे होते हैं और कभी कुछ. जहाँ हमारा नाम आता है विवाद खड़ा हो जाता है. लोग बोलते थे कि 900 करोड़ रुपए का चारा घोटाला हुआ है. सीबीआई ने हम पर भी 40 लाख रुपए के घोटाले का आरोप लगाया था, लेकिन हमें कोर्ट पर पूरी आस्था है और जो फ़ैसला हुआ वो सबके सामने है.
मेरा सवाल असल में ये था कि उन दिनों आपको क्या लगता था यानी आपकी मानसिक हालत क्या थी?
देखिए, सच्चाई, ईमानदारी, नियम-क़ायदे सब हमारे पक्ष में थे. कोर्ट पर हमें पूरी आस्था थी. आरोप लगाने या मीडिया ट्रायल से कुछ नहीं होता. सच्चाई क्या है ये देखना न्यायपालिका का काम है. राजनीति में जो विरोधी हमें ख़त्म होते देखना चाहते थे, वे निराश हुए. इससे मेरा विश्वास सही साबित हुआ है कि भगवान है और इस देश में न्यायपालिका जीवित है.
मीडिया पर आपको विश्वास नहीं है?
ये सही है कि मीडिया हमको खूब कवरेज़ देता है. लेकिन अधिकांश ख़राब कवरेज़ देता है. लेकिन मीडिया में भी सब ख़राब लोग नहीं है. अच्छे-भले लोग भी हैं. मीडिया में भी जात-पाँत है. कई और भी समीकरण हैं. लोग अपना-अपना नज़रिया पेश करते रहते हैं. मीडिया को न्यूज़ देना चाहिए. व्यूज़ नहीं देना चाहिए.
आज मीडिया पर हर चीज का ट्रायल शुरू हो गया है. देश में इतना मीडिया हो गया है कि हालत ये हो गई है कि अब जब कोई न्यूज़ ही नहीं बचती है तो मीडिया ने खोजी पत्रकारिता शुरू कर दी है. बहुत सी बातों को मीडिया को नहीं दिखाना चाहिए जिससे समाज पर बुरा असर पड़ता है.
अब एक दिन मैं देख रहा था कि सेक्स पर एक कार्यक्रम दिखाया जा रहा था. बच्चे भी टेलीविज़न देखते हैं. ये सब ठीक नहीं है.
ये जो ब्यूरोक्रेसी है और जो लोग शीर्ष कुर्सियों पर जमे हुए हैं. उनके काम पर ज़बर्दस्त निगरानी रखी जानी चाहिए. देहात में हम कहते हैं कि ‘लिखतंग के सामने बकतंग काम नहीं करता’.
इस पूरे दौर में जो व्यक्तिगत यातना आपने सही. इससे कोई सबक मिला क्या?
ठीक है. बुरे दौर में इंसान की पहचान होती है कि कौन अच्छा आदमी है और कौन ख़राब. पश्चाताप तो तब होगा न अग़र हमने गलती की होती. जितनी बातें इस दौरान कही गईं अग़र मेरी जगह कोई दूसरा नेता होता तो वो टिकता नहीं, दिल का दौरा पड़ने से मर चुका होता.
आपका भी ब्लड प्रेशर तो बढ़ ही गया होगा?
नहीं ब्लड प्रेशर तो नॉर्मल ही रहा, लेकिन तनाव तो रहा ही. आप सार्वजनिक जीवन में हैं तो ये चिंता तो रहती ही है कि जब ये आरोप लगाया जा रहा है कि लालू 900 करोड़ का चारा खा गया तो लोग क्या सोचेंगे.
तो आपके लिए पूरे प्रकरण की सीख क्या रही?
ये जो ब्यूरोक्रेसी है और जो लोग शीर्ष कुर्सियों पर जमे हुए हैं. उनके काम पर ज़बर्दस्त निगरानी रखी जानी चाहिए. देहात में हम कहते हैं कि ‘लिखतंग के सामने बकतंग काम नहीं करता’. चारा घोटाला मामले में क्या हुआ. पशुपालन विभाग में सब कुछ फाइलों में दर्ज था और जब इसे न्यायपालिका के सामने लाया गया तो सब साफ हो गया.
नया अंदाज़
अच्छा ये बताएँ कि गाँव के लालू, इसके बाद छात्र संघ के अध्यक्ष, फिर मुख्यमंत्री, रेल मंत्री और अब पिछले कुछ महीनों से जो आपने मैनेजमेंट गुरु की नई टोपी पहनी है. कभी घर में बैठे रहते हैं तो हँसी आती है क्या?
नहीं. हँसी नहीं आती है. बात ये है कि भारतीय रेलवे जो लाभांश भी देने की स्थिति में नहीं था. यहाँ तक कि डॉ राकेश मोहन की विशेषज्ञ समिति ने भी कह दिया था कि अगले 25 साल में इसे निजी क्षेत्र में दे दिया जाना चाहिए.
भारतीय रेलवे का नेटवर्क बहुत बड़ा है. 16 लाख लोगों को रोज़गार हासिल है और हर दिन 11 हज़ार यात्री गाड़ी चलाते हैं और करोड़ो यात्रियों को उनकी मंजिल तक पहुँचाते हैं. इसके बावजूद ये घाटे का सौदा था.
मेरा मानना था कि भारतीय रेल तो जर्सी गाय और कमाऊ घोड़ा है. हमने कहा कि छंटनी नहीं की जाएगी. लदान क्षमता को बढ़ाने और ईमानदारी से प्रयास करने से हम भाड़ा बढ़ाए बग़ैर रेलवे को 13 हज़ार करोड़ रुपए के फ़ायदे में ले आए हैं.
माफ़ कीजिएगा. आपके आलोचकों का कहना है कि पहले 25 साल लालू ने खुद को बेवकूफ दिखाते हुए लोगों को बेवकूफ बनाया और अगले 25 साल की योजना अक्लमंद बनकर देश को बेवकूफ बनाने की है?
ऐसे नादान लोगों को मैं चुनौती देता हूँ कि बताएँ कि मैने कैसे लोगों को बेवकूफ बनाया. ये तो खुली किताब है, दस्तावेज है. अब हार्वर्ड, आईआईएम अहमदाबाद और तमाम जगहों से लोग ये जानने के लिए आ रहे हैं कि चमत्कार कैसे हो गया. दुनिया भर में जब भी कभी सुधारों की बात आती है तो घाटे से उबरने के लिए छंटनी की प्रक्रिया अपनाई जाती है. लेकिन बिना छेड़छाड़ किए हमने घाटे के सौदे को फायदे में लाकर दिखाया.
जब छात्र और प्रोफेसर आदि आपके पास आते हैं और इस चमत्कार के पीछे का रहस्य पूछते हैं तो आप उन्हें क्या बताते हैं?
गुर यही है कि ईमानदारी और निष्ठा से हमने अपने नज़रिए को ठीक किया और तमाम कद़म उठाते हुए खामियों को दूर किया. विश्वास कीजिए अभी तो और बड़ी कहानी आगे लिखी जाने वाली है.
सठा तो पठ्ठा
बिहार से आज तक कोई प्रधानमंत्री नहीं बना?
नहीं बना तो क्या. एक बार मैने कह दिया था कि एक दिन हम प्रधानमंत्री बनेंगे तो यूपीए में झंझट हो गया. अब हमने इसे फिलहाल स्थगित कर दिया है. कम से कम दो कार्यकाल तक प्रधानमंत्री बनना हमारे एजेंडे में नहीं है.
दुनिया भर में जब भी कभी सुधारों की बात आती है तो घाटे से उबरने के लिए छंटनी की प्रक्रिया अपनाई जाती है. लेकिन बिना छेड़छाड़ किए हमने घाटे के सौदे को फायदे में लाकर दिखाया.
वैसे भी मैं अपने आपको अभी युवा मानता हूँ. खासकर यादव समुदाय में तो कहा भी जाता है ‘सठा तो पट्ठा’. अभी तो मैं साठ साल का हुआ हूँ इसलिए युवा हूँ.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह नेक इंसान हैं. हमारी सरकार अगले पाँच साल भी चलेगी. हम सब इसे मिलकर चलाएँगे.
मैने आपकी कई जनसभाएं देखी हैं, आप इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन लेकर जब लोगों के बीच जाते थे तो उन्हें ये भी बताते हैं कि फलाँ बटन दबाने से ऐसी आवाज आएगी ?
मैं लोगों को बताता था कि वोटिंग मशीन में लालटेन यहाँ पर है और ठीक इसके ऊपर हारमोनियम जैसा बटन है. इसे दबाना है, लेकिन कचकचा कर इसे मत दबा देना, नहीं तो मशीन ही टूट जाएगी. बटन दबाने पर अगर ‘पीं’ जैसी आवाज आई तो समझो वोट सही पड़ा है. अगर आवाज नहीं आई तो समझो ‘दाल में काला’ है.
हमने ये तो माना कि आप लोगों तक अपनी बात पहुँचाने में माहिर हैं, लेकिन आपकी नज़र में करिश्माई और लोकप्रिय नेता और कौन है ?
और लोग भी हैं. लेकिन कई लोग हैं जो भाषण देते हैं तो उन्हें पता ही नहीं होता कि वे लोगों से क्या कह रहे हैं. लोग भी उनकी बातों को नहीं समझ पाते. लोगों के मन और मिज़ाज की समझ ज़रूरी है. मैं ये नहीं कहता कि मैं ही अकेला अच्छा वक्ता हूँ. बहुत सारे अच्छे नेता हैं. सोनियाजी भी हैं, अंग्रेजी परिवेश के बावजूद वह हिंदी में बहुत अच्छा भाषण देती हैं.
आपका पसंदीदा गाना?
मैं खुद को आजकल की फ़िल्मों से बहुत दूर रखता हूँ. पटना के हॉल में एक ही फ़िल्म देखी थी. दिलीप कुमार और वैजयंती माला अभिनीत फ़िल्म गंगा-जमुना और वो भी चार आने में. देश की सर्वश्रेष्ठ गायिका लता मंगेशकर और आशा भोसले के गाने भी मुझे बहुत पसंद है.
मैं खुद को आजकल की फ़िल्मों से बहुत दूर रखता हूँ. पटना के हॉल में एक ही फ़िल्म देखी थी. दिलीप कुमार और वैजयंती माला अभिनीत फ़िल्म गंगा-जमुना और वो भी चार आने में.
इसके अलावा ‘मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती’ और ‘जाने वालों जरा मुड़के देखो मुझे मैं भी इंसान हूँ’ भी मुझे पसंद है.
मुझे ‘मकाया रे तोर गुना गौलो न जाला’ जैसे लोकगीत भी बहुत पसंद हैं.
बॉलीवुड में लालू
आपने कहा कि आप टेलीविज़न या फ़िल्मों से दूर रहना चाहते हैं, लेकिन बॉलीवुड में तो आपके कई फैन हैं. महेश भट्ट कहते हैं कि मेरे आदर्श लालू हैं और शेखर सुमन ने तो आपकी नकल कर अपना कैरियर बना लिया?
शेखर सुमन हों या कोई और. हम देखते हैं कि बहुत से लोग मेरे बोलने के अंदाज़ की नकल करने की कोशिश करते हैं.
आपको कैसा लगता है. एक पूरी की पूरी जमात आपकी नकल करने की कोशिश कर रही है और लाखों करोड़ों कमा रही है. आपको रायल्टी की माँग करनी चाहिए ?
हमारी शुभकामनाएं उनके साथ हैं. नकल के लिए हमने किसी पर मुक़दमा नहीं किया. हमें रायल्टी भी नहीं चाहिए. हमारा नाम लेकर ये लोग जिए-खाएँ. देश के लोग इसे पसंद करते हैं. ठीक है लोग हमारा प्रचार करें. हालाँकि कुछ लोग गलत प्रचार भी करते हैं.
अच्छा लालूजी थोड़ा फ्लैशबैक में जाते हैं. आपका बचपन गाँव में ग़रीबी में बीता, फिर यूनीवर्सिटी आए और जयप्रकाश नारायण से जुड़े. कभी सोचा था आप इतने बड़े नेता बनेंगे?
हमारी शुभकामनाएं उनके साथ हैं. नकल के लिए हमने किसी पर मुक़दमा नहीं किया. हमें रायल्टी भी नहीं चाहिए. हमारा नाम लेकर ये लोग जिए-खाएँ
नहीं. कभी नहीं सोचा था. जो हक़ीकत है मैं आपको वो बता रहा हूँ. गाँव में हम छह भाई और दो बहनें थी. पिताजी मामूली किसान थे. गाय और बकरी चराने के लिए हम पिताजी के पीछे-पीछे जाते थे. हमने हर उस चीज का अनुभव किया है जो गाँव में किसान और मजदूर के बेटे को होते हैं.
जाड़े के दिनों में गन्ने के पत्तों को जलाकर आग तापते थे. तो कभी नहीं सोचा था कि फुलवरिया जैसे छोटे से गाँव में मिट्टी के कच्चे घर में पल-बढ़कर और सामंतवादी सोच के लोगों के बीच से उठकर मैं बिहार का मुख्यमंत्री बन जाऊँगा.
ये तो लोकतंत्र का कमाल है. हमारे नेता लोहियाजी कहा करते थे कि वोट का राज होगा तो छोड़ का राज होगा. अग़र वोट का राज नहीं होता तो हम तो आज भी गाय, भैंस, बकरी ही चरा रहे होते.
कोई सोच के कुछ नहीं बनता. बहुत से लोग सोचते हैं कि ये बनेंगे, वो बनेंगे. सो किसी ने कभी नहीं सोचा था और हम भी बन गए और राबड़ी देवी भी बन गईं.
स्टूडेंट्स यूनियन से लेकर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक का सफ़र. जयप्रकाश के आंदोलन में भी आप जुड़े रहे, लेकिन क्या आप तब भी ऐसे ही चुटीली बातें किया करते थे या दबे-दबे रहते थे?
मैंने हमेशा बेबाकी से बात की है. इच्छाशक्ति शुरू से ही बहुत मजबूत थी. आंदोलन के दिनों में छात्र-छात्राओं के बीच अपनी बातों को रखना. मीसा में मैं एक साल तक बंद रहा. छपरा से सांसद का चुनाव लड़ने के लिए हथकड़ी पहन कर गया था. इसलिए मैं मानता हूँ कि शुरुआती दिनों में गाँव से पटना आने और फिर मुख्यमंत्री और आज रेलमंत्री के रूप में मुझमें कोई बुनियादी फर्क नहीं आया है. मैं आज भी पहले की तरह अपनी बातों को जनता के सामने रखता हूँ.
मैं मानता हूँ कि शुरुआती दिनों में गाँव से पटना आने और फिर मुख्यमंत्री और आज रेलमंत्री के रूप में मुझमें कोई बुनियादी फर्क नहीं आया है.
परिवार नियोजन पर लालू
लालूजी आपके गाँव के बचपन के दिन और सब कुछ बदल गया, सिवाय एक बात के. आप छह भाई और दो बहन थे और आपके भी नौ बच्चे हैं. आपने ये भी बदलने की क्यों नहीं सोची कि परिवार छोटा रहे?
पहले के जमाने में जहाँ ज़्यादा भाई-बहन होते थे, उसे भाग्यशाली परिवार समझा जाता था. अब परिवार नियोजन की चर्चा ज़्यादा जोरों पर है. देश की जनसंख्या बढ़ रही है और लोगों की चिंता बढ़ी है कि परिवार छोटा होना चाहिए.
आप अपने बच्चों से कहते हैं कि उनका परिवार छोटा होना चाहिए?
बच्चे खुद-ब-खुद तय करेंगे. वैसे किस बच्चे में प्रतिभा निकल जाए, इसका कोई ठिकाना है. आजकल देखते हैं जिनका एक बेटा होता है और वह दुर्भाग्य से किसी दुर्घटना में मारा गया तो पूरा का पूरा परिवार तबाह हो जाता है. और क्या फर्क पड़ गया. जब जनसंख्या कम थी, तब लोगों को खाना नहीं मिलता था. दाल-चावल, सब्जी नहीं मिलती थी, लेकिन आज जनसंख्या बढ़ने के बावजूद खाने-पीने की कितनी किस्में हो गई हैं.
आपने हेमामालिनी के गालों वाली बात को झूठा कह दिया था, लेकिन एक और नारा था ‘जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक रहेगा बिहार में लालू’. ये नारा तो ठीक था?
ये नारे हमने नहीं दिए थे. हमारे समर्थकों अथवा शुभचिंतकों ने ये नारा दिया था.
जब पटना यूनीवर्सिटी में पढ़ते थे तब तक राबड़ी देवी से शादी हो चुकी थी?
1973 में हमारी शादी और 1974 में गौना हुआ. जब गौना कराकर आए तो आंदोलन के दौरान असेंबली के गेट पर पुलिस ने पिटाई कर दी और फिर जेल भेज दिया. इसके बाद लोगों ने राबड़ी देवी को कोसना शुरू कर दिया और कहा कि ये कुलक्षणी महिला है. घर आई तो बबुआ चला गया जेल.
तब मैने राबड़ी देवी से कहा कि यहाँ से निकलने के बाद तो अब सरकार ही बनानी है.
इश्क
राबड़ी देवी से पहला इश्क था या पहले भी किसी को दिल दिया था?
हम दिल देने वाले आदमी नहीं है. ये सब काम हमने कभी नहीं किए. राबड़ी देवी से जब मेरी सगाई की बात हुई तो मैने तो उन्हें देखा भी नहीं था. आजकल तो लड़की देखने के लिए पूरा परिवार जुटता है. फोटो मँगाए जाते हैं. लड़का-लड़की मिलते हैं. सवाल-जवाब होते हैं.
हमने तो सिंदूरदान भी किया तो पता नहीं था कि सिंदूर कहाँ भर रहे हैं. यही तो हमारी संस्कृति थी. फिर हमसे क्यों कोई प्यार करता. हम गाँव-गँवई थे. फ़कीर के घर पैदा हुए थे.
पर अब तो हम पुरानी पीढ़ी के देहाती हो गए हैं. अब तो इंटरनेट आ गया है. एसएमएस हो गया है. सच कहूँ तो मुझे तो आज भी एसएमएस करना नहीं आता. बल्कि अगर मोबाइल पर फोन आ गया तो सुन तो लेता हूँ, लेकिन इसे ऑफ़ करना मुझे नहीं आता.
हमने तो सिंदूरदान भी किया तो पता नहीं था कि सिंदूर कहाँ भर रहे हैं. यही तो हमारी संस्कृति थी. फिर हमसे क्यों कोई प्यार करता. हम गाँव-गँवई थे. फ़कीर के घर पैदा हुए थे.
राबड़ी देवी आपका और बच्चों का बहुत ख्याल रखती हैं. मुख्यमंत्री रहने के बाद भी उन्होंने गृहणी की भूमिका को नहीं छोड़ा. आप क्या मानते हैं?
वाकई ये मेरे राजनीतिक कैरियर के लिए बहुत अच्छा रहा कि ग्रामीण पृष्ठभूमि से आई राबड़ी देवी से मेरी शादी हुई. आजकल तो महिलाएं अपने पति को मिनट-मिनट में फोन करतीं हैं कि कहाँ हो, क्या कर रहे हो.
तो आपको राबड़ी देवी ने पूरी छूट दे रखी है कि कहीं भी जाइए या कभी भी आइए?
नहीं. राबड़ी देवी हमको जानती है कि ये गड़बड़ आदमी नहीं है. न उनको मोबाइल से फोन करना आता है और न हमको.
अब आदमी अपना काम-धंधा रोज़गार करेगा कि मोबाइल पर मिनट-मिनट का हिसाब देता रहेगा. ये फालतू का काम है.
कभी आपको ये भी लगा कि राबड़ी देवी आपसे अधिक लोकप्रिय हो रही हैं?
अगर राबड़ी देवी लोकप्रिय हो रही हैं तब भी मेरा ही नाम तो हो रहा है. मैं उनसे ईर्ष्या नहीं करता. वो कभी बाज़ार नहीं जातीं. न ही कोई डिमांड करती हैं. हम 500 रूपए की साड़ी को दस हज़ार का बताते हैं तो बहुत खुश होती हैं.
कभी साथ में फ़िल्म देखी है?
नहीं कभी नहीं. वो साथ में फ़िल्म देखने जाती ही नहीं हैं. टेलीविज़न पर ही फ़िल्म देखती हैं और टीवी देखते-देखते सो जाती हैं. वैसे भी आजकल जैसी फ़िल्में बनाई जा रही हैं वो परिवार के साथ बैठकर नहीं देखी जा सकती.
शाकाहारी जीवन
सुनते हैं कि आपको खाना बनाने का शौक है. शाम को रसोई में बैठते हैं और तरकारी छीलते हैं और कई मंत्रियों से भी तरकारी छिलवाते हैं?
नहीं मंत्री लोगों से तरकारी नहीं छिलवाते. हम विशुद्ध शाकाहारी हो गए हैं. पहले तरह-तरह से मछली, मटन और चिकन बनाते थे. फिर एक दिन स्वप्न में भगवान शिव ने मांसाहार छोड़ने के लिए कहा. मैने उनकी मूर्ति के आगे कान पकड़कर कसम खाई कि मांसाहार नहीं खाऊँगा.
सच में सपना आया था आपको? कब?
सचमुच में. करीब चार साल पहले सपना आया था. जब मैं जेल में था तो मैने पूजा-पाठ छोड़ दिया था. हालाँकि स्वाद पर कंट्रोल करना आसान काम नहीं है. लेकिन मैने नियंत्रण किया और अब चोखा, चावल, दाल, भिंडी आदि शाकाहारी भोजन खाता है.
कभी तो मन करता होगा कि कुछ कवाब आदि?
नहीं. जब भगवान शिव के आगे शपथ ले ली है तो कभी इच्छा नहीं होती. जब छोड़ दिया तो छोड़ दिया.
घर में और किसी को तो नहीं छुड़वाया?
नहीं. बच्चे खाते हैं. हाँ, एक बेटे ने छोड़ दिया है.
किसने? जो क्रिकेटर है?
नहीं क्रिकेटर तो तेजस्वी है. वो अंडर-19 में दिल्ली का कप्तान है अभी विशाखापत्तनम में है और फिर मुंबई जा रहा है. वह राजनीति में नहीं आएगा. वो तो क्रिकेट के प्रति पूरी तरह समर्पित है.
अभी आपकी पसंदीदा अभिनेता-अभिनेत्री कौन हैं?
शाहरुख़ ख़ान और एक वो लड़की जिसकी शादी होने वाली है....ऐश्वर्या राय.पुराने लोगों में अमिताभ बच्चन भी पसंद हैं.
शाहरुख की कोई फ़िल्म देखी है क्या ?
नहीं फ़िल्म नहीं. टीवी स्क्रीन पर नाच-गाना और फ़िल्म आती रहती है तो देख लेता हूँ.
एक दिन स्वप्न में भगवान शिव ने मांसाहार छोड़ने के लिए कहा. मैने उनकी मूर्ति के आगे कान पकड़कर कसम खाई कि मांसाहार नहीं खाऊँगा.
आप पर तो एक फ़िल्म भी बन गई पद्मश्री लालू प्रसाद यादव ?
हाँ, इस फ़िल्म को देखा ही नहीं, उसमें तो हमने आखिरी सीन भी किया है. फ़िल्म ठीक ही लगी.
फ़िल्मों में काम करेंगे ?
नहीं. कभी नहीं. सवाल ही नहीं होता. फ़िल्म वाले तो खुद राजनीति में आ रहे हैं. सब राजनीति में आना चाहते हैं तो फिर मैं क्यों.
अच्छा एक बात और सुनी थी कि दस साल पहले आप विदेश गए थे और इसके बाद सरकार चली गई. उसके बाद आप कई साल विदेश नहीं गए. लेकिन अभी आप हाल ही में फिर विदेश गए थे ?
वो तो मैं अमरीका गया था. वहाँ मैने भाषण दिया था कि जो अमरीका आता है. वह स्वदेश लौटने पर भूतपूर्व हो जाता है. इस बार हम अमरीका नहीं गए थे और यूरोपीय देशों के दौरे पर था.
अगर इस बार भी मैं अमरीका जाता तो फिर भूतपूर्व हो जाता. यूरोप के बारे में ऐसा नहीं है.
लोग आपके व्यक्तित्व में जो रंगीनी देखते हैं, उसका क्या राज है ?
अब लोकलाइज़ेशन गया. ग्लोबलाइज़ेशन के दौर में दुनिया गाँव के रूप में तब्दील हो गई है. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, इंटरनेट और एक से बढ़कर एक तकनीकी से दुनिया सिमट गई है. हर आदमी एक-दूसरे को देख रहा है. कहाँ क्या हो रहा है. कौन व्यक्ति क्या कर रहा है.
जब हम पाकिस्तान गए तो पता चला कि इंटरनेट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के ज़रिए वहाँ लोग मुझे पहले से ही जानते हैं. वो लोग चर्चा कर रहे थे कि किस तरह लालू प्रसाद और राबड़ी देवी ग़रीबी और अभाव के परिवेश से निकलकर सत्ता के शीर्ष पर पहुँचे.
('एक मुलाक़ात' कार्यक्रम बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के अलावा, बीबीसी हिंदी – मीडियम वेव 212 मीटर बैंड पर और शॉर्टवेव 19, 25, 41 और 49 मीटर बैंड पर - रविवार भारतीय समयानुसार रात आठ बजे प्रसारित होता है.)
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एक मुलाक़ात: लालू प्रसाद के साथ
संजीव श्रीवास्तवभारत संपादक, बीबीसी हिंदी सेवा
लालू कहते हैं कि गाँव से जैसे संस्कार मिले वे उसी तरह बात करते हैं
बीबीसी हिंदी सेवा के विशेष कार्यक्रम 'एक मुलाक़ात' में हम भारत के जाने-माने लोगों की ज़िंदगी के अनछुए पहलुओं से आपको अवगत कराते हैं.
इसी श्रृंखला में हम इस बार आपकी मुलाक़ात करवा रहे हैं बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव से. लालू प्रसाद देश के एक ऐसे करिश्माई नेता हैं जिनके बारे में शायद सबसे ज़्यादा लिखा और सुना जाता है. जो बॉलीवुड में भी उतने ही लोकप्रिय हैं जितने कि पाकिस्तान में.
पेश हैं इस मुलाक़ात के कुछ ख़ास अंश..
सबसे पहले ये बताएं इतनी ज़बर्दस्त लोकप्रियता और अलग-अलग वर्गों में अलग-अलग किस्म की छवि. ये महारत आपने कैसे हासिल की?
देखिए छवि बनाने से नहीं बनती है. देश ही नहीं परदेस में भी लोग मुझे अलग-अलग तरह से देखते हैं. कोई मुझे मजाकिया बोलता है, कोई जोकर बोलता है, कोई ग़रीबों का मसीहा कहता है. लोगों का अपना-अपना नज़रिया है. हाँ मैं खुद को आम लोगों से दूर नहीं रखता. पेट के अंदर जो बात है, जो सच्चाई है, उन बातों को लोगों को बता देता हूँ. इसमें किसी तरह की कोई योजना या बनावटीपन नहीं है.
लेकिन क्या ऐसा नहीं है कि जैसा कि आप सीधे-सादे और बहुत मज़ाकिया दिखते हैं, असल में वैसे हैं नहीं, बल्कि बहुत पारंगत, तेज़ दिमाग, बेहद होशियार और सब समझने वाले हैं. तो इन दोनो में से असली लालू कौन है?
भारत गाँवों का देश है. मेरा जन्म भी गाँव में हुआ और परवरिश भी वहीं हुई. वहाँ से जो संस्कार मिले. उसी के अनुरूप बात करता हूँ.
ख़ासकर जो लोग अनपढ़ हैं उनकी पीड़ा और दर्द अलग होती है. उनका बोलने का, हँसने का अलग तौर तरीक़ा होता है क्योंकि मैं भी उनके बीच से ही आया हूँ इसलिए मैं नकली नहीं बल्कि दोटूक बात करता हूँ. लोगों से बतियाने का ये अंदाज़ मुझे विरासत में मिला है.
लेकिन उदाहरण तो आपने ऐसे दिए थे कि मैं बिहार की सड़कों को हेमामालिनी के गालों जैसा चिकना बना दूँगा?
लखनऊ में चुनाव के दौरान अटलजी ने आनंद लेने के लिए कहा था कि लालू ऐसा बोलता है. किसी को अग़र कोई हल्की बात कहनी है और मजाक उड़ानी है तो लोग वो बात हमारे मुँह में डाल देते हैं.
लालू यादव
ना-ना-ना...देखिए ये बात मेरे मुँह में डाल कर मेरी छवि को नुकसान पहुँचाने के लिए छापी गई थी. लखनऊ में चुनाव के दौरान अटलजी ने आनंद लेने के लिए कहा था कि लालू ऐसा बोलता है. किसी को अग़र कोई हल्की बात कहनी है और मजाक उड़ानी है तो लोग वो बात हमारे मुँह में डाल देते हैं.
जब चश्मा लगाना पड़ा..
आपके ख़िलाफ़ घोटाले के इतने आरोप लगे. आप जेल भी गए, इतने साल ये किस्सा कहानी चला. ये सारा समय कैसे बीता?
देखिए पूरा शरीर जलता रहा. आँख में चश्मा लगाना पड़ा, बहुत पीड़ा हुई. हमारे ग्रह-नक्षत्र या किस्मत में विवाद ही विवाद हैं. हमेशा किसी न किसी विवाद में हमें घसीटा जाता है. कभी मुक़दमे होते हैं और कभी कुछ. जहाँ हमारा नाम आता है विवाद खड़ा हो जाता है. लोग बोलते थे कि 900 करोड़ रुपए का चारा घोटाला हुआ है. सीबीआई ने हम पर भी 40 लाख रुपए के घोटाले का आरोप लगाया था, लेकिन हमें कोर्ट पर पूरी आस्था है और जो फ़ैसला हुआ वो सबके सामने है.
मेरा सवाल असल में ये था कि उन दिनों आपको क्या लगता था यानी आपकी मानसिक हालत क्या थी?
देखिए, सच्चाई, ईमानदारी, नियम-क़ायदे सब हमारे पक्ष में थे. कोर्ट पर हमें पूरी आस्था थी. आरोप लगाने या मीडिया ट्रायल से कुछ नहीं होता. सच्चाई क्या है ये देखना न्यायपालिका का काम है. राजनीति में जो विरोधी हमें ख़त्म होते देखना चाहते थे, वे निराश हुए. इससे मेरा विश्वास सही साबित हुआ है कि भगवान है और इस देश में न्यायपालिका जीवित है.
मीडिया पर आपको विश्वास नहीं है?
ये सही है कि मीडिया हमको खूब कवरेज़ देता है. लेकिन अधिकांश ख़राब कवरेज़ देता है. लेकिन मीडिया में भी सब ख़राब लोग नहीं है. अच्छे-भले लोग भी हैं. मीडिया में भी जात-पाँत है. कई और भी समीकरण हैं. लोग अपना-अपना नज़रिया पेश करते रहते हैं. मीडिया को न्यूज़ देना चाहिए. व्यूज़ नहीं देना चाहिए.
आज मीडिया पर हर चीज का ट्रायल शुरू हो गया है. देश में इतना मीडिया हो गया है कि हालत ये हो गई है कि अब जब कोई न्यूज़ ही नहीं बचती है तो मीडिया ने खोजी पत्रकारिता शुरू कर दी है. बहुत सी बातों को मीडिया को नहीं दिखाना चाहिए जिससे समाज पर बुरा असर पड़ता है.
अब एक दिन मैं देख रहा था कि सेक्स पर एक कार्यक्रम दिखाया जा रहा था. बच्चे भी टेलीविज़न देखते हैं. ये सब ठीक नहीं है.
ये जो ब्यूरोक्रेसी है और जो लोग शीर्ष कुर्सियों पर जमे हुए हैं. उनके काम पर ज़बर्दस्त निगरानी रखी जानी चाहिए. देहात में हम कहते हैं कि ‘लिखतंग के सामने बकतंग काम नहीं करता’.
इस पूरे दौर में जो व्यक्तिगत यातना आपने सही. इससे कोई सबक मिला क्या?
ठीक है. बुरे दौर में इंसान की पहचान होती है कि कौन अच्छा आदमी है और कौन ख़राब. पश्चाताप तो तब होगा न अग़र हमने गलती की होती. जितनी बातें इस दौरान कही गईं अग़र मेरी जगह कोई दूसरा नेता होता तो वो टिकता नहीं, दिल का दौरा पड़ने से मर चुका होता.
आपका भी ब्लड प्रेशर तो बढ़ ही गया होगा?
नहीं ब्लड प्रेशर तो नॉर्मल ही रहा, लेकिन तनाव तो रहा ही. आप सार्वजनिक जीवन में हैं तो ये चिंता तो रहती ही है कि जब ये आरोप लगाया जा रहा है कि लालू 900 करोड़ का चारा खा गया तो लोग क्या सोचेंगे.
तो आपके लिए पूरे प्रकरण की सीख क्या रही?
ये जो ब्यूरोक्रेसी है और जो लोग शीर्ष कुर्सियों पर जमे हुए हैं. उनके काम पर ज़बर्दस्त निगरानी रखी जानी चाहिए. देहात में हम कहते हैं कि ‘लिखतंग के सामने बकतंग काम नहीं करता’. चारा घोटाला मामले में क्या हुआ. पशुपालन विभाग में सब कुछ फाइलों में दर्ज था और जब इसे न्यायपालिका के सामने लाया गया तो सब साफ हो गया.
नया अंदाज़
अच्छा ये बताएँ कि गाँव के लालू, इसके बाद छात्र संघ के अध्यक्ष, फिर मुख्यमंत्री, रेल मंत्री और अब पिछले कुछ महीनों से जो आपने मैनेजमेंट गुरु की नई टोपी पहनी है. कभी घर में बैठे रहते हैं तो हँसी आती है क्या?
नहीं. हँसी नहीं आती है. बात ये है कि भारतीय रेलवे जो लाभांश भी देने की स्थिति में नहीं था. यहाँ तक कि डॉ राकेश मोहन की विशेषज्ञ समिति ने भी कह दिया था कि अगले 25 साल में इसे निजी क्षेत्र में दे दिया जाना चाहिए.
भारतीय रेलवे का नेटवर्क बहुत बड़ा है. 16 लाख लोगों को रोज़गार हासिल है और हर दिन 11 हज़ार यात्री गाड़ी चलाते हैं और करोड़ो यात्रियों को उनकी मंजिल तक पहुँचाते हैं. इसके बावजूद ये घाटे का सौदा था.
मेरा मानना था कि भारतीय रेल तो जर्सी गाय और कमाऊ घोड़ा है. हमने कहा कि छंटनी नहीं की जाएगी. लदान क्षमता को बढ़ाने और ईमानदारी से प्रयास करने से हम भाड़ा बढ़ाए बग़ैर रेलवे को 13 हज़ार करोड़ रुपए के फ़ायदे में ले आए हैं.
माफ़ कीजिएगा. आपके आलोचकों का कहना है कि पहले 25 साल लालू ने खुद को बेवकूफ दिखाते हुए लोगों को बेवकूफ बनाया और अगले 25 साल की योजना अक्लमंद बनकर देश को बेवकूफ बनाने की है?
ऐसे नादान लोगों को मैं चुनौती देता हूँ कि बताएँ कि मैने कैसे लोगों को बेवकूफ बनाया. ये तो खुली किताब है, दस्तावेज है. अब हार्वर्ड, आईआईएम अहमदाबाद और तमाम जगहों से लोग ये जानने के लिए आ रहे हैं कि चमत्कार कैसे हो गया. दुनिया भर में जब भी कभी सुधारों की बात आती है तो घाटे से उबरने के लिए छंटनी की प्रक्रिया अपनाई जाती है. लेकिन बिना छेड़छाड़ किए हमने घाटे के सौदे को फायदे में लाकर दिखाया.
जब छात्र और प्रोफेसर आदि आपके पास आते हैं और इस चमत्कार के पीछे का रहस्य पूछते हैं तो आप उन्हें क्या बताते हैं?
गुर यही है कि ईमानदारी और निष्ठा से हमने अपने नज़रिए को ठीक किया और तमाम कद़म उठाते हुए खामियों को दूर किया. विश्वास कीजिए अभी तो और बड़ी कहानी आगे लिखी जाने वाली है.
सठा तो पठ्ठा
बिहार से आज तक कोई प्रधानमंत्री नहीं बना?
नहीं बना तो क्या. एक बार मैने कह दिया था कि एक दिन हम प्रधानमंत्री बनेंगे तो यूपीए में झंझट हो गया. अब हमने इसे फिलहाल स्थगित कर दिया है. कम से कम दो कार्यकाल तक प्रधानमंत्री बनना हमारे एजेंडे में नहीं है.
दुनिया भर में जब भी कभी सुधारों की बात आती है तो घाटे से उबरने के लिए छंटनी की प्रक्रिया अपनाई जाती है. लेकिन बिना छेड़छाड़ किए हमने घाटे के सौदे को फायदे में लाकर दिखाया.
वैसे भी मैं अपने आपको अभी युवा मानता हूँ. खासकर यादव समुदाय में तो कहा भी जाता है ‘सठा तो पट्ठा’. अभी तो मैं साठ साल का हुआ हूँ इसलिए युवा हूँ.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह नेक इंसान हैं. हमारी सरकार अगले पाँच साल भी चलेगी. हम सब इसे मिलकर चलाएँगे.
मैने आपकी कई जनसभाएं देखी हैं, आप इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन लेकर जब लोगों के बीच जाते थे तो उन्हें ये भी बताते हैं कि फलाँ बटन दबाने से ऐसी आवाज आएगी ?
मैं लोगों को बताता था कि वोटिंग मशीन में लालटेन यहाँ पर है और ठीक इसके ऊपर हारमोनियम जैसा बटन है. इसे दबाना है, लेकिन कचकचा कर इसे मत दबा देना, नहीं तो मशीन ही टूट जाएगी. बटन दबाने पर अगर ‘पीं’ जैसी आवाज आई तो समझो वोट सही पड़ा है. अगर आवाज नहीं आई तो समझो ‘दाल में काला’ है.
हमने ये तो माना कि आप लोगों तक अपनी बात पहुँचाने में माहिर हैं, लेकिन आपकी नज़र में करिश्माई और लोकप्रिय नेता और कौन है ?
और लोग भी हैं. लेकिन कई लोग हैं जो भाषण देते हैं तो उन्हें पता ही नहीं होता कि वे लोगों से क्या कह रहे हैं. लोग भी उनकी बातों को नहीं समझ पाते. लोगों के मन और मिज़ाज की समझ ज़रूरी है. मैं ये नहीं कहता कि मैं ही अकेला अच्छा वक्ता हूँ. बहुत सारे अच्छे नेता हैं. सोनियाजी भी हैं, अंग्रेजी परिवेश के बावजूद वह हिंदी में बहुत अच्छा भाषण देती हैं.
आपका पसंदीदा गाना?
मैं खुद को आजकल की फ़िल्मों से बहुत दूर रखता हूँ. पटना के हॉल में एक ही फ़िल्म देखी थी. दिलीप कुमार और वैजयंती माला अभिनीत फ़िल्म गंगा-जमुना और वो भी चार आने में. देश की सर्वश्रेष्ठ गायिका लता मंगेशकर और आशा भोसले के गाने भी मुझे बहुत पसंद है.
मैं खुद को आजकल की फ़िल्मों से बहुत दूर रखता हूँ. पटना के हॉल में एक ही फ़िल्म देखी थी. दिलीप कुमार और वैजयंती माला अभिनीत फ़िल्म गंगा-जमुना और वो भी चार आने में.
इसके अलावा ‘मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती’ और ‘जाने वालों जरा मुड़के देखो मुझे मैं भी इंसान हूँ’ भी मुझे पसंद है.
मुझे ‘मकाया रे तोर गुना गौलो न जाला’ जैसे लोकगीत भी बहुत पसंद हैं.
बॉलीवुड में लालू
आपने कहा कि आप टेलीविज़न या फ़िल्मों से दूर रहना चाहते हैं, लेकिन बॉलीवुड में तो आपके कई फैन हैं. महेश भट्ट कहते हैं कि मेरे आदर्श लालू हैं और शेखर सुमन ने तो आपकी नकल कर अपना कैरियर बना लिया?
शेखर सुमन हों या कोई और. हम देखते हैं कि बहुत से लोग मेरे बोलने के अंदाज़ की नकल करने की कोशिश करते हैं.
आपको कैसा लगता है. एक पूरी की पूरी जमात आपकी नकल करने की कोशिश कर रही है और लाखों करोड़ों कमा रही है. आपको रायल्टी की माँग करनी चाहिए ?
हमारी शुभकामनाएं उनके साथ हैं. नकल के लिए हमने किसी पर मुक़दमा नहीं किया. हमें रायल्टी भी नहीं चाहिए. हमारा नाम लेकर ये लोग जिए-खाएँ. देश के लोग इसे पसंद करते हैं. ठीक है लोग हमारा प्रचार करें. हालाँकि कुछ लोग गलत प्रचार भी करते हैं.
अच्छा लालूजी थोड़ा फ्लैशबैक में जाते हैं. आपका बचपन गाँव में ग़रीबी में बीता, फिर यूनीवर्सिटी आए और जयप्रकाश नारायण से जुड़े. कभी सोचा था आप इतने बड़े नेता बनेंगे?
हमारी शुभकामनाएं उनके साथ हैं. नकल के लिए हमने किसी पर मुक़दमा नहीं किया. हमें रायल्टी भी नहीं चाहिए. हमारा नाम लेकर ये लोग जिए-खाएँ
नहीं. कभी नहीं सोचा था. जो हक़ीकत है मैं आपको वो बता रहा हूँ. गाँव में हम छह भाई और दो बहनें थी. पिताजी मामूली किसान थे. गाय और बकरी चराने के लिए हम पिताजी के पीछे-पीछे जाते थे. हमने हर उस चीज का अनुभव किया है जो गाँव में किसान और मजदूर के बेटे को होते हैं.
जाड़े के दिनों में गन्ने के पत्तों को जलाकर आग तापते थे. तो कभी नहीं सोचा था कि फुलवरिया जैसे छोटे से गाँव में मिट्टी के कच्चे घर में पल-बढ़कर और सामंतवादी सोच के लोगों के बीच से उठकर मैं बिहार का मुख्यमंत्री बन जाऊँगा.
ये तो लोकतंत्र का कमाल है. हमारे नेता लोहियाजी कहा करते थे कि वोट का राज होगा तो छोड़ का राज होगा. अग़र वोट का राज नहीं होता तो हम तो आज भी गाय, भैंस, बकरी ही चरा रहे होते.
कोई सोच के कुछ नहीं बनता. बहुत से लोग सोचते हैं कि ये बनेंगे, वो बनेंगे. सो किसी ने कभी नहीं सोचा था और हम भी बन गए और राबड़ी देवी भी बन गईं.
स्टूडेंट्स यूनियन से लेकर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक का सफ़र. जयप्रकाश के आंदोलन में भी आप जुड़े रहे, लेकिन क्या आप तब भी ऐसे ही चुटीली बातें किया करते थे या दबे-दबे रहते थे?
मैंने हमेशा बेबाकी से बात की है. इच्छाशक्ति शुरू से ही बहुत मजबूत थी. आंदोलन के दिनों में छात्र-छात्राओं के बीच अपनी बातों को रखना. मीसा में मैं एक साल तक बंद रहा. छपरा से सांसद का चुनाव लड़ने के लिए हथकड़ी पहन कर गया था. इसलिए मैं मानता हूँ कि शुरुआती दिनों में गाँव से पटना आने और फिर मुख्यमंत्री और आज रेलमंत्री के रूप में मुझमें कोई बुनियादी फर्क नहीं आया है. मैं आज भी पहले की तरह अपनी बातों को जनता के सामने रखता हूँ.
मैं मानता हूँ कि शुरुआती दिनों में गाँव से पटना आने और फिर मुख्यमंत्री और आज रेलमंत्री के रूप में मुझमें कोई बुनियादी फर्क नहीं आया है.
परिवार नियोजन पर लालू
लालूजी आपके गाँव के बचपन के दिन और सब कुछ बदल गया, सिवाय एक बात के. आप छह भाई और दो बहन थे और आपके भी नौ बच्चे हैं. आपने ये भी बदलने की क्यों नहीं सोची कि परिवार छोटा रहे?
पहले के जमाने में जहाँ ज़्यादा भाई-बहन होते थे, उसे भाग्यशाली परिवार समझा जाता था. अब परिवार नियोजन की चर्चा ज़्यादा जोरों पर है. देश की जनसंख्या बढ़ रही है और लोगों की चिंता बढ़ी है कि परिवार छोटा होना चाहिए.
आप अपने बच्चों से कहते हैं कि उनका परिवार छोटा होना चाहिए?
बच्चे खुद-ब-खुद तय करेंगे. वैसे किस बच्चे में प्रतिभा निकल जाए, इसका कोई ठिकाना है. आजकल देखते हैं जिनका एक बेटा होता है और वह दुर्भाग्य से किसी दुर्घटना में मारा गया तो पूरा का पूरा परिवार तबाह हो जाता है. और क्या फर्क पड़ गया. जब जनसंख्या कम थी, तब लोगों को खाना नहीं मिलता था. दाल-चावल, सब्जी नहीं मिलती थी, लेकिन आज जनसंख्या बढ़ने के बावजूद खाने-पीने की कितनी किस्में हो गई हैं.
आपने हेमामालिनी के गालों वाली बात को झूठा कह दिया था, लेकिन एक और नारा था ‘जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक रहेगा बिहार में लालू’. ये नारा तो ठीक था?
ये नारे हमने नहीं दिए थे. हमारे समर्थकों अथवा शुभचिंतकों ने ये नारा दिया था.
जब पटना यूनीवर्सिटी में पढ़ते थे तब तक राबड़ी देवी से शादी हो चुकी थी?
1973 में हमारी शादी और 1974 में गौना हुआ. जब गौना कराकर आए तो आंदोलन के दौरान असेंबली के गेट पर पुलिस ने पिटाई कर दी और फिर जेल भेज दिया. इसके बाद लोगों ने राबड़ी देवी को कोसना शुरू कर दिया और कहा कि ये कुलक्षणी महिला है. घर आई तो बबुआ चला गया जेल.
तब मैने राबड़ी देवी से कहा कि यहाँ से निकलने के बाद तो अब सरकार ही बनानी है.
इश्क
राबड़ी देवी से पहला इश्क था या पहले भी किसी को दिल दिया था?
हम दिल देने वाले आदमी नहीं है. ये सब काम हमने कभी नहीं किए. राबड़ी देवी से जब मेरी सगाई की बात हुई तो मैने तो उन्हें देखा भी नहीं था. आजकल तो लड़की देखने के लिए पूरा परिवार जुटता है. फोटो मँगाए जाते हैं. लड़का-लड़की मिलते हैं. सवाल-जवाब होते हैं.
हमने तो सिंदूरदान भी किया तो पता नहीं था कि सिंदूर कहाँ भर रहे हैं. यही तो हमारी संस्कृति थी. फिर हमसे क्यों कोई प्यार करता. हम गाँव-गँवई थे. फ़कीर के घर पैदा हुए थे.
पर अब तो हम पुरानी पीढ़ी के देहाती हो गए हैं. अब तो इंटरनेट आ गया है. एसएमएस हो गया है. सच कहूँ तो मुझे तो आज भी एसएमएस करना नहीं आता. बल्कि अगर मोबाइल पर फोन आ गया तो सुन तो लेता हूँ, लेकिन इसे ऑफ़ करना मुझे नहीं आता.
हमने तो सिंदूरदान भी किया तो पता नहीं था कि सिंदूर कहाँ भर रहे हैं. यही तो हमारी संस्कृति थी. फिर हमसे क्यों कोई प्यार करता. हम गाँव-गँवई थे. फ़कीर के घर पैदा हुए थे.
राबड़ी देवी आपका और बच्चों का बहुत ख्याल रखती हैं. मुख्यमंत्री रहने के बाद भी उन्होंने गृहणी की भूमिका को नहीं छोड़ा. आप क्या मानते हैं?
वाकई ये मेरे राजनीतिक कैरियर के लिए बहुत अच्छा रहा कि ग्रामीण पृष्ठभूमि से आई राबड़ी देवी से मेरी शादी हुई. आजकल तो महिलाएं अपने पति को मिनट-मिनट में फोन करतीं हैं कि कहाँ हो, क्या कर रहे हो.
तो आपको राबड़ी देवी ने पूरी छूट दे रखी है कि कहीं भी जाइए या कभी भी आइए?
नहीं. राबड़ी देवी हमको जानती है कि ये गड़बड़ आदमी नहीं है. न उनको मोबाइल से फोन करना आता है और न हमको.
अब आदमी अपना काम-धंधा रोज़गार करेगा कि मोबाइल पर मिनट-मिनट का हिसाब देता रहेगा. ये फालतू का काम है.
कभी आपको ये भी लगा कि राबड़ी देवी आपसे अधिक लोकप्रिय हो रही हैं?
अगर राबड़ी देवी लोकप्रिय हो रही हैं तब भी मेरा ही नाम तो हो रहा है. मैं उनसे ईर्ष्या नहीं करता. वो कभी बाज़ार नहीं जातीं. न ही कोई डिमांड करती हैं. हम 500 रूपए की साड़ी को दस हज़ार का बताते हैं तो बहुत खुश होती हैं.
कभी साथ में फ़िल्म देखी है?
नहीं कभी नहीं. वो साथ में फ़िल्म देखने जाती ही नहीं हैं. टेलीविज़न पर ही फ़िल्म देखती हैं और टीवी देखते-देखते सो जाती हैं. वैसे भी आजकल जैसी फ़िल्में बनाई जा रही हैं वो परिवार के साथ बैठकर नहीं देखी जा सकती.
शाकाहारी जीवन
सुनते हैं कि आपको खाना बनाने का शौक है. शाम को रसोई में बैठते हैं और तरकारी छीलते हैं और कई मंत्रियों से भी तरकारी छिलवाते हैं?
नहीं मंत्री लोगों से तरकारी नहीं छिलवाते. हम विशुद्ध शाकाहारी हो गए हैं. पहले तरह-तरह से मछली, मटन और चिकन बनाते थे. फिर एक दिन स्वप्न में भगवान शिव ने मांसाहार छोड़ने के लिए कहा. मैने उनकी मूर्ति के आगे कान पकड़कर कसम खाई कि मांसाहार नहीं खाऊँगा.
सच में सपना आया था आपको? कब?
सचमुच में. करीब चार साल पहले सपना आया था. जब मैं जेल में था तो मैने पूजा-पाठ छोड़ दिया था. हालाँकि स्वाद पर कंट्रोल करना आसान काम नहीं है. लेकिन मैने नियंत्रण किया और अब चोखा, चावल, दाल, भिंडी आदि शाकाहारी भोजन खाता है.
कभी तो मन करता होगा कि कुछ कवाब आदि?
नहीं. जब भगवान शिव के आगे शपथ ले ली है तो कभी इच्छा नहीं होती. जब छोड़ दिया तो छोड़ दिया.
घर में और किसी को तो नहीं छुड़वाया?
नहीं. बच्चे खाते हैं. हाँ, एक बेटे ने छोड़ दिया है.
किसने? जो क्रिकेटर है?
नहीं क्रिकेटर तो तेजस्वी है. वो अंडर-19 में दिल्ली का कप्तान है अभी विशाखापत्तनम में है और फिर मुंबई जा रहा है. वह राजनीति में नहीं आएगा. वो तो क्रिकेट के प्रति पूरी तरह समर्पित है.
अभी आपकी पसंदीदा अभिनेता-अभिनेत्री कौन हैं?
शाहरुख़ ख़ान और एक वो लड़की जिसकी शादी होने वाली है....ऐश्वर्या राय.पुराने लोगों में अमिताभ बच्चन भी पसंद हैं.
शाहरुख की कोई फ़िल्म देखी है क्या ?
नहीं फ़िल्म नहीं. टीवी स्क्रीन पर नाच-गाना और फ़िल्म आती रहती है तो देख लेता हूँ.
एक दिन स्वप्न में भगवान शिव ने मांसाहार छोड़ने के लिए कहा. मैने उनकी मूर्ति के आगे कान पकड़कर कसम खाई कि मांसाहार नहीं खाऊँगा.
आप पर तो एक फ़िल्म भी बन गई पद्मश्री लालू प्रसाद यादव ?
हाँ, इस फ़िल्म को देखा ही नहीं, उसमें तो हमने आखिरी सीन भी किया है. फ़िल्म ठीक ही लगी.
फ़िल्मों में काम करेंगे ?
नहीं. कभी नहीं. सवाल ही नहीं होता. फ़िल्म वाले तो खुद राजनीति में आ रहे हैं. सब राजनीति में आना चाहते हैं तो फिर मैं क्यों.
अच्छा एक बात और सुनी थी कि दस साल पहले आप विदेश गए थे और इसके बाद सरकार चली गई. उसके बाद आप कई साल विदेश नहीं गए. लेकिन अभी आप हाल ही में फिर विदेश गए थे ?
वो तो मैं अमरीका गया था. वहाँ मैने भाषण दिया था कि जो अमरीका आता है. वह स्वदेश लौटने पर भूतपूर्व हो जाता है. इस बार हम अमरीका नहीं गए थे और यूरोपीय देशों के दौरे पर था.
अगर इस बार भी मैं अमरीका जाता तो फिर भूतपूर्व हो जाता. यूरोप के बारे में ऐसा नहीं है.
लोग आपके व्यक्तित्व में जो रंगीनी देखते हैं, उसका क्या राज है ?
अब लोकलाइज़ेशन गया. ग्लोबलाइज़ेशन के दौर में दुनिया गाँव के रूप में तब्दील हो गई है. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, इंटरनेट और एक से बढ़कर एक तकनीकी से दुनिया सिमट गई है. हर आदमी एक-दूसरे को देख रहा है. कहाँ क्या हो रहा है. कौन व्यक्ति क्या कर रहा है.
जब हम पाकिस्तान गए तो पता चला कि इंटरनेट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के ज़रिए वहाँ लोग मुझे पहले से ही जानते हैं. वो लोग चर्चा कर रहे थे कि किस तरह लालू प्रसाद और राबड़ी देवी ग़रीबी और अभाव के परिवेश से निकलकर सत्ता के शीर्ष पर पहुँचे.
('एक मुलाक़ात' कार्यक्रम बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के अलावा, बीबीसी हिंदी – मीडियम वेव 212 मीटर बैंड पर और शॉर्टवेव 19, 25, 41 और 49 मीटर बैंड पर - रविवार भारतीय समयानुसार रात आठ बजे प्रसारित होता है.)
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BBCHindi.com: "ब्रिटेन में एक बैल को बचाने की मुहिम"
BBCHindi.com: "ब्रिटेन में एक बैल को बचाने की मुहिम"
ब्रिटेन में टीबी से पीड़ित शंभू नाम के एक बैल को सरकारी नियमों के तहत मारे जाने को लेकर विवाद चल रहा है.
स्कंद वेल मंदिर से जुड़े लोग शंभू को मारे जाने का विरोध कर रहे हैं. इस मंदिर से हिंदुओं समेत कई धर्मों के लोग जुड़े हुए हैं.
ब्रिटेन में वेल्स एसेंबली के नियमों के तहत छह साल के शंभू को 21 मई को मारा जाना है.
स्कंद वेल मंदिर और हिंदू फ़ॉरम ऑफ़ ब्रिटेन के अधिकारियों का कहना है कि गाय और बैल को मारना उनकी धार्मिक मान्यताओं के ख़िलाफ़ है.
लेकिन वेल्श एसेंबली सरकार ने कहा है कि मानवों और जानवरों के स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिए संक्रमित पशुओं को मारना होगा.
परीक्षण के दौरान पाया गया था कि शंबू को टीबी है और उसके बाद से उसे अलग से रखा गया है.
इस बैल को बचाने के लिए छह हज़ार से ज़्यादा लोगों ने ऑनलाइन याचिका पर हस्ताक्षर किए हैं. लेकिन अंतिम फ़ैसला वेल्स की सरकार को लेना है.
बचाने की कोशिशें
स्कंद वेल मंदिर के भिक्षु एक वेब कैमरा लगाने की भी कोशिश कर रहे हैं ताकि लोग शंभू पर नज़र रख सकें.
पास के इलाक़े में रहने वाले किसान डेविस का इस बारे में कहना है कि शंभू को मारने का फ़ैसला मुश्किल काम है. पर साथ ही उनका मानना है, "अगर आपका पशु संक्रमित है, तो इससे और पशु भी संक्रमित हो सकते हैं. सरकार के नियमों के तहत जानवर को मारा जाना ही विकल्प है."
स्कंद वेल मंदिर से जुड़े ब्रदर माइकल का कहना है कि इस मामले ने अंतरराष्ट्रीय रंग ले लिया है.
उन्होंने बताया, "मुझे कुछ देर पहले ही ऑस्ट्रेलिया से फ़ोन आया था. सीएनएन, फ़ॉक्स न्यूज़, रूसी मीडिया हमसे बात कर चुका है. ये अहम मु्द्दा है."
ब्रदर माइकल ने कहा है कि वेल्स की सरकार चाहे तो शंबू को बचाने के लिए नियमों को लचीला कर सकती है.
ब्रदर माइकल ने कहा कि वे उम्मीद करते हैं कि ऐसे किसी विकल्प पर पहुँचा जा सकता है जिसमें शंबू को मारा न जाए.
शुक्रवार को वेल्श एसेंबली सरकार के वरिष्ठ पशुपालन अधिकारी शंबू को देखने आए थे और कहा था कि इस मुद्दे से संवदेनशीलता से निपटा जाएगा.
पिछले वर्ष वेल्स में 5220 पशुओं को मारा गया था क्योंकि वे टीबी से पीड़ित थे.
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ब्रिटेन में टीबी से पीड़ित शंभू नाम के एक बैल को सरकारी नियमों के तहत मारे जाने को लेकर विवाद चल रहा है.
स्कंद वेल मंदिर से जुड़े लोग शंभू को मारे जाने का विरोध कर रहे हैं. इस मंदिर से हिंदुओं समेत कई धर्मों के लोग जुड़े हुए हैं.
ब्रिटेन में वेल्स एसेंबली के नियमों के तहत छह साल के शंभू को 21 मई को मारा जाना है.
स्कंद वेल मंदिर और हिंदू फ़ॉरम ऑफ़ ब्रिटेन के अधिकारियों का कहना है कि गाय और बैल को मारना उनकी धार्मिक मान्यताओं के ख़िलाफ़ है.
लेकिन वेल्श एसेंबली सरकार ने कहा है कि मानवों और जानवरों के स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिए संक्रमित पशुओं को मारना होगा.
परीक्षण के दौरान पाया गया था कि शंबू को टीबी है और उसके बाद से उसे अलग से रखा गया है.
इस बैल को बचाने के लिए छह हज़ार से ज़्यादा लोगों ने ऑनलाइन याचिका पर हस्ताक्षर किए हैं. लेकिन अंतिम फ़ैसला वेल्स की सरकार को लेना है.
बचाने की कोशिशें
स्कंद वेल मंदिर के भिक्षु एक वेब कैमरा लगाने की भी कोशिश कर रहे हैं ताकि लोग शंभू पर नज़र रख सकें.
पास के इलाक़े में रहने वाले किसान डेविस का इस बारे में कहना है कि शंभू को मारने का फ़ैसला मुश्किल काम है. पर साथ ही उनका मानना है, "अगर आपका पशु संक्रमित है, तो इससे और पशु भी संक्रमित हो सकते हैं. सरकार के नियमों के तहत जानवर को मारा जाना ही विकल्प है."
स्कंद वेल मंदिर से जुड़े ब्रदर माइकल का कहना है कि इस मामले ने अंतरराष्ट्रीय रंग ले लिया है.
उन्होंने बताया, "मुझे कुछ देर पहले ही ऑस्ट्रेलिया से फ़ोन आया था. सीएनएन, फ़ॉक्स न्यूज़, रूसी मीडिया हमसे बात कर चुका है. ये अहम मु्द्दा है."
ब्रदर माइकल ने कहा है कि वेल्स की सरकार चाहे तो शंबू को बचाने के लिए नियमों को लचीला कर सकती है.
ब्रदर माइकल ने कहा कि वे उम्मीद करते हैं कि ऐसे किसी विकल्प पर पहुँचा जा सकता है जिसमें शंबू को मारा न जाए.
शुक्रवार को वेल्श एसेंबली सरकार के वरिष्ठ पशुपालन अधिकारी शंबू को देखने आए थे और कहा था कि इस मुद्दे से संवदेनशीलता से निपटा जाएगा.
पिछले वर्ष वेल्स में 5220 पशुओं को मारा गया था क्योंकि वे टीबी से पीड़ित थे.
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BBCHindi.com: "घुंघरू की झंकार पर मची तकरार"
BBCHindi.com: "घुंघरू की झंकार पर मची तकरार"
बिहार के एक ज़िला परिषद की उपाध्यक्ष पूनम देवी ने अपने पैरों में एक बार फिर घुंघरू बाँध लिए हैं.
कोठों की औरतों के लिए प्ररेणा बनने और उनके हक़ की लड़ाई को आगे बढ़ाने वाली पूनम देवी के इस फ़ैसले पर काफ़ी बवाल मचा हुआ है.
बदनाम गलियों की जकड़न को तोड़ते हुए एक दशक पहले पूनम देवी ने कोठे को अलविदा कह दिया था और नाच-गाने से तौबा कर ली थी, 38 वर्षीय पूनम पिछले वर्ष बिहार के रोहतास ज़िला परिषद की उपाध्यक्ष चुनी गईं.
महज़ प्राथमिक स्तर तक शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद राज-समाज की गहरी परख रखने वाली पूनम कहती हैं, "उपाध्यक्ष की कुर्सी तो मिल गई लेकिन आज भी मुझे गुज़रे दिनों के कड़वे अनुभवों से जोड़कर देखा जाता है, मुझे सम्मान और संवैधानिक अधिकार से वंचित रखा गया है."
वे कहती हैं, "और तो और एक चपरासी भी मेरी बातें नहीं मानता था और मेरे चैम्बर के बाहर मेरा माखौल उड़ाया जाता था."
पूनम बताती हैं कि बुरे बर्ताव और अवैतनिक पद पर होने की वजह से आने वाली आर्थिक दिक्कतों से परेशान होकर उन्होंने दोबारा नाच-गाकर अपने परिवार को पालने का फ़ैसला किया.
मेरा यह क़दम उस समाज के मुँह पर तमाचा है जो महफ़िलों में मेरे विरहा की तान सुनकर मुझे सर-आँखों बिठाता है लेकिन मेरे राजनीतिक अधिकार और वर्चस्व को स्वीकार करने से डरता है
पूनम देवी
दूसरी तरफ़ ज़िलापरिषद की अध्यक्ष शीला सिंह कहती हैं, "उपाध्यक्ष के नाते उन्हें जितना सम्मान और अधिकार मिलना चाहिए वह मिला है. वे नट जाति से हैं और यह जाति परंपरागत तौर पर नाच-गान के लिए जानी जाती है लेकिन यह अफ़सोस की बात है कि हमारे समाज का एक हिस्सा आज भी इसे अच्छा नहीं मानता."
पूनम स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहती हैं, "मैंने पैरों में घुंघरू बांधे हैं कोठे पर वापस नहीं गई हूँ जिसे मैंने दस साल पहले छोड़ दिया था. मेरा यह क़दम उस समाज के मुँह पर तमाचा है जो महफ़िलों में मेरे विरहा की तान सुनकर मुझे सर-आँखों बिठाता है लेकिन मेरे राजनीतिक अधिकार और वर्चस्व को स्वीकार करने से डरता है."
पूनम अपने बचपन की कड़वी यादों और बदनाम गलियों में पहुँचने की कहानी को भूली नहीं हैं. वे उसी कड़वाहट के साथ चुनौती देती हैं, "कोई माई का लाल यह साबित कर दे कि मैं कोठे पर लौट आई हूँ तो मैं अपने पद से इस्तीफ़ा दे दूँगी."
नामी गायिका
पूनम विरहा गायकी के लिए बिहार और उत्तर प्रदेश के भोजपुरी भाषी क्षेत्रों का जाना-पहचाना नाम है. टी-सीरीज से इनके अनेक कैसेट आये हैं और एक दौर ऐसा भी था जब उनके नाच-गान के शौक़ीन लोग आपस में गोलीबारी पर भी आमादा हो जाते थे.
पूनम पूछती हैं कि "जब ऐश्वर्या राय पैरों में घुंधरू बांध कर नाचती हैं तो उन्हें कोई बुरी नज़र से क्यों नहीं देखता? मेरे तीन बच्चे हैं उनकी ज़िम्मेदारी भी मेरी है और फिर हमें कोई वेतन और भत्ता तो मिलता नहीं. नाच-गान से मैं बस इतना कमा लेती हूँ कि अपने बच्चों को एक सम्मानजनक भविष्य सुनिश्चित कर सकूँ."
पूनम जी एक अच्छी कलाकार हैं और लोग उनके गीतों को पसंद करते हैं लेकिन सार्वजनिक जीवन में होने के नाते उनसे दूरी बनाए रखना मेरे सम्मान के लिए ठीक है
वशिष्ठ चौधरी, स्थानीय नेता
सासाराम के समाजिक कार्यकता परवेज़ आलम पूनम जैसी महिलाओं को जनप्रतिनिधि के रूप में सम्मान नहीं मिलने को एक सामाजिक विकार मानते हैं.
वे कहते हैं, "एक दशक पूर्व पूनम शादी के समारोहों में नाचने- गाने पहुंचती थीं तो शामियानों में गोलियाँ तक चल जाती थीं. लोग पूनम का जलवा देख कर आपस में भिड़ जाते थे पर आज एक जनप्रतिनिधि के रूप में पूनम को वाजिब सम्मान नहीं मिल रहा."
करगहर के ज़िला पार्षद वशिष्ठ चौधरी दावा करते हैं कि पूनम देवी को उपाध्यक्ष निर्वाचित करवाने में उनका अहम योगदान है. लेकिन वे भी पूनम से एक दूरी बनाए रखना अपनी प्रतिष्ठा के लिए ज़रूरी समझते हैं.
वे कहते हैं, "पूनम जी एक अच्छी कलाकार हैं और लोग उनके गीतों को पसंद करते हैं लेकिन सार्वजनिक जीवन में होने के नाते उनसे दूरी बनाए रखना मेरे सम्मान के लिए ठीक है."
तमाम बाधाओं के बावजूद पूनम अपना संघर्ष जारी रखना चाहती हैं. उनका कहना है कि बदनाम गलियों को छोड़ने से महिलाएँ सिर्फ़ इसीलिए कतराती हैं कि समाज उसे स्वीकार नहीं करेगा.
पूनम की दलील है कि इन महिलाओं को सम्मान देकर ही उन्हें बदनामी के दलदल से निकाला जा सकता है.
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बिहार के एक ज़िला परिषद की उपाध्यक्ष पूनम देवी ने अपने पैरों में एक बार फिर घुंघरू बाँध लिए हैं.
कोठों की औरतों के लिए प्ररेणा बनने और उनके हक़ की लड़ाई को आगे बढ़ाने वाली पूनम देवी के इस फ़ैसले पर काफ़ी बवाल मचा हुआ है.
बदनाम गलियों की जकड़न को तोड़ते हुए एक दशक पहले पूनम देवी ने कोठे को अलविदा कह दिया था और नाच-गाने से तौबा कर ली थी, 38 वर्षीय पूनम पिछले वर्ष बिहार के रोहतास ज़िला परिषद की उपाध्यक्ष चुनी गईं.
महज़ प्राथमिक स्तर तक शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद राज-समाज की गहरी परख रखने वाली पूनम कहती हैं, "उपाध्यक्ष की कुर्सी तो मिल गई लेकिन आज भी मुझे गुज़रे दिनों के कड़वे अनुभवों से जोड़कर देखा जाता है, मुझे सम्मान और संवैधानिक अधिकार से वंचित रखा गया है."
वे कहती हैं, "और तो और एक चपरासी भी मेरी बातें नहीं मानता था और मेरे चैम्बर के बाहर मेरा माखौल उड़ाया जाता था."
पूनम बताती हैं कि बुरे बर्ताव और अवैतनिक पद पर होने की वजह से आने वाली आर्थिक दिक्कतों से परेशान होकर उन्होंने दोबारा नाच-गाकर अपने परिवार को पालने का फ़ैसला किया.
मेरा यह क़दम उस समाज के मुँह पर तमाचा है जो महफ़िलों में मेरे विरहा की तान सुनकर मुझे सर-आँखों बिठाता है लेकिन मेरे राजनीतिक अधिकार और वर्चस्व को स्वीकार करने से डरता है
पूनम देवी
दूसरी तरफ़ ज़िलापरिषद की अध्यक्ष शीला सिंह कहती हैं, "उपाध्यक्ष के नाते उन्हें जितना सम्मान और अधिकार मिलना चाहिए वह मिला है. वे नट जाति से हैं और यह जाति परंपरागत तौर पर नाच-गान के लिए जानी जाती है लेकिन यह अफ़सोस की बात है कि हमारे समाज का एक हिस्सा आज भी इसे अच्छा नहीं मानता."
पूनम स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहती हैं, "मैंने पैरों में घुंघरू बांधे हैं कोठे पर वापस नहीं गई हूँ जिसे मैंने दस साल पहले छोड़ दिया था. मेरा यह क़दम उस समाज के मुँह पर तमाचा है जो महफ़िलों में मेरे विरहा की तान सुनकर मुझे सर-आँखों बिठाता है लेकिन मेरे राजनीतिक अधिकार और वर्चस्व को स्वीकार करने से डरता है."
पूनम अपने बचपन की कड़वी यादों और बदनाम गलियों में पहुँचने की कहानी को भूली नहीं हैं. वे उसी कड़वाहट के साथ चुनौती देती हैं, "कोई माई का लाल यह साबित कर दे कि मैं कोठे पर लौट आई हूँ तो मैं अपने पद से इस्तीफ़ा दे दूँगी."
नामी गायिका
पूनम विरहा गायकी के लिए बिहार और उत्तर प्रदेश के भोजपुरी भाषी क्षेत्रों का जाना-पहचाना नाम है. टी-सीरीज से इनके अनेक कैसेट आये हैं और एक दौर ऐसा भी था जब उनके नाच-गान के शौक़ीन लोग आपस में गोलीबारी पर भी आमादा हो जाते थे.
पूनम पूछती हैं कि "जब ऐश्वर्या राय पैरों में घुंधरू बांध कर नाचती हैं तो उन्हें कोई बुरी नज़र से क्यों नहीं देखता? मेरे तीन बच्चे हैं उनकी ज़िम्मेदारी भी मेरी है और फिर हमें कोई वेतन और भत्ता तो मिलता नहीं. नाच-गान से मैं बस इतना कमा लेती हूँ कि अपने बच्चों को एक सम्मानजनक भविष्य सुनिश्चित कर सकूँ."
पूनम जी एक अच्छी कलाकार हैं और लोग उनके गीतों को पसंद करते हैं लेकिन सार्वजनिक जीवन में होने के नाते उनसे दूरी बनाए रखना मेरे सम्मान के लिए ठीक है
वशिष्ठ चौधरी, स्थानीय नेता
सासाराम के समाजिक कार्यकता परवेज़ आलम पूनम जैसी महिलाओं को जनप्रतिनिधि के रूप में सम्मान नहीं मिलने को एक सामाजिक विकार मानते हैं.
वे कहते हैं, "एक दशक पूर्व पूनम शादी के समारोहों में नाचने- गाने पहुंचती थीं तो शामियानों में गोलियाँ तक चल जाती थीं. लोग पूनम का जलवा देख कर आपस में भिड़ जाते थे पर आज एक जनप्रतिनिधि के रूप में पूनम को वाजिब सम्मान नहीं मिल रहा."
करगहर के ज़िला पार्षद वशिष्ठ चौधरी दावा करते हैं कि पूनम देवी को उपाध्यक्ष निर्वाचित करवाने में उनका अहम योगदान है. लेकिन वे भी पूनम से एक दूरी बनाए रखना अपनी प्रतिष्ठा के लिए ज़रूरी समझते हैं.
वे कहते हैं, "पूनम जी एक अच्छी कलाकार हैं और लोग उनके गीतों को पसंद करते हैं लेकिन सार्वजनिक जीवन में होने के नाते उनसे दूरी बनाए रखना मेरे सम्मान के लिए ठीक है."
तमाम बाधाओं के बावजूद पूनम अपना संघर्ष जारी रखना चाहती हैं. उनका कहना है कि बदनाम गलियों को छोड़ने से महिलाएँ सिर्फ़ इसीलिए कतराती हैं कि समाज उसे स्वीकार नहीं करेगा.
पूनम की दलील है कि इन महिलाओं को सम्मान देकर ही उन्हें बदनामी के दलदल से निकाला जा सकता है.
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Friday, May 11, 2007
MSN INDIA - क्रांति की कहानी बयाँ करते सिक्�
MSN INDIA - क्रांति की कहानी बयाँ करते सिक्�: "क्रांति की कहानी बयाँ करते सिक्के "
क्रांति की कहानी बयाँ करते सिक्के
11 मई 200712:30 IST
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सिक्कों का संबंध हमेशा से हुकूमत से रहा है, इसलिए जब भारतीयों ने विदेशी सत्ता के विरुद्ध प्रथम स्वाधीनता संग्राम का एलान किया तो उसका एक प्रतीक सिक्के भी बने।वर्ष 1857 में विद्रोह की जो चिंगारी बैरकपुर से उठी उसकी जद में पूरा देश में आ गया। 11 मई को ईस्ट इंडिया कंपनी के भारतीय सिपाही मेरठ से दिल्ली तक बढ़ गए और वहाँ अंग्रेज सेना को हराकर नगर पर अपना कब्जा कर लिया।कहते हैं कि 12 मई को बागियों ने जब बहादुर शाह जफर को बादशाह घोषित कर दिया, तो फौरन उन्होंने सोने का सिक्का जारी किया, जिस पर अंकित फारसी बैत यानी दोहे का अर्थ था, 'विजय के प्रतीक के रूप में सोने का सिक्का बनवाया, सिराजउद्दीन बहादुर शाह गाजी ने।'कहते हैं कि इसके साथ ही एक और फारसी बैत लिखी गई थी जिसका अर्थ था,' राजा बहादुर शाह हिंदुस्तान का राजा है और जो ईश्वर की कृपा से दुनिया का जेवर है।' जब अंग्रेजों ने विद्रोह का दमन कर दिया तो गालिब को भी गिरफ़्तार कर लिया गया। गालिब ने इस आरोप का खंडन किया कि उन्होंने ये बैत लिखी थीं।अपने एक मित्र मुहम्मद बाकिर को लिखे पत्र में गालिब ने दावा किया कि इसके रचयिता उनके प्रतिद्वंद्वी कवि मुहम्मद इब्राहीम जौक थे। वैसे आज तक सोने का ऐसा कोई सिक्का मिला नहीं जिस पर ये बैतें लिखी हों।वर्ष 1857 के एक प्रत्यक्षदर्शी अब्दुल लतीफ़ ने अपनी डायरी में लिखा है कि चांदनी चौक के क़रीब स्थित कटरा मशरू में एक टकसाल की स्थापना की गई थी और उसके संचालन का जम्मा मुंशी अयोध्या प्रसाद को सौंपा गया था।अंग्रेजों के जासूस की रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि महल में उपलब्ध सोने-चाँदी की तमाम चीजों को टकसाल में सिक्के बनाने के लिए भी भेजा गया था। बहादुर शाह जफर के नाम पर जारी किया गया चाँदी का एक सिक्का जरूर मिला है जिस पर पहली बैत अंकित थी।आशा के विपरीत इस सिक्के पर दिल्ली, जिसे उस समय शाहजहांनबाद कहते थे, का नाम अंकित नहीं मिलता है। इस पर विद्रोह के एक अन्य महत्वपूर्ण केंद्र सूबा अवध (लखनऊ) का नाम मिलता है।बिर्जीस कद्र के सिक्के : लखनऊ अवध के नवाबों की राजधानी था। 1857 में बागियों ने वाजिद अली शाह के 13 वर्ष के बेटे बिर्जीस कद्र को अवध का शासक घोषित कर दिया और उनकी माँ बेगम हजरत महल को उनका संरक्षक बना दिया था।लखनऊ के बागी सरदारों का फ़ैसला था कि सिक्के बहादुर शाह जफर के नाम पर ही जारी किए जाएँ। उन्होंने प्रस्तावित सिक्के का एक नमूना अपने प्रतिनिधि अब्बास मिर्जा के हाथ मुगल बादशाह की मंजूरी के लिए भेजा था।हकीम अहसानउल्ला खान ने अपनी गवाही में बताया था कि इस सिक्के को बाद में पंजाब के कमिश्नर के पास जमा करवा दिया था। बाद में इस स्वर्ण मुहर का क्या हुआ कोई नहीं जानता।संडीला के राजा दुर्गा प्रसाद लिखित बोस्तान-ए-अवध में दर्ज है कि बहादुर शाह जफर के पास प्रतिनिधिमंडल जो सोने का सिक्का लेकर आया था उसे 22 अगस्त 1857 से अवध के नए सिक्के के रूप में जारी किया जाना था लेकिन इस बीच घटनाक्रम तेजी से बदला और दिल्ली और लखनऊ पर अंग्रेज़ों का फिर से कब्जा हो गया।लखनऊ में बिर्जीस कद्र के आदेश से एक टकसाल की स्थापना की गई। इसमें एक नए सिक्के का निर्माण हुआ जो आम चलन में भी आया। इन सिक्कों पर मछली का निशान अंकित था और लखनऊ के सर्राफों की भाषा में 'बिर्जीस कद्र के रुपए' कहा जाता था। चाँदी से बनाए गए सिक्के यानी रुपए और सोने से बने मुहर या अशरफी पर एक समान ही फारसी लेख मिलते हैं।इन सिक्कों का नूमना लखनऊ में पूर्व प्रचलित सिक्कों से लिया गया था जिन पर हिजरी की तिथि तो वास्तविक होती थी लेकिन राज्यारोहण की तिथि समान रूप से 26 ही होती थी।खान बहादुर खान के सिक्के : 31 मई 1857 को अंग्रेज़ों के भारतीय सैनिकों ने बरेली में भी विद्रोह कर दिया और फिर सर्वसम्मति से रोहिला सरदार खान बहादुर खान को अपना नेता चुना। उसी दिन खान बहादुर खान ने खुद को मुगल बादशाह के अधीन बरेली का विधिवत सूबेदार घोषित कर दिया।खान बहादुर खान की सरकार ने अपनी क्रांति का एक प्रतीक सिक्कों को भी बनाया और नए सिक्के अंकित कराने का फैसला भी किया। काफी विचार के बाद यह तय हुआ कि सिक्के पूर्व मुगल शासक शाह आलम द्वितीय के नाम पर जारी किए जाएं लेकिन तिथि बदल दी जाए।सिक्कों के लिए निश्चित शुद्धता वाली चाँदी और तय वज़न की टिकली बनाई गईं और इनपर ठप्पे अंकित कर इन्हें सिक्के का रूप दिया गया। खान बहादुर खान ने इन सिक्कों के प्रचलन के लिए जो आदेश जारी किए थे उसके मुताबिक एक रुपया ताँबे के 40-40 दो पैसे के बराबर होता था।इस बात के भी प्रमाण मिले हैं कि खान बहादुर खान ने पुराने रुपयों की अनुकृति कर अपने सिक्के जारी किए जिस पर टकसाल का नाम बरेली और तिथि 1274 हिजरी (सन् 1857) अंकित करवाई।6 मई 1858 को अंग्रेज सेना ने बरेली पर फिर से अधिकार कर लिया और खान बहादुर खान अपने कुछ सहयोगियों के साथ नेपाल भागने में सफल रहे। 9 दिसंबर, 1859 को नेपाल के राजा राणा जंग बहादुर ने खान बहादुर खान को बंदी बनाकर अंग्रेजों को सौंप दिया और 24 जनवरी 1860 को बरेली में उन्हें फाँसी दे दी गई।
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क्रांति की कहानी बयाँ करते सिक्के
11 मई 200712:30 IST
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सिक्कों का संबंध हमेशा से हुकूमत से रहा है, इसलिए जब भारतीयों ने विदेशी सत्ता के विरुद्ध प्रथम स्वाधीनता संग्राम का एलान किया तो उसका एक प्रतीक सिक्के भी बने।वर्ष 1857 में विद्रोह की जो चिंगारी बैरकपुर से उठी उसकी जद में पूरा देश में आ गया। 11 मई को ईस्ट इंडिया कंपनी के भारतीय सिपाही मेरठ से दिल्ली तक बढ़ गए और वहाँ अंग्रेज सेना को हराकर नगर पर अपना कब्जा कर लिया।कहते हैं कि 12 मई को बागियों ने जब बहादुर शाह जफर को बादशाह घोषित कर दिया, तो फौरन उन्होंने सोने का सिक्का जारी किया, जिस पर अंकित फारसी बैत यानी दोहे का अर्थ था, 'विजय के प्रतीक के रूप में सोने का सिक्का बनवाया, सिराजउद्दीन बहादुर शाह गाजी ने।'कहते हैं कि इसके साथ ही एक और फारसी बैत लिखी गई थी जिसका अर्थ था,' राजा बहादुर शाह हिंदुस्तान का राजा है और जो ईश्वर की कृपा से दुनिया का जेवर है।' जब अंग्रेजों ने विद्रोह का दमन कर दिया तो गालिब को भी गिरफ़्तार कर लिया गया। गालिब ने इस आरोप का खंडन किया कि उन्होंने ये बैत लिखी थीं।अपने एक मित्र मुहम्मद बाकिर को लिखे पत्र में गालिब ने दावा किया कि इसके रचयिता उनके प्रतिद्वंद्वी कवि मुहम्मद इब्राहीम जौक थे। वैसे आज तक सोने का ऐसा कोई सिक्का मिला नहीं जिस पर ये बैतें लिखी हों।वर्ष 1857 के एक प्रत्यक्षदर्शी अब्दुल लतीफ़ ने अपनी डायरी में लिखा है कि चांदनी चौक के क़रीब स्थित कटरा मशरू में एक टकसाल की स्थापना की गई थी और उसके संचालन का जम्मा मुंशी अयोध्या प्रसाद को सौंपा गया था।अंग्रेजों के जासूस की रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि महल में उपलब्ध सोने-चाँदी की तमाम चीजों को टकसाल में सिक्के बनाने के लिए भी भेजा गया था। बहादुर शाह जफर के नाम पर जारी किया गया चाँदी का एक सिक्का जरूर मिला है जिस पर पहली बैत अंकित थी।आशा के विपरीत इस सिक्के पर दिल्ली, जिसे उस समय शाहजहांनबाद कहते थे, का नाम अंकित नहीं मिलता है। इस पर विद्रोह के एक अन्य महत्वपूर्ण केंद्र सूबा अवध (लखनऊ) का नाम मिलता है।बिर्जीस कद्र के सिक्के : लखनऊ अवध के नवाबों की राजधानी था। 1857 में बागियों ने वाजिद अली शाह के 13 वर्ष के बेटे बिर्जीस कद्र को अवध का शासक घोषित कर दिया और उनकी माँ बेगम हजरत महल को उनका संरक्षक बना दिया था।लखनऊ के बागी सरदारों का फ़ैसला था कि सिक्के बहादुर शाह जफर के नाम पर ही जारी किए जाएँ। उन्होंने प्रस्तावित सिक्के का एक नमूना अपने प्रतिनिधि अब्बास मिर्जा के हाथ मुगल बादशाह की मंजूरी के लिए भेजा था।हकीम अहसानउल्ला खान ने अपनी गवाही में बताया था कि इस सिक्के को बाद में पंजाब के कमिश्नर के पास जमा करवा दिया था। बाद में इस स्वर्ण मुहर का क्या हुआ कोई नहीं जानता।संडीला के राजा दुर्गा प्रसाद लिखित बोस्तान-ए-अवध में दर्ज है कि बहादुर शाह जफर के पास प्रतिनिधिमंडल जो सोने का सिक्का लेकर आया था उसे 22 अगस्त 1857 से अवध के नए सिक्के के रूप में जारी किया जाना था लेकिन इस बीच घटनाक्रम तेजी से बदला और दिल्ली और लखनऊ पर अंग्रेज़ों का फिर से कब्जा हो गया।लखनऊ में बिर्जीस कद्र के आदेश से एक टकसाल की स्थापना की गई। इसमें एक नए सिक्के का निर्माण हुआ जो आम चलन में भी आया। इन सिक्कों पर मछली का निशान अंकित था और लखनऊ के सर्राफों की भाषा में 'बिर्जीस कद्र के रुपए' कहा जाता था। चाँदी से बनाए गए सिक्के यानी रुपए और सोने से बने मुहर या अशरफी पर एक समान ही फारसी लेख मिलते हैं।इन सिक्कों का नूमना लखनऊ में पूर्व प्रचलित सिक्कों से लिया गया था जिन पर हिजरी की तिथि तो वास्तविक होती थी लेकिन राज्यारोहण की तिथि समान रूप से 26 ही होती थी।खान बहादुर खान के सिक्के : 31 मई 1857 को अंग्रेज़ों के भारतीय सैनिकों ने बरेली में भी विद्रोह कर दिया और फिर सर्वसम्मति से रोहिला सरदार खान बहादुर खान को अपना नेता चुना। उसी दिन खान बहादुर खान ने खुद को मुगल बादशाह के अधीन बरेली का विधिवत सूबेदार घोषित कर दिया।खान बहादुर खान की सरकार ने अपनी क्रांति का एक प्रतीक सिक्कों को भी बनाया और नए सिक्के अंकित कराने का फैसला भी किया। काफी विचार के बाद यह तय हुआ कि सिक्के पूर्व मुगल शासक शाह आलम द्वितीय के नाम पर जारी किए जाएं लेकिन तिथि बदल दी जाए।सिक्कों के लिए निश्चित शुद्धता वाली चाँदी और तय वज़न की टिकली बनाई गईं और इनपर ठप्पे अंकित कर इन्हें सिक्के का रूप दिया गया। खान बहादुर खान ने इन सिक्कों के प्रचलन के लिए जो आदेश जारी किए थे उसके मुताबिक एक रुपया ताँबे के 40-40 दो पैसे के बराबर होता था।इस बात के भी प्रमाण मिले हैं कि खान बहादुर खान ने पुराने रुपयों की अनुकृति कर अपने सिक्के जारी किए जिस पर टकसाल का नाम बरेली और तिथि 1274 हिजरी (सन् 1857) अंकित करवाई।6 मई 1858 को अंग्रेज सेना ने बरेली पर फिर से अधिकार कर लिया और खान बहादुर खान अपने कुछ सहयोगियों के साथ नेपाल भागने में सफल रहे। 9 दिसंबर, 1859 को नेपाल के राजा राणा जंग बहादुर ने खान बहादुर खान को बंदी बनाकर अंग्रेजों को सौंप दिया और 24 जनवरी 1860 को बरेली में उन्हें फाँसी दे दी गई।
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MSN INDIA - चौंकाएँगी तनुश्री दत्ता
MSN INDIA - चौंकाएँगी तनुश्री दत्ता
तनुश्री दत्ता को ‘रिस्क’ में निभाई बड़ी भूमिका से वे लाभ नहीं मिला जो ‘भागमभाग’ की छोटी भूमिका निभाकर मिला। ‘रिस्क’ कब आई और कब गई दर्शकों को पता भी नहीं चला।वहीं ‘भागमभाग’ में उन पर फिल्माया गया गीत ‘सिग्नल प्यार का सिग्नल’ ने तनुश्री को प्रसिद्धि दिलाई। आज तनुश्री को लोग इस गाने के कारण पहचानने लगे हैं। ‘भागमभाग’ में छोटा रोल तनुश्री ने इसलिए किया, क्योंकि वे प्रियदर्शन की ही फिल्म ‘ढोल’ भी कर रही हैं।‘ढोल’ एक हास्य फिल्म है और इसमें तनुश्री के साथ तुषार कपूर, कुणाल खेमू और शरमन जोशी जैसे सितारें हैं। इस फिल्म में तनुश्री ग्लैमरविहीन नजर आएँगी। उनका रोल आम जिंदगी में पाए जाने वाली सीधी-सादी लड़की का रोल है। प्रियदर्शन जैसे निर्देशक के साथ काम करना तनुश्री के लिए गर्व की बात है। हो सकता है कि इस फिल्म में तनुश्री को अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिले।‘ढोल’ के पहले तनुश्री की दो फिल्म आने वाली हैं। ‘गुड बॉय बैड बॉय’ और ‘रकीब’। ‘गुड बॉय बैड बॉय’ के निर्माता सुभाष घई हैं। सुभाष घई की पिछली फिल्म ’36 चायना टाउन’ में तनुश्री ने एक आयटम सांग किया था और इस फिल्म में वह नायिका बनी हैं।तनुश्री को शायद इसीलिए चालाक या होशियार कहा जाता है, क्योंकि आयटम सांग करने के बाद उसी निर्माता या निर्देशक की अगली फिल्म में वे नायिका बना जाती हैं। ‘गुड बॉय बैड बॉय’ में वे टॉमबॉयनुमा गर्ल बनी हैं, जो हमेशा धमाल-मस्ती करती रहती हैं। इस फिल्म में तनुश्री के नायक तुषार कपूर हैं।‘रकीब’ में भी तनुश्री को अभिनय का अच्छा अवसर मिला है। राहुल खन्ना, जिमी शेरगिल और शरमन जोशी के बीच वे अकेली नायिका हैं। ‘रकीब’ एक मर्डर मिस्ट्री है और इसमें रहस्य और रोमांच जैसे सारे तत्व शामिल हैं।इस फिल्म का निर्माण राजकंवर ने किया है, जबकि निर्देशन अनुराग सिंह का है। इस फिल्म में तनुश्री निगेटिव्ह चरित्र निभा रही हैं। ऐसी भूमिका उसने पहले कभी नहीं निभाई है। इस भूमिका में उनके तीन अलग-अलग शेड हैं। तनुश्री का मानना है कि उसके प्रशंसक उसे एक अलग भूमिका में देख चौंक जाएँगे। तनुश्री के मुताबिक निर्देशक अनुराग सिंह की भले ही यह पहली फिल्म हो, लेकिन वे अत्यंत प्रतिभाशाली हैं और उनके काम को देखकर लगता ही नहीं कि यह उनकी पहली फिल्म है।इन फिल्मों के अलावा तनुश्री की ‘दस कहानियाँ’, ‘स्पीड’ और ‘मि. फ्रॉड’ जैसी फिल्में भी इसी वर्ष प्रदर्शित होने वाली हैं।
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तनुश्री दत्ता को ‘रिस्क’ में निभाई बड़ी भूमिका से वे लाभ नहीं मिला जो ‘भागमभाग’ की छोटी भूमिका निभाकर मिला। ‘रिस्क’ कब आई और कब गई दर्शकों को पता भी नहीं चला।वहीं ‘भागमभाग’ में उन पर फिल्माया गया गीत ‘सिग्नल प्यार का सिग्नल’ ने तनुश्री को प्रसिद्धि दिलाई। आज तनुश्री को लोग इस गाने के कारण पहचानने लगे हैं। ‘भागमभाग’ में छोटा रोल तनुश्री ने इसलिए किया, क्योंकि वे प्रियदर्शन की ही फिल्म ‘ढोल’ भी कर रही हैं।‘ढोल’ एक हास्य फिल्म है और इसमें तनुश्री के साथ तुषार कपूर, कुणाल खेमू और शरमन जोशी जैसे सितारें हैं। इस फिल्म में तनुश्री ग्लैमरविहीन नजर आएँगी। उनका रोल आम जिंदगी में पाए जाने वाली सीधी-सादी लड़की का रोल है। प्रियदर्शन जैसे निर्देशक के साथ काम करना तनुश्री के लिए गर्व की बात है। हो सकता है कि इस फिल्म में तनुश्री को अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिले।‘ढोल’ के पहले तनुश्री की दो फिल्म आने वाली हैं। ‘गुड बॉय बैड बॉय’ और ‘रकीब’। ‘गुड बॉय बैड बॉय’ के निर्माता सुभाष घई हैं। सुभाष घई की पिछली फिल्म ’36 चायना टाउन’ में तनुश्री ने एक आयटम सांग किया था और इस फिल्म में वह नायिका बनी हैं।तनुश्री को शायद इसीलिए चालाक या होशियार कहा जाता है, क्योंकि आयटम सांग करने के बाद उसी निर्माता या निर्देशक की अगली फिल्म में वे नायिका बना जाती हैं। ‘गुड बॉय बैड बॉय’ में वे टॉमबॉयनुमा गर्ल बनी हैं, जो हमेशा धमाल-मस्ती करती रहती हैं। इस फिल्म में तनुश्री के नायक तुषार कपूर हैं।‘रकीब’ में भी तनुश्री को अभिनय का अच्छा अवसर मिला है। राहुल खन्ना, जिमी शेरगिल और शरमन जोशी के बीच वे अकेली नायिका हैं। ‘रकीब’ एक मर्डर मिस्ट्री है और इसमें रहस्य और रोमांच जैसे सारे तत्व शामिल हैं।इस फिल्म का निर्माण राजकंवर ने किया है, जबकि निर्देशन अनुराग सिंह का है। इस फिल्म में तनुश्री निगेटिव्ह चरित्र निभा रही हैं। ऐसी भूमिका उसने पहले कभी नहीं निभाई है। इस भूमिका में उनके तीन अलग-अलग शेड हैं। तनुश्री का मानना है कि उसके प्रशंसक उसे एक अलग भूमिका में देख चौंक जाएँगे। तनुश्री के मुताबिक निर्देशक अनुराग सिंह की भले ही यह पहली फिल्म हो, लेकिन वे अत्यंत प्रतिभाशाली हैं और उनके काम को देखकर लगता ही नहीं कि यह उनकी पहली फिल्म है।इन फिल्मों के अलावा तनुश्री की ‘दस कहानियाँ’, ‘स्पीड’ और ‘मि. फ्रॉड’ जैसी फिल्में भी इसी वर्ष प्रदर्शित होने वाली हैं।
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Thursday, May 10, 2007
Welcome to Yahoo! Hindi
Welcome to Yahoo! Hindi: "पीएसएलवी-सी8 का प्रथम व्यावसायिक प्रक्षेपण"
पीएसएलवी-सी8 रॉकेट का प्रथम व्यावसायिक प्रक्षेपण सफलतापूर्वक संपन्न हो गया। प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने गुरुवार को राज्यसभा में सी0 रामचंद्रैया के प्रश्न के लिखित जवाब में यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि पीएसएलवी-सी8 रॉकेट ने सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र श्रीहरिकोटा से 23 अप्रैल 2007 को 352 किग्रा वजन वाले एजाइल नामक एक इतालवी वैज्ञानिक उपग्रह का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया है।चव्हाण के अनुसार प्रक्षेपण करार की कुल कीमत 7.38 मिलियन यूरो थी ओर पीएसएलवी-सी8 मिशन ने एजाइल नामक एक उपग्रह का प्रक्षेपण किया। तीन अन्य विदेशी उपग्रहों के लिए प्रक्षेपण करारों पर हस्ताक्षर किए गए हैं। उन्होंने बताया कि प्रारंभ में विश्व के व्यावसायिक उपग्रह प्रक्षेपण बाजार में लगभग दो प्रतिशत हिस्सेदारी प्राप्त करने का लक्ष्य है। चव्हाण ने सुरेंद्र लाठ के प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि चंद्रयान-1 अंतरिक्ष यान और वैज्ञानिक उपकरणों के विकास का कार्य 2008 के लिए निर्धारित प्रमोचन के अनुसार संतोषप्रद रूप में चल रहा है। गहन अंतरिक्ष नेटवर्क की स्थापना का कार्य योजनानुसार प्रगति में है। उन्होंने बताया कि इस समय चंद्रमा पर वेधशाला की स्थापना हेतु कोई खास योजना नहीं है। तथापि चंद्रयान-1 आवश्यकतानुसार बाद में ऐसे स्टेशन की स्थापना हेतु महत्वपूर्ण निवेश प्रदान करेगा।
(स्रोत - वेबदुनिया)
और भी...
•
समारोह के दौरान उठे विरोध के स्वर
•
दो दलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था हो : कलाम
•
शहीदों को राज्यसभा में दी गई श्रद्धांजलि
•
लोकसभा दिनभर के लिए स्थगित
•
आर्थिक सुधारों के बाद से बिगड़ी खेती
•
संसद में हंगामा, कार्यवाही बाधित
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पीएसएलवी-सी8 रॉकेट का प्रथम व्यावसायिक प्रक्षेपण सफलतापूर्वक संपन्न हो गया। प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने गुरुवार को राज्यसभा में सी0 रामचंद्रैया के प्रश्न के लिखित जवाब में यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि पीएसएलवी-सी8 रॉकेट ने सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र श्रीहरिकोटा से 23 अप्रैल 2007 को 352 किग्रा वजन वाले एजाइल नामक एक इतालवी वैज्ञानिक उपग्रह का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया है।चव्हाण के अनुसार प्रक्षेपण करार की कुल कीमत 7.38 मिलियन यूरो थी ओर पीएसएलवी-सी8 मिशन ने एजाइल नामक एक उपग्रह का प्रक्षेपण किया। तीन अन्य विदेशी उपग्रहों के लिए प्रक्षेपण करारों पर हस्ताक्षर किए गए हैं। उन्होंने बताया कि प्रारंभ में विश्व के व्यावसायिक उपग्रह प्रक्षेपण बाजार में लगभग दो प्रतिशत हिस्सेदारी प्राप्त करने का लक्ष्य है। चव्हाण ने सुरेंद्र लाठ के प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि चंद्रयान-1 अंतरिक्ष यान और वैज्ञानिक उपकरणों के विकास का कार्य 2008 के लिए निर्धारित प्रमोचन के अनुसार संतोषप्रद रूप में चल रहा है। गहन अंतरिक्ष नेटवर्क की स्थापना का कार्य योजनानुसार प्रगति में है। उन्होंने बताया कि इस समय चंद्रमा पर वेधशाला की स्थापना हेतु कोई खास योजना नहीं है। तथापि चंद्रयान-1 आवश्यकतानुसार बाद में ऐसे स्टेशन की स्थापना हेतु महत्वपूर्ण निवेश प्रदान करेगा।
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समारोह के दौरान उठे विरोध के स्वर
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दो दलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था हो : कलाम
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शहीदों को राज्यसभा में दी गई श्रद्धांजलि
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लोकसभा दिनभर के लिए स्थगित
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आर्थिक सुधारों के बाद से बिगड़ी खेती
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संसद में हंगामा, कार्यवाही बाधित
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Welcome to Yahoo! Hindi: "अच्छाई और बुराई के बीच उलझा स्पाइडरमैन"
Welcome to Yahoo! Hindi: "अच्छाई और बुराई के बीच उलझा स्पाइडरमैन"
निर्देशक : सैम रैमीसंगीत : क्रिस्टोफर यंग, डेनी इल्फमैनकलाकार : टॉबी मेग्युरी, करस्टेन डस्ट, थॉमस हेडन, जेम्स फ्रेंकोभारत में चमत्कारिक और देवीय शक्तियों से लैस किरदारों की कमी नहीं है। हॉलीवुड वालों के पास ऐसे गिने चुने किरदार ही हैं। मार्केटिंग की ताकत के जरिए उन्होंने अपने इन किरदारों को लगभग पूरी दुनिया में लोकप्रिय कर दिया है। स्पाइडरमैन भी उनमें से एक है जिसका तीसरा भाग फिल्म के रूप में प्रदर्शित हुआ है। इस फिल्म का निर्माण किशोर उम्र के दर्शकों के लिए किया गया है। स्पाइडरमैन के भाग एक और दो में फिल्म की कहानी बहुत सशक्त थी। तीन में हैरतअंगेज दृश्य है, मजबूत तकनीक है, लेकिन कहानी कमजोर है। सब कुछ बढि़या होने के बावजूद कहानी की कमी खटकती रहती है। इस फिल्म में कई पात्र निर्देशक ने डाल दिए हैं। हर खलनायक को विशेष शक्तियाँ प्राप्त हैं। शायद निर्देशक का मकसद ज्यादा से ज्यादा स्पेशल इफेक्ट दिखाना रहा हो। कहानी : स्पाइडरमैन को लगने लगता है कि अब न्यूयार्क में शांति है और सारी बुरी शक्तियाँ भाग गई हैं। लेकिन यह शांति ज्यादा दिन कायम नहीं रह पाती। फ्लिंट मार्को पुलिस से भागते हुए साइंटिफिक टेस्ट साइट में गिर जाता है। उसमें गिरते ही उसके टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं और उसका पुनर्निमाण एक रेत के पिंड के रूप में होता है। वह जबरदस्त शक्तिशाली बन जाता है और सेंडमेन के रूप में तबाही मचाता है। वह स्पाइडरमैन के अंकल का कातिल रहता है। इधर हैरी भी अपने पिता की मौत का बदला स्पाइडरमैन से लेने के लिए छटपटाता रहता है।बाहरी दुनिया से आए एक अजीबोगरीब जीव के कारण स्पाइडरमैन की पोशाक में परिवर्तन हो जाता है। इस पोशाक में उसे अच्छा तो लगता है लेकिन उसमें गुस्सा और घमण्ड जैसी भावनाएँ आ जाती हैं। वह अपने विशेष मानने लगता है। वह कभी अच्छा तो कभी बुरा व्यवहार करता है। गर्लफ्रेंड मेरी जान वाटसन से भी उसके रिश्ते अच्छे नहीं रहते। इन सारी मुसीबतों को वह फिल्म के अंत में सुलझा लेता है। अभिनय :टॉबी मेग्यूरी ने पीटर पार्कर और स्पाइडरमैन दोनों के किरदार बखूबी निभाए। स्पाइडरमैन की गर्लफ्रेंड करस्टेन डस्ट टॉबी की तुलना में अधिक उम्र वाली लगी। सेंडमेन बने थॉमस हेडन का अभिनय जबरदस्त है। उनका चेहरा और व्यक्तित्व उन्हें एकदम परफेक्ट विलेन बनाता है। जेम्स फ्रांको और टॉफर ग्रेस ने भी अच्छा साथ निभाया है। निर्देशन :सैम रैमी ने निर्देशन के साथ कहानी लिखने का जिम्मा भी अपने दो साथियों के साथ उठाया है। उन्होंने कई किरदारों और कहानियों को फिल्म में डाला जिससे मूलकथा पर असर हुआ है। अपने कलाकारों से वे अच्छा अभिनय करवाने में वे कामयाब रहे।अन्य पक्ष :फिल्म का तकनीकी पक्ष बेहद प्रभावशाली है। फोटोग्राफी, बैकग्राउण्ड म्यूजिक वर्ल्ड क्लास है। फिल्म के स्टंट पर जबरदस्त मेहनत की गई है। ये दृश्य दाँतों तले उंगली दबाने पर मजबूर करते हैं। इन दृश्यों को बड़ी कुशलता से फिल्माया गया है। फिल्म बनाने में खूब पैसा खर्च किया गया है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि यह फिल्म उनको पसंद आएगी जिन्होंने पहले दो भाग नहीं देखे हैं। साथ ही इस फिल्म में किशोर वर्ग को बाँधने की क्षमता है।
(स्रोत - वेबदुनिया)
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शाकालाका बूम बूम : बकवास और उबाऊ
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निर्देशक : सैम रैमीसंगीत : क्रिस्टोफर यंग, डेनी इल्फमैनकलाकार : टॉबी मेग्युरी, करस्टेन डस्ट, थॉमस हेडन, जेम्स फ्रेंकोभारत में चमत्कारिक और देवीय शक्तियों से लैस किरदारों की कमी नहीं है। हॉलीवुड वालों के पास ऐसे गिने चुने किरदार ही हैं। मार्केटिंग की ताकत के जरिए उन्होंने अपने इन किरदारों को लगभग पूरी दुनिया में लोकप्रिय कर दिया है। स्पाइडरमैन भी उनमें से एक है जिसका तीसरा भाग फिल्म के रूप में प्रदर्शित हुआ है। इस फिल्म का निर्माण किशोर उम्र के दर्शकों के लिए किया गया है। स्पाइडरमैन के भाग एक और दो में फिल्म की कहानी बहुत सशक्त थी। तीन में हैरतअंगेज दृश्य है, मजबूत तकनीक है, लेकिन कहानी कमजोर है। सब कुछ बढि़या होने के बावजूद कहानी की कमी खटकती रहती है। इस फिल्म में कई पात्र निर्देशक ने डाल दिए हैं। हर खलनायक को विशेष शक्तियाँ प्राप्त हैं। शायद निर्देशक का मकसद ज्यादा से ज्यादा स्पेशल इफेक्ट दिखाना रहा हो। कहानी : स्पाइडरमैन को लगने लगता है कि अब न्यूयार्क में शांति है और सारी बुरी शक्तियाँ भाग गई हैं। लेकिन यह शांति ज्यादा दिन कायम नहीं रह पाती। फ्लिंट मार्को पुलिस से भागते हुए साइंटिफिक टेस्ट साइट में गिर जाता है। उसमें गिरते ही उसके टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं और उसका पुनर्निमाण एक रेत के पिंड के रूप में होता है। वह जबरदस्त शक्तिशाली बन जाता है और सेंडमेन के रूप में तबाही मचाता है। वह स्पाइडरमैन के अंकल का कातिल रहता है। इधर हैरी भी अपने पिता की मौत का बदला स्पाइडरमैन से लेने के लिए छटपटाता रहता है।बाहरी दुनिया से आए एक अजीबोगरीब जीव के कारण स्पाइडरमैन की पोशाक में परिवर्तन हो जाता है। इस पोशाक में उसे अच्छा तो लगता है लेकिन उसमें गुस्सा और घमण्ड जैसी भावनाएँ आ जाती हैं। वह अपने विशेष मानने लगता है। वह कभी अच्छा तो कभी बुरा व्यवहार करता है। गर्लफ्रेंड मेरी जान वाटसन से भी उसके रिश्ते अच्छे नहीं रहते। इन सारी मुसीबतों को वह फिल्म के अंत में सुलझा लेता है। अभिनय :टॉबी मेग्यूरी ने पीटर पार्कर और स्पाइडरमैन दोनों के किरदार बखूबी निभाए। स्पाइडरमैन की गर्लफ्रेंड करस्टेन डस्ट टॉबी की तुलना में अधिक उम्र वाली लगी। सेंडमेन बने थॉमस हेडन का अभिनय जबरदस्त है। उनका चेहरा और व्यक्तित्व उन्हें एकदम परफेक्ट विलेन बनाता है। जेम्स फ्रांको और टॉफर ग्रेस ने भी अच्छा साथ निभाया है। निर्देशन :सैम रैमी ने निर्देशन के साथ कहानी लिखने का जिम्मा भी अपने दो साथियों के साथ उठाया है। उन्होंने कई किरदारों और कहानियों को फिल्म में डाला जिससे मूलकथा पर असर हुआ है। अपने कलाकारों से वे अच्छा अभिनय करवाने में वे कामयाब रहे।अन्य पक्ष :फिल्म का तकनीकी पक्ष बेहद प्रभावशाली है। फोटोग्राफी, बैकग्राउण्ड म्यूजिक वर्ल्ड क्लास है। फिल्म के स्टंट पर जबरदस्त मेहनत की गई है। ये दृश्य दाँतों तले उंगली दबाने पर मजबूर करते हैं। इन दृश्यों को बड़ी कुशलता से फिल्माया गया है। फिल्म बनाने में खूब पैसा खर्च किया गया है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि यह फिल्म उनको पसंद आएगी जिन्होंने पहले दो भाग नहीं देखे हैं। साथ ही इस फिल्म में किशोर वर्ग को बाँधने की क्षमता है।
(स्रोत - वेबदुनिया)
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ता रा रम पम
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फिर वही स्टोरी है
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लाइफ में कभी-कभी : गम ज्यादा, खुशी कम
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Tuesday, May 8, 2007
BBCHindi.com: "गिल्क्रिस्ट के नुस्ख़े पर श्रीलंका का एतराज़"
BBCHindi.com: "गिल्क्रिस्ट के नुस्ख़े पर श्रीलंका का एतराज़"
विश्व कप क्रिकेट के फ़ाइनल को अपने दम पर एकतरफा बनाने वाले एडम गिलक्रिस्ट का दस्तानों में स्कवैश की गेंद रखकर बल्लेबाज़ी करना श्रीलंका को हज़म नहीं हो रहा है.
यही वजह है कि श्रीलंका इस मामले की शिकायत अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) से करने का मन बना रहा है.
ऑस्ट्रेलिया के इस धाकड़ बल्लेबाज़ ने बारबाडोस में फ़ाइनल में तूफ़ानी अंदाज में खेलते हुए सिर्फ़ 104 गेंदों में ही 149 रन धुन डाले थे.
बल्ले पर अपनी पकड़ मज़बूत करने के लिए गिलक्रिस्ट ने नया नुस्ख़ा आज़माया था और दस्तानों में स्कवैश की गेंद रखी थी.
श्रीलंका के क्रिकेट अधिकारी अगले महीने होने वाली आईसीसी की बैठक में यह मसला उठाने का मन बना रहे हैं.
श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड के सचिव गंगाधरन माथीवानन ने कहा, "खेल की परंपरा और भावना के मद्देनजर ऐसा नहीं किया जाना चाहिए था. मैं नहीं मानता कि इससे उनके स्ट्रोकों में ज़्यादा ताक़त आई होगी, लेकिन निश्चित तौर पर बल्ले पर उनकी पकड़ तो मज़बूत हुई होगी."
मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि ये अवैध है. मेरे कहने का मतलब है कि खेल को अच्छी भावना से खेला जाना चाहिए. हम आईसीसी के सदस्यों को बताना चाहते हैं कि हम ऐसे कामों को मंजूरी नहीं देते
माथीवानन, सचिव, श्रीलंका क्रिकेट
उन्होंने कहा, ''मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि ये अवैध है. मेरे कहने का मतलब है कि खेल को अच्छी भावना से खेला जाना चाहिए. हम आईसीसी के सदस्यों को बताना चाहते हैं कि हम ऐसे कामों को मंजूरी नहीं देते."
तरक़ीब रंग लाई
फ़ाइनल से पहले गिलक्रिस्ट का विश्व कप में प्रदर्शन ठीक-ठाक ही रहा था और इससे पहले के दस मैचों में वह सिर्फ़ दो अर्धशतक ही लगा सके थे.
लेकिन अहम मुक़ाबले यानी फ़ाइनल में उनका बल्ला चमका और उनकी इस पारी की बदौलत ऑस्ट्रेलिया ने 53 रन से श्रीलंका को मात दी.
हालाँकि गिलक्रिस्ट ने स्कवैश की गेंद के इस्तेमाल को छिपाने की कोशिश भी नहीं की और शतक पूरा करने के बाद उन्होंने इशारा कर अपने साथी खिलाड़ियों को दस्तानों में रखी गेंद की अहमियत बताई.
दरअसल, विश्व कप के लिए रवाना होने से पहले पर्थ में गिलक्रिस्ट के बल्लेबाज़ी कोच बॉब मेयुलमैन ने उन्हें दस्तानों में स्कवैश की गेंद रखने की सलाह दी थी.
जब वो स्कवैश की गेंद के बिना खेल रहे थे तो अच्छी तरह नहीं खेल पा रहे थे, लेकिन गेंद रखने के बाद उनके शॉट्स गज़ब के थे
मेयुलमैन, कोच
फ़ाइनल के बाद एक ऑस्ट्रेलियाई अखबार को दिए इंटरव्यू में मेयुलमैन ने कहा कि दस्ताने में रखी गेंद ने बल्ले को हाथ में घूमने से रोका.
उन्होंने कहा, "मैं पिछले 10 साल से गिलक्रिस्ट के साथ हूँ. टीम के वेस्टइंडीज़ रवाना होने से पहले मैं स्कवैश सेंटर गया और हल्की सी टूटी स्कवैश की छह गेंद ले आया."
मेयुलमैन ने कहा, "विश्व कप के लिए रवाना होने से पहले गिलक्रिस्ट के दस्तानों के बीच स्कवैश की गेंद रखकर बल्लेबाज़ी का अभ्यास किया था. यकीन कीजिए कि जब वो स्कवैश की गेंद के बिना खेल रहे थे तो अच्छी तरह नहीं खेल पा रहे थे, लेकिन गेंद रखने के बाद उनके शॉट्स गज़ब के थे."
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विश्व कप क्रिकेट के फ़ाइनल को अपने दम पर एकतरफा बनाने वाले एडम गिलक्रिस्ट का दस्तानों में स्कवैश की गेंद रखकर बल्लेबाज़ी करना श्रीलंका को हज़म नहीं हो रहा है.
यही वजह है कि श्रीलंका इस मामले की शिकायत अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) से करने का मन बना रहा है.
ऑस्ट्रेलिया के इस धाकड़ बल्लेबाज़ ने बारबाडोस में फ़ाइनल में तूफ़ानी अंदाज में खेलते हुए सिर्फ़ 104 गेंदों में ही 149 रन धुन डाले थे.
बल्ले पर अपनी पकड़ मज़बूत करने के लिए गिलक्रिस्ट ने नया नुस्ख़ा आज़माया था और दस्तानों में स्कवैश की गेंद रखी थी.
श्रीलंका के क्रिकेट अधिकारी अगले महीने होने वाली आईसीसी की बैठक में यह मसला उठाने का मन बना रहे हैं.
श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड के सचिव गंगाधरन माथीवानन ने कहा, "खेल की परंपरा और भावना के मद्देनजर ऐसा नहीं किया जाना चाहिए था. मैं नहीं मानता कि इससे उनके स्ट्रोकों में ज़्यादा ताक़त आई होगी, लेकिन निश्चित तौर पर बल्ले पर उनकी पकड़ तो मज़बूत हुई होगी."
मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि ये अवैध है. मेरे कहने का मतलब है कि खेल को अच्छी भावना से खेला जाना चाहिए. हम आईसीसी के सदस्यों को बताना चाहते हैं कि हम ऐसे कामों को मंजूरी नहीं देते
माथीवानन, सचिव, श्रीलंका क्रिकेट
उन्होंने कहा, ''मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि ये अवैध है. मेरे कहने का मतलब है कि खेल को अच्छी भावना से खेला जाना चाहिए. हम आईसीसी के सदस्यों को बताना चाहते हैं कि हम ऐसे कामों को मंजूरी नहीं देते."
तरक़ीब रंग लाई
फ़ाइनल से पहले गिलक्रिस्ट का विश्व कप में प्रदर्शन ठीक-ठाक ही रहा था और इससे पहले के दस मैचों में वह सिर्फ़ दो अर्धशतक ही लगा सके थे.
लेकिन अहम मुक़ाबले यानी फ़ाइनल में उनका बल्ला चमका और उनकी इस पारी की बदौलत ऑस्ट्रेलिया ने 53 रन से श्रीलंका को मात दी.
हालाँकि गिलक्रिस्ट ने स्कवैश की गेंद के इस्तेमाल को छिपाने की कोशिश भी नहीं की और शतक पूरा करने के बाद उन्होंने इशारा कर अपने साथी खिलाड़ियों को दस्तानों में रखी गेंद की अहमियत बताई.
दरअसल, विश्व कप के लिए रवाना होने से पहले पर्थ में गिलक्रिस्ट के बल्लेबाज़ी कोच बॉब मेयुलमैन ने उन्हें दस्तानों में स्कवैश की गेंद रखने की सलाह दी थी.
जब वो स्कवैश की गेंद के बिना खेल रहे थे तो अच्छी तरह नहीं खेल पा रहे थे, लेकिन गेंद रखने के बाद उनके शॉट्स गज़ब के थे
मेयुलमैन, कोच
फ़ाइनल के बाद एक ऑस्ट्रेलियाई अखबार को दिए इंटरव्यू में मेयुलमैन ने कहा कि दस्ताने में रखी गेंद ने बल्ले को हाथ में घूमने से रोका.
उन्होंने कहा, "मैं पिछले 10 साल से गिलक्रिस्ट के साथ हूँ. टीम के वेस्टइंडीज़ रवाना होने से पहले मैं स्कवैश सेंटर गया और हल्की सी टूटी स्कवैश की छह गेंद ले आया."
मेयुलमैन ने कहा, "विश्व कप के लिए रवाना होने से पहले गिलक्रिस्ट के दस्तानों के बीच स्कवैश की गेंद रखकर बल्लेबाज़ी का अभ्यास किया था. यकीन कीजिए कि जब वो स्कवैश की गेंद के बिना खेल रहे थे तो अच्छी तरह नहीं खेल पा रहे थे, लेकिन गेंद रखने के बाद उनके शॉट्स गज़ब के थे."
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Monday, May 7, 2007
Welcome to Yahoo! Hindi: "अच्छाई और बुराई के बीच उलझा स्पाइडरमैन"
Welcome to Yahoo! Hindi: "अच्छाई और बुराई के बीच उलझा स्पाइडरमैन"
अच्छाई और बुराई के बीच उलझा स्पाइडरमैन
- समय ताम्रकर
निर्देशक : सैम रैमीसंगीत : क्रिस्टोफर यंग, डेनी इल्फमैनकलाकार : टॉबी मेग्युरी, करस्टेन डस्ट, थॉमस हेडन, जेम्स फ्रेंकोभारत में चमत्कारिक और देवीय शक्तियों से लैस किरदारों की कमी नहीं है। हॉलीवुड वालों के पास ऐसे गिने चुने किरदार ही हैं। मार्केटिंग की ताकत के जरिए उन्होंने अपने इन किरदारों को लगभग पूरी दुनिया में लोकप्रिय कर दिया है। स्पाइडरमैन भी उनमें से एक है जिसका तीसरा भाग फिल्म के रूप में प्रदर्शित हुआ है। इस फिल्म का निर्माण किशोर उम्र के दर्शकों के लिए किया गया है। स्पाइडरमैन के भाग एक और दो में फिल्म की कहानी बहुत सशक्त थी। तीन में हैरतअंगेज दृश्य है, मजबूत तकनीक है, लेकिन कहानी कमजोर है। सब कुछ बढि़या होने के बावजूद कहानी की कमी खटकती रहती है। इस फिल्म में कई पात्र निर्देशक ने डाल दिए हैं। हर खलनायक को विशेष शक्तियाँ प्राप्त हैं। शायद निर्देशक का मकसद ज्यादा से ज्यादा स्पेशल इफेक्ट दिखाना रहा हो। कहानी : स्पाइडरमैन को लगने लगता है कि अब न्यूयार्क में शांति है और सारी बुरी शक्तियाँ भाग गई हैं। लेकिन यह शांति ज्यादा दिन कायम नहीं रह पाती। फ्लिंट मार्को पुलिस से भागते हुए साइंटिफिक टेस्ट साइट में गिर जाता है। उसमें गिरते ही उसके टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं और उसका पुनर्निमाण एक रेत के पिंड के रूप में होता है। वह जबरदस्त शक्तिशाली बन जाता है और सेंडमेन के रूप में तबाही मचाता है। वह स्पाइडरमैन के अंकल का कातिल रहता है। इधर हैरी भी अपने पिता की मौत का बदला स्पाइडरमैन से लेने के लिए छटपटाता रहता है।बाहरी दुनिया से आए एक अजीबोगरीब जीव के कारण स्पाइडरमैन की पोशाक में परिवर्तन हो जाता है। इस पोशाक में उसे अच्छा तो लगता है लेकिन उसमें गुस्सा और घमण्ड जैसी भावनाएँ आ जाती हैं। वह अपने विशेष मानने लगता है। वह कभी अच्छा तो कभी बुरा व्यवहार करता है। गर्लफ्रेंड मेरी जान वाटसन से भी उसके रिश्ते अच्छे नहीं रहते। इन सारी मुसीबतों को वह फिल्म के अंत में सुलझा लेता है। अभिनय :टॉबी मेग्यूरी ने पीटर पार्कर और स्पाइडरमैन दोनों के किरदार बखूबी निभाए। स्पाइडरमैन की गर्लफ्रेंड करस्टेन डस्ट टॉबी की तुलना में अधिक उम्र वाली लगी। सेंडमेन बने थॉमस हेडन का अभिनय जबरदस्त है। उनका चेहरा और व्यक्तित्व उन्हें एकदम परफेक्ट विलेन बनाता है। जेम्स फ्रांको और टॉफर ग्रेस ने भी अच्छा साथ निभाया है। निर्देशन :सैम रैमी ने निर्देशन के साथ कहानी लिखने का जिम्मा भी अपने दो साथियों के साथ उठाया है। उन्होंने कई किरदारों और कहानियों को फिल्म में डाला जिससे मूलकथा पर असर हुआ है। अपने कलाकारों से वे अच्छा अभिनय करवाने में वे कामयाब रहे।अन्य पक्ष :फिल्म का तकनीकी पक्ष बेहद प्रभावशाली है। फोटोग्राफी, बैकग्राउण्ड म्यूजिक वर्ल्ड क्लास है। फिल्म के स्टंट पर जबरदस्त मेहनत की गई है। ये दृश्य दाँतों तले उंगली दबाने पर मजबूर करते हैं। इन दृश्यों को बड़ी कुशलता से फिल्माया गया है। फिल्म बनाने में खूब पैसा खर्च किया गया है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि यह फिल्म उनको पसंद आएगी जिन्होंने पहले दो भाग नहीं देखे हैं। साथ ही इस फिल्म में किशोर वर्ग को बाँधने की क्षमता है।
(स्रोत - वेबदुनिया)
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अनुराग बसु ‘लाइफ इन ए मेट्रो’ लेकर हाजिर हो रहे हैं। जैसा कि नाम से जाहिर है इसकी कहानी...
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अच्छाई और बुराई के बीच उलझा स्पाइडरमैन
- समय ताम्रकर
निर्देशक : सैम रैमीसंगीत : क्रिस्टोफर यंग, डेनी इल्फमैनकलाकार : टॉबी मेग्युरी, करस्टेन डस्ट, थॉमस हेडन, जेम्स फ्रेंकोभारत में चमत्कारिक और देवीय शक्तियों से लैस किरदारों की कमी नहीं है। हॉलीवुड वालों के पास ऐसे गिने चुने किरदार ही हैं। मार्केटिंग की ताकत के जरिए उन्होंने अपने इन किरदारों को लगभग पूरी दुनिया में लोकप्रिय कर दिया है। स्पाइडरमैन भी उनमें से एक है जिसका तीसरा भाग फिल्म के रूप में प्रदर्शित हुआ है। इस फिल्म का निर्माण किशोर उम्र के दर्शकों के लिए किया गया है। स्पाइडरमैन के भाग एक और दो में फिल्म की कहानी बहुत सशक्त थी। तीन में हैरतअंगेज दृश्य है, मजबूत तकनीक है, लेकिन कहानी कमजोर है। सब कुछ बढि़या होने के बावजूद कहानी की कमी खटकती रहती है। इस फिल्म में कई पात्र निर्देशक ने डाल दिए हैं। हर खलनायक को विशेष शक्तियाँ प्राप्त हैं। शायद निर्देशक का मकसद ज्यादा से ज्यादा स्पेशल इफेक्ट दिखाना रहा हो। कहानी : स्पाइडरमैन को लगने लगता है कि अब न्यूयार्क में शांति है और सारी बुरी शक्तियाँ भाग गई हैं। लेकिन यह शांति ज्यादा दिन कायम नहीं रह पाती। फ्लिंट मार्को पुलिस से भागते हुए साइंटिफिक टेस्ट साइट में गिर जाता है। उसमें गिरते ही उसके टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं और उसका पुनर्निमाण एक रेत के पिंड के रूप में होता है। वह जबरदस्त शक्तिशाली बन जाता है और सेंडमेन के रूप में तबाही मचाता है। वह स्पाइडरमैन के अंकल का कातिल रहता है। इधर हैरी भी अपने पिता की मौत का बदला स्पाइडरमैन से लेने के लिए छटपटाता रहता है।बाहरी दुनिया से आए एक अजीबोगरीब जीव के कारण स्पाइडरमैन की पोशाक में परिवर्तन हो जाता है। इस पोशाक में उसे अच्छा तो लगता है लेकिन उसमें गुस्सा और घमण्ड जैसी भावनाएँ आ जाती हैं। वह अपने विशेष मानने लगता है। वह कभी अच्छा तो कभी बुरा व्यवहार करता है। गर्लफ्रेंड मेरी जान वाटसन से भी उसके रिश्ते अच्छे नहीं रहते। इन सारी मुसीबतों को वह फिल्म के अंत में सुलझा लेता है। अभिनय :टॉबी मेग्यूरी ने पीटर पार्कर और स्पाइडरमैन दोनों के किरदार बखूबी निभाए। स्पाइडरमैन की गर्लफ्रेंड करस्टेन डस्ट टॉबी की तुलना में अधिक उम्र वाली लगी। सेंडमेन बने थॉमस हेडन का अभिनय जबरदस्त है। उनका चेहरा और व्यक्तित्व उन्हें एकदम परफेक्ट विलेन बनाता है। जेम्स फ्रांको और टॉफर ग्रेस ने भी अच्छा साथ निभाया है। निर्देशन :सैम रैमी ने निर्देशन के साथ कहानी लिखने का जिम्मा भी अपने दो साथियों के साथ उठाया है। उन्होंने कई किरदारों और कहानियों को फिल्म में डाला जिससे मूलकथा पर असर हुआ है। अपने कलाकारों से वे अच्छा अभिनय करवाने में वे कामयाब रहे।अन्य पक्ष :फिल्म का तकनीकी पक्ष बेहद प्रभावशाली है। फोटोग्राफी, बैकग्राउण्ड म्यूजिक वर्ल्ड क्लास है। फिल्म के स्टंट पर जबरदस्त मेहनत की गई है। ये दृश्य दाँतों तले उंगली दबाने पर मजबूर करते हैं। इन दृश्यों को बड़ी कुशलता से फिल्माया गया है। फिल्म बनाने में खूब पैसा खर्च किया गया है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि यह फिल्म उनको पसंद आएगी जिन्होंने पहले दो भाग नहीं देखे हैं। साथ ही इस फिल्म में किशोर वर्ग को बाँधने की क्षमता है।
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Sunday, May 6, 2007
BBCHindi.com
BBCHindi.com: "स्पाइडरमैन-3 ने तोड़े सभी रिकॉर्ड"
आकलनों के मुताबिक स्पाइडरमैन-3 बॉक्स ऑफ़िस इतिहास में सबसे सफल फ़िल्म बन गई है.
सोनी का कहना है कि उत्तरी अमरीका में फ़िल्म ने पहले सप्ताह में ही 14.80 करोड़ डॉलर का कारोबार किया.
इसने पाइरेट्स ऑफ़ कैरेबियन के दूसरे भाग डेड मैन्स चेस्ट 13.6 करोड़ डॉलर के रिकॉर्ड को तोड़ दिया है.
अब तक केवल सात फ़िल्में ही पहले सप्ताह में 10 करोड़ डॉलर की कमाई करने में सफल रही हैं.
हालांकि माना जा रहा है कि आगामी सप्ताह में स्पाइडरमैन पर दबाव बढ़ जाएगा क्योंकि पाइरेट्स ऑफ़ कैरेबियन का तीसरा भाग रिलीज़ होने जा रहा है.
स्पाइडरमैन-3 ब्रिटेन और एशिया में भी शुक्रवार को रिलीज़ हुई और फ़िल्म सभी जगह रिकॉर्ड बना रही है.
स्पाइडरमैन सिरीज़ की पिछली दो फ़िल्में भी बेहद सफल रही थीं.
स्पाइडरमैन-थ्री फ़िल्म में टोबी मैग्वायर और कर्स्टन डंस्ट मुख्य भूमिका में हैं.
हालांकि स्पाइडरमैन के चहेते दर्शकों ने इसे हाथों हाथ लिया है लेकिन इसे कड़ी आलोचना का भी सामना करना पड़ रहा है.
वाशिंगटन पोस्ट का कहना है कि फ़िल्म 'बेकार' है जबकि न्यूयॉर्क पोस्ट ने इसे 'बेहद लंबी और जटिल' करार दिया है.
इससे पहले इस सिरीज़ की पिछली दो फ़िल्मों ने दुनियाभर में क़रीब एक अरब 60 करोड़ डॉलर की कमाई की थी.
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आकलनों के मुताबिक स्पाइडरमैन-3 बॉक्स ऑफ़िस इतिहास में सबसे सफल फ़िल्म बन गई है.
सोनी का कहना है कि उत्तरी अमरीका में फ़िल्म ने पहले सप्ताह में ही 14.80 करोड़ डॉलर का कारोबार किया.
इसने पाइरेट्स ऑफ़ कैरेबियन के दूसरे भाग डेड मैन्स चेस्ट 13.6 करोड़ डॉलर के रिकॉर्ड को तोड़ दिया है.
अब तक केवल सात फ़िल्में ही पहले सप्ताह में 10 करोड़ डॉलर की कमाई करने में सफल रही हैं.
हालांकि माना जा रहा है कि आगामी सप्ताह में स्पाइडरमैन पर दबाव बढ़ जाएगा क्योंकि पाइरेट्स ऑफ़ कैरेबियन का तीसरा भाग रिलीज़ होने जा रहा है.
स्पाइडरमैन-3 ब्रिटेन और एशिया में भी शुक्रवार को रिलीज़ हुई और फ़िल्म सभी जगह रिकॉर्ड बना रही है.
स्पाइडरमैन सिरीज़ की पिछली दो फ़िल्में भी बेहद सफल रही थीं.
स्पाइडरमैन-थ्री फ़िल्म में टोबी मैग्वायर और कर्स्टन डंस्ट मुख्य भूमिका में हैं.
हालांकि स्पाइडरमैन के चहेते दर्शकों ने इसे हाथों हाथ लिया है लेकिन इसे कड़ी आलोचना का भी सामना करना पड़ रहा है.
वाशिंगटन पोस्ट का कहना है कि फ़िल्म 'बेकार' है जबकि न्यूयॉर्क पोस्ट ने इसे 'बेहद लंबी और जटिल' करार दिया है.
इससे पहले इस सिरीज़ की पिछली दो फ़िल्मों ने दुनियाभर में क़रीब एक अरब 60 करोड़ डॉलर की कमाई की थी.
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BBCHindi.com: "ऐसी दीवानगी....देखी है कभी"
कहते हैं जनता की याद्दाश्त बहुत कमज़ोर होती है. क्योंकि भूलने में वे उस्ताद होते हैं. भारतीय टीम जब विश्व कप क्रिकेट के शुरुआती दौर से ही बाहर हो गई थी, तो जनता की नज़रों में क्रिकेटर ज़ीरो हो गए थे और उनके पोस्टर जलाए जा रहे थे.
लेकिन लगता है क़रीब एक महीने बाद ही विश्व कप की हार अब इतिहास की बात बन चुकी है. महेंद्र सिंह धोनी जैसे खिलाड़ी, जिनके बल्ले से विश्व कप में रन तक नहीं निकल रहे थे, उनका जलवा अभी भी क़ायम है.
इसका एहसास हुआ कोलकाता में जहाँ भारतीय टीम बांग्लादेश दौरे से पहले अभ्यास कर रही थी. अभ्यास सत्र के आख़िरी दिन रविवार को धोनी जब टीम बस से होटल के लिए रवाना हो रहे ते, तो बड़ी संख्या में टीम के प्रशंसक मौजूद थे.
बस पर चढ़ने से पहले वे प्रशंसकों को ऑटोग्रॉफ़ देने के लिए रुके. इतने में उनकी दीवानी एक लड़की ने सुरक्षा घेरा तोड़ते हुए धोनी को बाँहों में भर लिया.
'आई लव यू धोनी'
धोनी सकते में तो थे ही उनके आसपास खड़े सुरक्षाकर्मी भी देखते रह गए. लेकिन मीडिया की मौजूदगी में अपने हीरो धोनी को गले लगाने से गदगद मुर्शिदाबाद की हसीना नसरीब शियूली के आँसू नहीं थम रहे थे.
बाद में पता चला की धोनी की दीवानी हसीना अपनी दोस्त स्वीटी के साथ दो मई से ही ईडन गार्डन का चक्कर लगा रही थी. उनके हाथ में धोनी के लिए आई लव यू का पोस्टर भी होता था.
लेकिन उन्हें धोनी को बाँहों में भरने का मौक़ा मिला रविवार को. एक पल के लिए सकते में आ गए सुरक्षाकर्मियों ने हसीना को खींचकर उन्हें वहाँ से हटाया.
लेकिन धोनी की दीवानगी में पागल हसीना लगातार धोनी.....धोनी चिल्लाती रहीं. रोते-रोते उन्होंने पत्रकारों को बताया कि वे यहाँ सिर्फ़ धोनी को ही देखने आई थी. होटल के लिए रवाना हो रही बस में बैठे धोनी की तरह हाथ हिलाते-हिलाते हसीना ने बताया कि यह उनके जीवन का यादगार लम्हा है.
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कहते हैं जनता की याद्दाश्त बहुत कमज़ोर होती है. क्योंकि भूलने में वे उस्ताद होते हैं. भारतीय टीम जब विश्व कप क्रिकेट के शुरुआती दौर से ही बाहर हो गई थी, तो जनता की नज़रों में क्रिकेटर ज़ीरो हो गए थे और उनके पोस्टर जलाए जा रहे थे.
लेकिन लगता है क़रीब एक महीने बाद ही विश्व कप की हार अब इतिहास की बात बन चुकी है. महेंद्र सिंह धोनी जैसे खिलाड़ी, जिनके बल्ले से विश्व कप में रन तक नहीं निकल रहे थे, उनका जलवा अभी भी क़ायम है.
इसका एहसास हुआ कोलकाता में जहाँ भारतीय टीम बांग्लादेश दौरे से पहले अभ्यास कर रही थी. अभ्यास सत्र के आख़िरी दिन रविवार को धोनी जब टीम बस से होटल के लिए रवाना हो रहे ते, तो बड़ी संख्या में टीम के प्रशंसक मौजूद थे.
बस पर चढ़ने से पहले वे प्रशंसकों को ऑटोग्रॉफ़ देने के लिए रुके. इतने में उनकी दीवानी एक लड़की ने सुरक्षा घेरा तोड़ते हुए धोनी को बाँहों में भर लिया.
'आई लव यू धोनी'
धोनी सकते में तो थे ही उनके आसपास खड़े सुरक्षाकर्मी भी देखते रह गए. लेकिन मीडिया की मौजूदगी में अपने हीरो धोनी को गले लगाने से गदगद मुर्शिदाबाद की हसीना नसरीब शियूली के आँसू नहीं थम रहे थे.
बाद में पता चला की धोनी की दीवानी हसीना अपनी दोस्त स्वीटी के साथ दो मई से ही ईडन गार्डन का चक्कर लगा रही थी. उनके हाथ में धोनी के लिए आई लव यू का पोस्टर भी होता था.
लेकिन उन्हें धोनी को बाँहों में भरने का मौक़ा मिला रविवार को. एक पल के लिए सकते में आ गए सुरक्षाकर्मियों ने हसीना को खींचकर उन्हें वहाँ से हटाया.
लेकिन धोनी की दीवानगी में पागल हसीना लगातार धोनी.....धोनी चिल्लाती रहीं. रोते-रोते उन्होंने पत्रकारों को बताया कि वे यहाँ सिर्फ़ धोनी को ही देखने आई थी. होटल के लिए रवाना हो रही बस में बैठे धोनी की तरह हाथ हिलाते-हिलाते हसीना ने बताया कि यह उनके जीवन का यादगार लम्हा है.
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Friday, May 4, 2007
BBCHindi.com: "मकड़ी के ज़हर से सेक्स में बेहतरी!"
BBCHindi.com: "मकड़ी के ज़हर से सेक्स में बेहतरी!"
ब्राज़ीली और अमरीकी वैज्ञानिक इस संभावना पर शोध कर रहे हैं कि क्या मकड़ी के ज़हर को पुरुषों की नपुंसकता दूर करने के लिए इलाज के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है.
इन वैज्ञानिकों ने इस संभावना पर दो साल पहले तब शोध करना शुरू किया जब इस तरह की ख़बरें आईं कि एक व्यक्ति को जब मकड़ी ने काट लिया था तो उसे काफ़ी लंबी अवधि तक लेकिन दर्द भरी उत्तेजना हुई थी.
दो साल के शोध में पाया गया है कि मकड़ी के ज़हर या तरल पदार्थ में Tx2-6 नामक रसायन पाया जाता है जो पुरुषों में उत्तेजना बढ़ाता है.
अमरीका के जियोर्जिया कॉलेज में हुए इस शोध के पूरे नतीजे एक महीने में आने की संभावना जताई जा रही है.
इस पदार्थ को पुरुषों में आज़माने से पहले अमरीका में अभी इस क्षेत्र में और ज़्यादा शोध किए जा रहे हैं.
फिलहाल कुछ पशुओं पर इसे आज़माया गया जो काफ़ी सफल रहा यानी पशुओं में इसके प्रयोग से यौन उत्तेजना में बढ़ोत्तरी देखी गई.
कहा जाता है कि ब्राज़ील में पाई जाने वाली मकड़ी बहुत ज़हरीली होती है और कुछ मामलों में तो इसका ज़हर जानलेवा साबित हो सकता है.
ब्राज़ीली और अमरीकी शोधकर्ताओं ने कुछ ऐसे लोगों से पूछताछ की जिन्होंने दावा किया था कि मकड़ी के काटे जाने के बाद उनके यौन जीवन में काफ़ी सुधार आया था.
अभी तक तो वैज्ञानिकों का मानना है कि यौन उत्तेजना बढ़ाने के लिए फिलहाल बाज़ार में उपलब्ध वियाग्रा जैसी दवाइयों को अगर मकड़ी के तरल पदार्थ में मिलाकर इस्तेमाल किया जाए तो शायद और बेहतर परिणाम मिल सकते हैं.
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ब्राज़ीली और अमरीकी वैज्ञानिक इस संभावना पर शोध कर रहे हैं कि क्या मकड़ी के ज़हर को पुरुषों की नपुंसकता दूर करने के लिए इलाज के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है.
इन वैज्ञानिकों ने इस संभावना पर दो साल पहले तब शोध करना शुरू किया जब इस तरह की ख़बरें आईं कि एक व्यक्ति को जब मकड़ी ने काट लिया था तो उसे काफ़ी लंबी अवधि तक लेकिन दर्द भरी उत्तेजना हुई थी.
दो साल के शोध में पाया गया है कि मकड़ी के ज़हर या तरल पदार्थ में Tx2-6 नामक रसायन पाया जाता है जो पुरुषों में उत्तेजना बढ़ाता है.
अमरीका के जियोर्जिया कॉलेज में हुए इस शोध के पूरे नतीजे एक महीने में आने की संभावना जताई जा रही है.
इस पदार्थ को पुरुषों में आज़माने से पहले अमरीका में अभी इस क्षेत्र में और ज़्यादा शोध किए जा रहे हैं.
फिलहाल कुछ पशुओं पर इसे आज़माया गया जो काफ़ी सफल रहा यानी पशुओं में इसके प्रयोग से यौन उत्तेजना में बढ़ोत्तरी देखी गई.
कहा जाता है कि ब्राज़ील में पाई जाने वाली मकड़ी बहुत ज़हरीली होती है और कुछ मामलों में तो इसका ज़हर जानलेवा साबित हो सकता है.
ब्राज़ीली और अमरीकी शोधकर्ताओं ने कुछ ऐसे लोगों से पूछताछ की जिन्होंने दावा किया था कि मकड़ी के काटे जाने के बाद उनके यौन जीवन में काफ़ी सुधार आया था.
अभी तक तो वैज्ञानिकों का मानना है कि यौन उत्तेजना बढ़ाने के लिए फिलहाल बाज़ार में उपलब्ध वियाग्रा जैसी दवाइयों को अगर मकड़ी के तरल पदार्थ में मिलाकर इस्तेमाल किया जाए तो शायद और बेहतर परिणाम मिल सकते हैं.
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Thursday, May 3, 2007
Welcome to Yahoo! Hindi: "बॉम्बे टू गोवा : अनोखा सफर"
Welcome to Yahoo! Hindi: "बॉम्बे टू गोवा : अनोखा सफर"
बॉम्बे टू गोवा : अनोखा सफर
निर्माता : हुमायूँ रंगीलानिर्देशक : राज पेंडुरकरसंगीत : नितिन शंकरकलाकार : सुनील पाल, एहसान कुरैशी, राजू श्रीवास्तव, विजय राज, टीनू आनंदजिंदगी में कई लोग ऐसे होते हैं जो काम करने के बजाय सिर्फ सपने देखना पसंद करते हैं। वे चाहते हैं कि कुछ ऐसा चमत्कार हो जाए कि वे पलक झपकते ही अमीर बन जाएँ। ‘बाम्बे टू गोवा’ में भी ऐसे दो शख्स हैं। जिनके नाम है लाल (सुनील पाल) और दास (विजय राज)। दास बस ड्रायवर है, लेकिन उसकी नौकरी छूट जाती है। वहीं लाल नए-नए धंधे शुरू करता रहता है लेकिन सिर्फ सपनों में। उसके यार-दोस्त उसे समझाते हैं कि हर धंधे की शुरुआत छोटी होती है परंतु उनकी समझ में कुछ नहीं आता है। लाल की किस्मत एक दिन चमक उठती है। वह एक प्रतियोगिता में दो लाख रुपयों का इनाम जीत जाता है। दो लाख रूपए पाते ही दोनों दोस्त सोचने लग जाते हैं कि कौन सा व्यापार शुरू किया जाए। दास ट्रेवल एजेंसी शुरू करने की सोचता है। यह आइडिया लाल को भी जम जाता है। परंतु दो लाख रूपयों में बस खरीदना तो दूर कार भी नहीं आती है। दोनों चोर बाजार से पुरानी और खटारा कारों के पुर्जे खरीदकर बस बनाने की सोचते हैं। लाल दास को बस बनाने का जिम्मा दे देता है और खुद सवारी लाने की जिम्मेदारी उठाता है। दास बस बनाकर जब सवारियों के सामने लाता है तो इस अजीबोगरीब बस को देखकर सब लोग अपने पैसे वापस माँगने लगते हैं। दोनों किसी तरह स्थिति को संभालते हैं और सफर की शुरूआत होती है। फिल्म में ढेर सारे नए-पुराने हास्य कलाकार है जो हर पल दर्शकों को हँसाने की कोशिश करते हैं।
(स्रोत - वेबदुनिया)
और भी...
•
द ट्रेन- सम लाइन्स शुड नेवर बी क्रॉस्ड
•
दिल, दोस्ती एटसेट्रा : युवा पीढ़ी का आईना
•
चीनी कम : बेमेल जोड़ी
•
लाइफ इन ए मेट्रो : रिश्तों की दास्तां
•
'प्रोवोक्ड'
•
'अपने'-त्याग की कहानी
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बॉम्बे टू गोवा : अनोखा सफर
निर्माता : हुमायूँ रंगीलानिर्देशक : राज पेंडुरकरसंगीत : नितिन शंकरकलाकार : सुनील पाल, एहसान कुरैशी, राजू श्रीवास्तव, विजय राज, टीनू आनंदजिंदगी में कई लोग ऐसे होते हैं जो काम करने के बजाय सिर्फ सपने देखना पसंद करते हैं। वे चाहते हैं कि कुछ ऐसा चमत्कार हो जाए कि वे पलक झपकते ही अमीर बन जाएँ। ‘बाम्बे टू गोवा’ में भी ऐसे दो शख्स हैं। जिनके नाम है लाल (सुनील पाल) और दास (विजय राज)। दास बस ड्रायवर है, लेकिन उसकी नौकरी छूट जाती है। वहीं लाल नए-नए धंधे शुरू करता रहता है लेकिन सिर्फ सपनों में। उसके यार-दोस्त उसे समझाते हैं कि हर धंधे की शुरुआत छोटी होती है परंतु उनकी समझ में कुछ नहीं आता है। लाल की किस्मत एक दिन चमक उठती है। वह एक प्रतियोगिता में दो लाख रुपयों का इनाम जीत जाता है। दो लाख रूपए पाते ही दोनों दोस्त सोचने लग जाते हैं कि कौन सा व्यापार शुरू किया जाए। दास ट्रेवल एजेंसी शुरू करने की सोचता है। यह आइडिया लाल को भी जम जाता है। परंतु दो लाख रूपयों में बस खरीदना तो दूर कार भी नहीं आती है। दोनों चोर बाजार से पुरानी और खटारा कारों के पुर्जे खरीदकर बस बनाने की सोचते हैं। लाल दास को बस बनाने का जिम्मा दे देता है और खुद सवारी लाने की जिम्मेदारी उठाता है। दास बस बनाकर जब सवारियों के सामने लाता है तो इस अजीबोगरीब बस को देखकर सब लोग अपने पैसे वापस माँगने लगते हैं। दोनों किसी तरह स्थिति को संभालते हैं और सफर की शुरूआत होती है। फिल्म में ढेर सारे नए-पुराने हास्य कलाकार है जो हर पल दर्शकों को हँसाने की कोशिश करते हैं।
(स्रोत - वेबदुनिया)
और भी...
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द ट्रेन- सम लाइन्स शुड नेवर बी क्रॉस्ड
•
दिल, दोस्ती एटसेट्रा : युवा पीढ़ी का आईना
•
चीनी कम : बेमेल जोड़ी
•
लाइफ इन ए मेट्रो : रिश्तों की दास्तां
•
'प्रोवोक्ड'
•
'अपने'-त्याग की कहानी
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Wednesday, May 2, 2007
Welcome to Yahoo! Hindi: "जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि"
Welcome to Yahoo! Hindi: "जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि"
जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि
- प्रस्तुति- किरण नलवाया
दृष्टि के बदलते ही सृष्टि बदल जाती है, क्योंकि दृष्टि का परिवर्तन मौलिक परिवर्तन है। अतः दृष्टि को बदलें सृष्टि को नहीं, दृष्टि का परिवर्तन संभव है, सृष्टि का नहीं। दृष्टि को बदला जा सकता है, सृष्टि को नहीं। हाँ, इतना जरूर है कि दृष्टि के परिवर्तन में सृष्टिभी बदल जाती है। इसलिए तो सम्यकदृष्टि की दृष्टि में सभी कुछ सत्य होता है और मिथ्या दृष्टि बुराइयों को देखता है। अच्छाइयाँ और बुराइयाँ हमारी दृष्टि पर आधारित हैं। दृष्टि दो प्रकार की होती है। एक गुणग्राही और दूसरी छिन्द्रान्वेषी दृष्टि। गुणग्राही व्यक्ति खूबियों को और छिन्द्रान्वेषी खामियों को देखता है। गुणग्राही कोयल को देखता है तो कहता है कि कितना प्यारा बोलती है और छिन्द्रान्वेषी देखता है तो कहता है कि कितनी बदसूरत दिखती है। गुणग्राही मोर को देखता है तो कहता है कि कितना सुंदर है और छिन्द्रान्वेषी देखता है तो कहता है कि कितनी भद्दी आवाज है, कितने रुखे पैर हैं। गुणग्राही गुलाब के पौधे को देखता है तो कहता है कि कैसा अद्भुत सौंदर्य है। कितने सुंदर फूल खिले हैं और छिन्द्रान्वेषी देखता है तो कहता है कि कितने तीखे काँटे हैं। इस पौधे में मात्र दृष्टि का फर्क है। जो गुणों को देखता है वह बुराइयों को नहीं देखता है। कबीर ने बहुत कोशिश की बुरे आदमी को खोजने की। गली-गली, गाँव-गाँव खोजते रहे परंतु उन्हें कोई बुरा आदमी न मिला। मालूम है क्यों? क्योंकि कबीर भले आदमी थे। भले आदमी को बुरा आदमी कैसे मिल सकता है? कबीर ने कहा- बुरा जो खोजन मैं चला, बुरा न मिलिया कोई, जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
(स्रोत - वेबदुनिया)
1
2
और भी...
•
श्रीराम और सेवक सम्मान की परंपरा
•
परंपरा में मूल रस-तत्व ढूँढें
•
जो जागत है सो पावत है
•
मानस ही प्रेरणा-शक्ति है
•
वैदिक विचारधारा सुखप्रद है
•
सुसंस्कार से ही धर्म पुष्ट होता है
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जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि
- प्रस्तुति- किरण नलवाया
दृष्टि के बदलते ही सृष्टि बदल जाती है, क्योंकि दृष्टि का परिवर्तन मौलिक परिवर्तन है। अतः दृष्टि को बदलें सृष्टि को नहीं, दृष्टि का परिवर्तन संभव है, सृष्टि का नहीं। दृष्टि को बदला जा सकता है, सृष्टि को नहीं। हाँ, इतना जरूर है कि दृष्टि के परिवर्तन में सृष्टिभी बदल जाती है। इसलिए तो सम्यकदृष्टि की दृष्टि में सभी कुछ सत्य होता है और मिथ्या दृष्टि बुराइयों को देखता है। अच्छाइयाँ और बुराइयाँ हमारी दृष्टि पर आधारित हैं। दृष्टि दो प्रकार की होती है। एक गुणग्राही और दूसरी छिन्द्रान्वेषी दृष्टि। गुणग्राही व्यक्ति खूबियों को और छिन्द्रान्वेषी खामियों को देखता है। गुणग्राही कोयल को देखता है तो कहता है कि कितना प्यारा बोलती है और छिन्द्रान्वेषी देखता है तो कहता है कि कितनी बदसूरत दिखती है। गुणग्राही मोर को देखता है तो कहता है कि कितना सुंदर है और छिन्द्रान्वेषी देखता है तो कहता है कि कितनी भद्दी आवाज है, कितने रुखे पैर हैं। गुणग्राही गुलाब के पौधे को देखता है तो कहता है कि कैसा अद्भुत सौंदर्य है। कितने सुंदर फूल खिले हैं और छिन्द्रान्वेषी देखता है तो कहता है कि कितने तीखे काँटे हैं। इस पौधे में मात्र दृष्टि का फर्क है। जो गुणों को देखता है वह बुराइयों को नहीं देखता है। कबीर ने बहुत कोशिश की बुरे आदमी को खोजने की। गली-गली, गाँव-गाँव खोजते रहे परंतु उन्हें कोई बुरा आदमी न मिला। मालूम है क्यों? क्योंकि कबीर भले आदमी थे। भले आदमी को बुरा आदमी कैसे मिल सकता है? कबीर ने कहा- बुरा जो खोजन मैं चला, बुरा न मिलिया कोई, जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
(स्रोत - वेबदुनिया)
1
2
और भी...
•
श्रीराम और सेवक सम्मान की परंपरा
•
परंपरा में मूल रस-तत्व ढूँढें
•
जो जागत है सो पावत है
•
मानस ही प्रेरणा-शक्ति है
•
वैदिक विचारधारा सुखप्रद है
•
सुसंस्कार से ही धर्म पुष्ट होता है
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BBCHindi.com: "मंगल के 'आधे ' हिस्से में बर्फ़"
BBCHindi.com: "मंगल के 'आधे ' हिस्से में बर्फ़"
अमरीका के वैज्ञानिकों का कहना है कि नए आकड़ों के अनुसार मंगल ग्रह के कम से कम आधे हिस्से में बर्फ़ ही बर्फ़ हो सकती है.
वैज्ञानिकों ने मंगल ग्रह से आकड़े लेने के लिए नई तकनीक का इस्तेमाल किया है जिससे ग्रह की सतह पर पानी होने संबंधी विश्वसनीय जानकारी मिलती है.
ये आकड़े फिनिक्स मार्स मिशन के लिए काफ़ी महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं जिसके तहत अगस्त में मंगल ग्रह पर एक मशीन भेजी जानी है जो वहां बर्फ़ निकालने का काम करेगा.
नए आकड़ों से पता चल रहा है कि बर्फ मंगल ग्रह की ज़मीन के कितने नीचे है.
मौसमी बदलाव
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस ग्रह पर इतना बर्फ़ जमा होने की संभावना है कि अगर यह बर्फ़ पिघली तो पूरे ग्रह को डूबा दे और समुद्र बना दे.
अभी तक वैज्ञानिकों को मंगल ग्रह पर कुछ स्थानों पर पानी होने की ही जानकारी मिली थी.
नई तकनीक के ज़रिए अब वैज्ञानिक मौसम में बदलाव पर भी नज़र रख रहे हैं और आकड़ों का विश्लेषण कर रहे हैं जिससे और अधिक विश्वसनीय जानकारी मिल पा रही है.
नई तकनीक बनाने वाले वैज्ञानिक डॉ बैंडफ़ील्ड कहते हैं कि मंगल ग्रह के आधे या तिहाई हिस्से में बर्फ भरे होने की संभावना है.
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अमरीका के वैज्ञानिकों का कहना है कि नए आकड़ों के अनुसार मंगल ग्रह के कम से कम आधे हिस्से में बर्फ़ ही बर्फ़ हो सकती है.
वैज्ञानिकों ने मंगल ग्रह से आकड़े लेने के लिए नई तकनीक का इस्तेमाल किया है जिससे ग्रह की सतह पर पानी होने संबंधी विश्वसनीय जानकारी मिलती है.
ये आकड़े फिनिक्स मार्स मिशन के लिए काफ़ी महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं जिसके तहत अगस्त में मंगल ग्रह पर एक मशीन भेजी जानी है जो वहां बर्फ़ निकालने का काम करेगा.
नए आकड़ों से पता चल रहा है कि बर्फ मंगल ग्रह की ज़मीन के कितने नीचे है.
मौसमी बदलाव
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस ग्रह पर इतना बर्फ़ जमा होने की संभावना है कि अगर यह बर्फ़ पिघली तो पूरे ग्रह को डूबा दे और समुद्र बना दे.
अभी तक वैज्ञानिकों को मंगल ग्रह पर कुछ स्थानों पर पानी होने की ही जानकारी मिली थी.
नई तकनीक के ज़रिए अब वैज्ञानिक मौसम में बदलाव पर भी नज़र रख रहे हैं और आकड़ों का विश्लेषण कर रहे हैं जिससे और अधिक विश्वसनीय जानकारी मिल पा रही है.
नई तकनीक बनाने वाले वैज्ञानिक डॉ बैंडफ़ील्ड कहते हैं कि मंगल ग्रह के आधे या तिहाई हिस्से में बर्फ भरे होने की संभावना है.
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